Vandana Purohit

Classics Inspirational Children

4.7  

Vandana Purohit

Classics Inspirational Children

शेरु के विघ्नहरता

शेरु के विघ्नहरता

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नन्ही शेरू अपनी मां श्यामा के साथ मालकिन के घर गणेश चतुर्थी की तैयारी में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही थी। मालकिन के साथ उत्साह से सजावट करवा रही थी। उसे भी हमेशा गणेश चतुर्थी का इंतजार रहता था। जब सभी अपने-अपने घर में गणपति लाते उसे बहुत सारा प्रसाद और फल भी मिलते ।मां के साथ जहां भी काम पर जाती वह लोग उसे फल व मोदक प्रसाद देते जिसे वह बड़े चाव से खाती। इन्हीं दिनों त्योहारों पर ही तो उसे ये सब खाने को मिलता वरना कभी कभी तो भूखे ही पानी पीकर सोना पड़ता ।कभी कभी लोग खाना भी दे देते तो मां को खाना भी ना बनाना पड़ता और मां बाबा में शाम को खाने को लेकर झगड़ा भी नहीं होता।

 एक दिन मालकिन के पास बैठी उदास हो शेरू ने मालकिन से कहा "मैडम जी, आप लोग कितनी तैयारी कर गणपति लाते हैं हम तो नहीं ला सकते।"

मालकिन" क्यों शेरु?

शेरू" मां कहती है इतना रुपया नहीं है पर मुझे गणपति अच्छे लगते है। अगर मां के पास पैसा होता सुंदर सी मूर्ति लाती फिर जोर-जोर से बोलती गणपति बप्पा मोरिया..।"

 शेरू की बात सुन मालकिन मुस्कुरा उठी बोली

"बस इतनी सी बात के लिए तुम उदास हो ! कल गणपति जी की मूर्ति लेने जाएंगे तू भी हमारे साथ चलना।"

 शेरू का उदास चेहरा खिल उठा" बोली सच?मालकिन ने मुस्कुराकर हां में गर्दन हिला दी।शेरू मां के साथ घर पहुंची खाना खाकर सड़क पर लगी खटिया पर अपने बापू के पास लेट गई बोली "बापू, हम भी गणपति लाते है।"

 बापू" अरे नहीं! यह सब बड़े लोगों के काम हैं रहने दे। हम मूर्ति कैसे लायेंगे फिर रोजाना हमारी तरह उन्हें भूखा तो नही रख सकते ।भोग चाहिए ।"

शेरू रुआंसी हो आंखे बंद कर सो गई लेकिन तभी मन ही मन मालकिन की बात याद आ गई  और सुबह के इंतजार में कब आंख लग गई पता ही न चला।

आज सुबह रोजाना से जल्दी ही शेरू की आंख खुल गई वह नहाकर जल्दी से तैयार हो गई। श्यामा को भी अचरज हो रहा था रोजाना 10 आवाज लगाने पर उठने वाली शेरू आज जल्दी कैसे उठ गई! श्यामा ने खाना बनाया और तैयार होकर निकलने लगी तो शेरू भी खुशी-खुशी मां के साथ चल दी। रास्ते में देखा लोग कोई छोटी कोई बड़ी गणपति जी की मूर्तियां लेकर गणपति बप्पा मोरिया.. गणपति बप्पा मोरिया... बोलते हुए बड़े उत्साह से मूर्तियां ले जा रहे थे। 

शेरू ने श्याम से कहा" देखो मां, कौन से गणपति अच्छे हैं? आपको कौन सी मूर्ति अच्छी लगी? कुछ छोटे हैं कुछ बड़े।

 श्यामा बोली "बेटा, सभी मूर्तियां बहुत अच्छी है कलाकार ने कितनी मेहनत से बनाई है। कुछ छोटी कुछ बड़ी है पर सभी पूजनीय हैं। छोटी बड़ी मूर्ति से कुछ नहीं होता। भक्ति भाव होना चाहिए।" बातें करते-करते कब मालकिन का घर आ गया पता ही ना चला।

 मालकिन के घर सभी तैयार हो रहे थे सभी में उत्साह था आज गणपति को लाना था। अपने कमरे से बाहर आते ही मालकिन ने शेरू को बरामदे में चुपचाप बैठे देखा तो पास जाकर बड़े प्यार से बोली"शेरू बेटा, अभी मूर्ति लेने चलेंगे तुम भी चलना।"

 यह सुन शेरू का चेहरा चमक उठा उसके मायूस चेहरे पर चंचलता छा गई वह दौड़कर मां के पास गई मां झाड़ू लगा रही थी उससे लिपटकर बोली "मां! हम भी गणपति की मूर्ति लेंगे। मालकिन ने कहा है। मैं तुम्हें कुछ काम करवा दूं?"

