!! शक्ति-पुँज !!
!! शक्ति-पुँज !!


जीवन, वह एक बड़ा सत्य है, जिसने पृथ्वी को आज तक इतने विशाल ब्रह्मांड के हजारों लाखों ग्रहों के बीच बिल्कुल अलग ही स्थापित करके रखा है। पृथ्वी पर जीवन के न जाने कितने-कितने प्रकार हैं। पेड़-पौधे, कवक, पशु-पक्षी, मछली, उभयचर, कीटाणु, विषाणु, कोशिका और इस तरह से एक-एक जोड़ते-जोड़ते और भी न जाने क्या-क्या! पृथ्वी पर मौजूद जीवन के इन विभिन्न रूप-रंगों में से ही एक, वह मानव है, जिसने अपने खोजी स्वभाव के कारण स्वयं को खुद इस जीवन के लिए भी बड़ा विषय बना कर रख दिया है।
सृष्टि के निर्माता ने इस मानव को मस्तिष्क और उसमें मौजूद विचार-क्षमता की जिस खूबी से नवाज़ा है, उससे मानव ने सदैव ही प्रश्नों और उत्तरों से परिपूर्ण एक बेहद पेचीदा, पर उतनी ही बेहतरीन ज़िन्दगी को जिया है। पर इतना कुछ कर डालने वाले मानव के लिए भी जन्म और मृत्यु का सच आरम्भ से ही ऐसे अनेकों नये सवाल खड़ा करता आया है, जिसका हल उसे आज तक न मिला।
ढेरों सवालों की बनती-बिगड़ती कड़ी में लगातार जुटे मनुष्य को कई बार तरह-तरह के जवाब मिलते तो हैं, पर, अक्सर वो जवाबों की आड़ में नतीजे पर पहुँचते-पहुँचते सिर्फ अकेला भर हो कर रह जाता है। महसूस होते अकेलेपन में रह-रह कर उठने वाले प्रश्नों की कड़ियाँ अक्सर किसी भी तरीके से किसी अन्त पर जाती नहीं नजर आतीं। उन हालातों में मानव उस राह पर कदम उठाने के लिए विवश हो ही जाता है, जिसे मानवीय-संसार में प्रायः दैवीय और असम्भव की परिसीमा में तोलकर, 'जादू' अथवा 'माया' जैसे शब्दों की सम्बोधन-सीमा में छोड़ दिया जाता है। फ़िर, जो भी आँखों के सामने सम्भव बनकर आता है, वो सिर्फ़ और सिर्फ़ मानव-जीवन की बेहतरीन किताबों की शोभा बढ़ाने का ज़रिया ही होता है।
आचार्य अदग को आज उनके जानने वाले 'अनन्य' की उपाधि देने लगे थे। जैसे सभी कथ्यों का कुछ कारण होता है, वैसा इस उपाधि के साथ भी था। आचार्य अदग मन की अनन्त उमंगों में रमकर, उनमें मौजूद संभावनाओं में खुद को डुबोकर, स्वयं ही साक्षात मन की उड़ान रूप में उमड़ कर, बहुत कुछ कर दिखाने के लिए पूरी दुनिया में जाने जाने लगे थे।
अपने कारनामों से आचार्य अदग हर सोच को एक सच बनाकर प्रस्तुत कर देने वाले विचारों के सबसे बड़े जादूगर के नाम से मशहूर हो चुके थे। पर, इतना सबकुछ पा जाने के बावजूद, जब भी कभी अकेले में बैठ आत्म-मंथन की कुछ घड़ियाँ उन्हें मिलतीं, वो बस यही सोचते रह जाते कि इस जीवन में और भी बहुत कुछ किया जा सकता था। लेकिन आज उस सबकुछ में से कुछ को भी करने के लिए उनकी उम्र बूढ़ा कहे जाने वाले पड़ाव पर पहुँच चुकी थी।
अकल्पनीय-अद्दभुत दैवीय शक्तियों को धारण करने वाले इंसान के भीतर जैसे ही स्वयं के बूढ़े होने का विचार आ जाये, स्वयं के जीवन की अंतिम कड़ियों को वो क्या अंजाम दे सकता है, जानने के लिए...
बस जुड़े रहिये...
इस मेरी कहानी... इस मेरी कल्पना की उड़ान...
" शक्ति-पुँज & आचार्य अदग " से...