Vandana Purohit

Romance Others

4  

Vandana Purohit

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हरी चूड़ियां

हरी चूड़ियां

4 mins
350


इमरती बड़ी खुशी से सज धज कर तैयार हो बिरजू से मिलने खेत पर जा रही थी ।आज बिरजू ने उससे विशेष तौर पर शाम को ही खेत पर बुलाया था।वह मन ही मन सोच रही थी ना जाने क्या काम होगा जो शाम को बुलाया है। वैसे तो कभी शाम को खेत पर आने से मना किया करते हैं। चलते-चलते अचानक हल्की बारिश शुरू हो गई आसमान में काली घटायें छायी हुई थी और हवा का रुख भी अचानक से तेज हो चला था। वह जल्दी-जल्दी अपने खेत की और कदम बढ़ा रही थी खेत पहुंचते-पहुंचते बारिश तेज हो चुकी थी बिजली तेजी से चमचमा रही थी।

खेत पर पहुंची तो देखा बिरजू वहां नहीं था उसने बिरजू को तेज तेज आवाज लगाई बिरजू...बिरजू... लेकिन न बिरजू की आवाज़ वापस आई ना बिरजू। उसे बुलाने के बाद जाने कहां चला गया। वह बिरजू का बेसब्री से इंतजार करने लगी लेकिन काफी देर तक बिरजू ना आया और मौसम का रुख है कि और भयंकर हुए जा रहा था। इमरती चिंता में डूबी अपने पल्लू के कोनो को दांतो के बीच दबाए दूर दूर तक नजर दौड़ा रही थी लेकिन किसी आसपास से खेत व पगडंडी पर बिरजू नजर ना आया। वह ईश्वर को याद करने लगी उसका दिल बैठा जा रहा था बार-बार बिरजू को लापरवाह,घुमक्कड़ ना जाने क्या क्या बोले जा रही थी। तेज चमकती बिजली ने उसे और डरा दिया। चमकती बिजली के साथ बारिश भी काफी तेज हो गई थी ।आसपास के खेत में काम करने वाले लोग एक दूसरे को आवाज लगाकर घर चलने को कह रहे थे। जमुना ने इमरती को देखा तो उसे भी घर चलने को कहा लेकिन इमरती ने मना कर दिया बोली "अभी बिरजू आ रहा है उसने मुझे यहां बुलाया है। आता ही होगा।"

 जमुना ने भी जब ये सुना तो उसे अपना ध्यान रखना कहकर खेत से गांव की ओर निकल पड़ी। आसपास के खेत सुनसान हो चुके थे इमरती अकेली पेड़ के नीचे खड़ी होकर अपने बिरजू का इंतजार कर रही थी। अब तेज बारिश के कारण इमरती पूरी भीग चुकी थी उसका बुरा हाल हो रहा था। अब उसे सुनसान खेत में डर लगने लगा था। वह मन ही मन अपने बापू की बताई हनुमान चालीसा की चौपाइयां करने लगी थी। आज सावन की इस बरसात ने रौद्र रूप धारण कर लिया था। उसे अपने से ज्यादा बिरजू की फिक्र हो रही थी न जाने कहां होगा । यहां मुझे बुलाया फिर वह यहां से कहां चला गया। एक अनजाना भय उसे घेरकर दिमाग की नसों से होता हुआ पूरे शरीर में घुल रहा था। अब तो डर के मारे वह कांप रही थी तभी दूर से बारिश और हवा को चीरती हुई बिरजू की आवाज आई इ ..मर..ती.. इ..मर..ती...उसकी आवाज ने जैसे इमरती कि नस-नस में उर्जा भर दी ।आवाज की दिशा में गौर कर देखने लगी देखा तो बारिश में भीगते हुए उसी की ओर दौड़ा चला रहा था बिरजू । उसके पास आते ही उसकी जान में जान आई लेकिन उस तेज बारिश में चमचमाती बिजली से भी ज्यादा तेज रफ्तार से दौड़ती बिरजू के गले लग कर रोती हुई बोली "कहां गए थे? आज तुम्हारी इमरती का राम नाम सत्य होने वाला था। अगर तुम कुछ देर और ना आते तो मुझे कुछ हो जाता। पर तुम्हें क्या कहां चले गए बिना कुछ बताये ।"

इमरती के आंसू पोंछते हुए बिरजू बोला" ना बाबा ना ऐसी बात ना करो ।अगर बता कर जाता तो क्या तुम इस बारिश को रोक लेती? इमरती प्रेम से बिरजू की और देखते हुए "अगर तुम बताते तो मैं तुम्हें इस मौसम में कहीं न जाने देती।"

 बिरजू मुस्कुराते हुए तभी तो बिना बताये गया था" यह लो. पहन लो..फिर जल्दी से घर चले अंधेरा हो चला है ।

इमरती देखते ही खुशी से उछल पड़ी" अरे वाह! मेरी पसंद की हरी चूड़ियां! तुम ले भी आए। इतनी जल्दी कल ही तो कहा था कि मुझे हरी चूड़ियां पसंद है।" हरी चूड़ियां देखकर उसका रोम-रोम पुलकित था वह खुशी-खुशी हरी चूड़ियां पहन रही थी। तब पास खड़ा बिरजू इमरती के चेहरे की खुशी पढ़ रहा था। डरी हुई इमरती उसके आते ही खुशी से चहक उठी थी। उसकी खनकती हरी चूड़ियां बिरजू के प्रेम भरी सौगात थी जिन्हें वह आज शहर से लेकर आया था। तभी इमरती ने अपनी दोनों बाहें बिरजू के गले में डाल दी और चूड़ियां खनकाते हुए कहने लगी"अच्छा तो मुझे चूड़ियां पहनने के लिए बुलाया था लेकिन इस मौसम में तुम शहर क्यों गए कुछ हो जाता तो।"

बिरजू उसकी चूड़ियों को निहारता हुआ बोला "कैसे कुछ हो जाता। तूने अपने पति कि सलामती के लिए ही तो सावन महीने का व्रत रखा है। मेरा भी तो फर्ज बनता है कि तेरी इच्छा पूरी करूं।"

इमरती गर्दन हिलाते हुए मुस्कराकर बोली "चलो बिरजू ,घर चलो। मां बाबूजी राह देखते होंगे। उन्हें हम दोनों की चिंता हो रही होगी।" 

बिरजू इमरती का हाथ थामे गांव की पगडंडी पर चल पड़ा दोनों  सावन कि बारिश में प्रेम संग भीग अपने घर की ओर चल पड़े।

          


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