 श्यामा "नहीं नहीं, काम मैं कर लूंगी मालकिन ने कहा है तो जरूर लेंगे। अब तो खुश।"

 मां के चेहरे पर भी शेरू की खुशी देख मुस्कान छा गई।

परिवार के सभी लोग तैयार होकर कारों में बैठ गए मालकिन के साथ उनके पति बहू बेटे सभी थे। तभी मालकिन ने शेरू का आवाज लगाई तो शेरू अपनी दोनों चोटियां हिलाती खुशी खुशी मालकिन की कार में जा बैठी। मालकिन ने घर के दरवाजे पर खड़ी श्यामा को इशारे से बुलाया वह पास आई तो कहा "हम गणपति जी की मूर्तियां लेकर आते हैं। आज घर द्वार फूलों से सजा देना आज एक नहीं दो-दो गणपति आएंगे हमारी शेरू के गणपति भी आएंगे तैयारी में कोई कमी ना रखना।" 

मालकिन के प्रेम को देख श्यामा की आंखें भीग गई वह सिर्फ गर्दन हिला पायी। श्यामा कार में बैठी अपनी शेरू के चेहरे की खुशी देख रही थी।उनके जाने के बाद श्यामा घर कि सजावट व साफ सफाई में बड़े जतन से लग गई और मन ही मन मालकिन को दुआ दे रही थी।

कुछ ही देर में घर के दरवाजे पर दो गणपति लिए पूरा परिवार खड़ा था। श्यामा ने फूलों से द्वार सजाया और घर को खुशबू से महाकाया था। शेरू भी अपने छोटे से गणपति लिए दरवाजे पर खड़ी थी। मालकिन ने प्रसाद फूल माला सजावट के समान से भरा थैला देकर श्यामा को शेरू के साथ घर जाकर गणपति बिराजमान करने को कहा तो उसकी आंखों से खुशी के आंसू बरस पड़े रोती हुई बोली "मालकिन अपने शेरू की इच्छा पूरी कर दी। हम तो.....।

 वह कुछ बोलती उससे पहले ही मालकिन ने कहा" जल्दी से शेरू के साथ घर जाओ शुभ मुहूर्त में पूजा करो मैं भी तैयारी देखती हूं।" कहकर मालकिन हॉल में चली गई।

 शेरू के हाथ से गणपति को मस्तक पर लिए श्यामा शेरू के साथ गणपति बप्पा मोरिया... बोलती हुई खुशी-खुशी घर चल दी। घर पर गणपति को बैठाकर खुशी से पंडाल सजाया, मोदक भोग लगाया। इन सभी में शेरू को बड़ा मजा आ रहा था।उसने अपने आसपास के बच्चों को भी अपने घर बुला लिया। जोर-जोर से गणपति बप्पा मोरिया... गणपति बप्पा मोरिया.... बोलकर घर को गूंजा रही थी। तभी शेरू के बापू भी आ गए वह सजेधजे गणपति फूल माला सजावट मोदक प्रसाद सब देख अचरज कर रहे थे। शेरू ने बापू को बताया "मालकिन ने मुझे गणपति दिलाए हैं। अब हमारे घर के सारे विघ्न गणपति हर लेंगे। आओ बापू।"

 बापू भी खुशी से झूम कर शेरू के साथ गणपति की सेवा में लग गए।

 शेरू हाथ जोड़कर गणपति के आगे प्रार्थना करने लगी है गणपति हमारे साथ-साथ हमारी मालकिन के भी विघ्न हर लेना।"शेरू की प्रार्थना सुन श्यामा गदगद हो प विघ्नहरता के आगे हाथ जोड़े खड़ी हो गई मन ही मन बोली" सच ही तो है प्रभु गरीब की मदद करने से उसकी दुआ भी मदद करने वाले को लग जाती है वो मन से दुआ देते है। हे शेरू के विघ्नहरता आज मेरी शेरू की प्रार्थना सुन लेना।


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