Kamini sajal Soni

Abstract

4.5  

Kamini sajal Soni

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शीर्षक आज खाने में क्या बनेगा?

शीर्षक आज खाने में क्या बनेगा?

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देखा जाए तो कहीं ना कहीं यह हर ग्रहणी की समस्या होती है कि आज खाने में क्या पकाएं। क्योंकि खाना तो स्वयं को पकाना होता है पर पसंद दूसरों की शामिल होती है । संयुक्त परिवार में तो यह समस्या एक विकराल रूप धारण कर चुकी है।

निशा के घर की तो बात ही निराली है उसके यहां तो सुबह की चाय से ही सभी के नखरे शुरू हो जाते हैं किसी को काली चाय किसी को नींबू की चाय तो किसी को दूध वाली गाढी चाय ...... अब समस्या यहीं पर ही समाप्त नहीं होती है नाश्ते में भी सब की अलग-अलग फरमाइशें । किसी को पराठे तो किसी को दलिया या किसी को स्प्राउट्स......

और फिर लंच के समय सब्जी तो चलो ठीक है पर दाल के लिए नखरे निशा के पति को रोज अरहर दाल चाहिए और उसके ससुरजीको रोज बदल-बदल कर दाल । सबसे बड़ा सिरदर्द???

फिर बारी आती है रात के खाने की अब उस समय निशा के ससुर जी को सादा लोकी या तोरई की सब्जी और बाकी सदस्यों को मसालेदार तड़क-भड़क वाली सब्जी। बच्चे भी अपनी फरमाइशें लगाने में कहां पीछे हटते हैं वह भी बड़ों को देखकर ही उनका अनुसरण करते हैं। अगर घर में सभी एक जैसा खाना खाएं तो बच्चे भी उसी आदत में ढल जाते हैं।


बनाने वाला घर का सदस्य एक खाने की फरमाइशें हजार !!! और उससे भी बड़ी समस्या रोज डिस्कस करना कि आज खाने में क्या पके गा क्योंकि अगर बगैर पूछे बना लिया तो सबके मुंह बन जाते हैं क्या यार खाना तो कम से कम मनपसंद बना दिया करो।

फरमाइश करने वाले और मनपसंद खाने की चाह रखने वाले घर के सदस्य भूल जाते हैं कि यह सब करने में कितनी मशक्कत और परेशानी होती है अगर घर के सभी सदस्य मिलजुल कर एक जैसा नाश्ता लंच और डिनर डिसाइड करें तो हर ग्रहणी की समस्या सुलझ सकती है।

जिस तरह से मसाले दान में सारे मसाले जब मिलाकर किसी सब्जी में डाले जाते हैं तो स्वादिष्ट सब्जी तैयार होती है ठीक उसी प्रकार जब परिवार के सब सदस्य मिलकर एकमत होते हैं तो परिवार भी हंसता चहकता रहता है।


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