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Mridula Mishra

Abstract

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Mridula Mishra

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सीख

सीख

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सीमा अपने देहरी पर बैठी अपनी किस्मत को कोस रही थी। आये दिन के दंगे-फसाद से वो तंग आगई थी ,वह जो भी थोड़ी सी साग -सब्जी उगाकर अपने ही मुहल्ले में बेंच आती थी वह भी बंद पड़ा था।लोग उसकी सब्जियां बिना मोल-तोल किये ले लेते थे क्योंकि वह घर में बनाई गई खाद ही उपयोग करती थी और सब्जियां बहुत ही उम्दा किस्म की होती थीं इसलिए हाथों-हाथ बिक जाती थीं। लेकिन अब इन दंगाइयों के कारण सभी लोग परेशान थे। दोहरी मार को झेल रहे थे।

एक दिन सीमा के लड़के ने सीमा को पाँच सौ रुपए लाकर दिये पूछने पर कहा, वह कुछ दिनों के लिए दिहाड़ी पर है। सीमा खुश थी कम-से-कम लड़का काम तो सीखेगा। 

 उसका लड़का हर-दम फोन पर न जाने किससे-किससे बातें करता रहता था।वह कुछ भी नहीं समझ पाती थी कि यह नागरिकता संशोधन बिल क्याहै?और-और से कानून क्या है ?

एक दिन वो कुछ सब्जियां लेकर मुहल्ले में शर्मा जी के यहां गई तो शर्मा जी ने घर आने से साफ मना कर दिया और कहा अपने बेटे को सम्भालो सब्जी बाली वरना अनर्थ हो जायेगा। उसके पूछने पर उन्होंने कहा--तुम्हारा बेटा चंद पैसों के लिए अपने देश की सम्पति फुंक रहा है। कल मैंने खुद अपनी आँखों से उसे पत्थरबाजी करते देखा है।वह आवाक शर्मा जी की बातें सुन रही थी। उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था ।वह बिना सब्जी बेचे ही घर आ गई तभी उसके कानों में आवाज पड़ी अरे दो-चार पत्थर फेंकने पर पांँच सौ रुपए मिल जाते हैं तो अपने को क्या जाता है। देश की सम्पति तहस-नहस होती है तो हो। सीमा ने जब अपने कानों से यह बात सुनी तो उसके आँखों के आगे अंधेरा छा गया ।एक ही बेटा वह भी दंगाई ? लेकिन उसने अब सबक सिखाने की ठान ली।

दूसरे दिन वह गाँव के ही एक लठैत को बुला लाई और जोर-जोर से कहने लगी -तुम मेरे इस घर में आग लगा दो मैं तुम्हें पूरे एक हजार रुपए दूंगी। उसका बेटा यह सुनकर भागा-भागा बाहर आया और बोला -माँ पागल तो नहीं हो गई हो अपना ही घर जलाने को कह रही हो और पैसा भी दे रही हो?सीमा ने बहुत शांतिपूर्वक ढंग से कहा-तुम भी तो देश जलाने के लिए दिहाड़ी पर लगे हो। एक दंगाई की माँ कहलाने से अच्छा है अपने घर के साथ खुद को भी फूंक देना।


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