मोगरे की बहार
मोगरे की बहार
रमा जी आज अर्से बाद अपनी पुश्तैनी हवेली आयी थी। उन्हें वहां बिता हर पल याद आ रहा था जब वे दुल्हन बनकर इस हवेली में आई थी घर की चहल-पहल ने उन्हें लुभा लिया था। उन पर प्यार लुटाने वाले परिवार के इतने शख्स थे कि उन्हें अपने पीहर की याद ही ना आती दादी के कोई बेटी तो थी नहीं तो उन्हें बिटिया रानी ही कहा करती थी। रमा भी घर के हर सदस्य का उतना ही खयाल रखती थी जितना कि वह सब रखते थे। कहते भी हैं ताली एक हाथ से नहीं बजती रमा को अगर थोड़ा सा जुकाम भी हो जाता तो मांजी उससे कोई काम ना करवाती इस बात पर उनके पति सुदेश रमा से कहते
"मेंडकी को जुखाम अब करो आराम" और मांजी उन्हें डांटती कि" मेरी बहू मेरा इतना ख्याल रखती है क्या? मैं 2 दिन उसका ख्याल ना रख सकूं।"
इसी कारण मांजी में रमा को अपनी माँ नजर आती थी। बाबूजी बाजार के मशहूर जलेबी वाले से उसके लिए जलेबी कचोरी लाते और घर के दरवाजे में घुसते ही रमा रमा की आवाज लगाकर उसे थैला देते हुए कहते "चुपचाप मेरे कमरे में दो जलेबी रख देना तुम्हारी मांजी मेरी पहरेदार है मीठा नहीं खाने देगी।"
मांजी भी सब जानती थी लेकिन कभी उन दो जलेबी के लिए बाबूजी को ना टोकती। हवेली का ऊपर वाला कमरा विशेष तौर पर उनकी शादी में सजाया गया था। एक दीवार पर बड़ी सी शीशे की अलमारी लगाई थी जिसमें रमा तैयार होकर अपने आप को सिर से पैर तक निहारती थी। जब भी तैयार होकर शीशे के आगे खड़ी होती सुदेश भी पीछे से आकर उनके बालों में मोगरे का गजरा लगा कर कहते इस गजरे की महक के बिना तुम्हारा श्रृंगार अधूरा है ।वह जब भी बाजार जाते रमा के लिए मोगरे का गजरा जरूर लेकर आते। अपनी हवेली के बगीचे में भी सुदेश ने चार पांच पौधे मोगरे के लगा दिए थे जिनसे मौसम आते ही मोगरे की महक से पूरी हवेली महक उठती थी।
अपनी हवेली में कदम रखते ही रमा को सूखे मोगरे के पौधे व धूल से सनी दिवारे देख बहुत दुख हुआ लेकिन यादों ने पीछा न छोड़ा वे एक एक कदम पर यादों को बटोरने लगी थी। अब इस सुनी हवेली में यादों के सिवा कुछ ना था।
पहले दादी फिर मांजी व सुदेश के जाने के बाद घर वैसे ही सुना हो गया था।बच्चे अपनी नौकरी के कारण दूसरे शहर में जा बसे थे ।वे और सुदेश कुछ सालों तक अकेले ही इस हवेली में रहे लेकिन सुदेश के बीमार होने के बाद वे दोनों बड़े बेटे बहू के पास चले गए। वहां सुदेश का इलाज करवाया लेकिन बुढ़ापे की बीमारियां कहां जीने देती है। एक दिन सुदेश भी उन्हें छोड़ इस दुनिया को अलविदा कह गये। तब से रमा का हवेली आना बहुत कम हो गया था लेकिन इस बार उन्होंने बड़े बेटे से कहा कि वह कुछ दिन हवेली में रहना चाहती हैं ।तब बेटे बहू ने कहा" वहां अकेली क्या करोगी।"
तो उन्होंने वहां जाने का ऐसा बहाना बताया कि वे दोनों मना न कर सके।वे बोली " बंद पड़ी हवेली को एक बार संभाल लूं ।बहुत समय से बारिश के बाद हवेली को नहीं खोला सिलन से दीवारे व सामान खराब हो जाएगा।" उनकी इस जिद्द के आगे बेटा बहू की ना चली। वह भी जानते थे कि रमा का उस हवेली से कितना लगाव है।
अपने आप से बात करती वे आज फिर यादों में जीवन के हर लम्हे को सुदेश की तस्वीर के आगे खड़ी हो जैसे दोबारा जीने की कोशिश में थी। उन्हें निहारती हुई गजरा लिए अपने बालों में मुस्कुराकर लगाने लगी तो उन्हें सुदेश को अपने साथ का एहसास तो था लेकिन दूसरे ही पल सुदेश के स्पर्श की कमी ने उनकी आंखों को नम कर दिया। वह अकेली सुबक सुबक कर उस रात बहुत रोयी। रोते-रोते ना जाने कब उनकी आंख लग गई ।
दूसरे दिन सवेरे सवेरे ही हवेली के खिड़की दरवाजे खुले देख आसपास वालों का आने जाने का तांता लग गया। सभी रमा को मिलने और पुराने दिन व सुदेश को याद कर रमा को वहीं रहने का आग्रह कर रहे थे। वह आबाद रहने वाली हवेली लेकिन अब सूनी हवेली पास पड़ोस के लोगों को खलने लगी थी। उन्हें फिर से हवेली की वही रौनक देखनी थी जिसमें सुदेश मेहनत से हरियाली से भरे पेड़ पौधे और घर आंगन चहकता था। रमा ने वहीं रहने का निर्णय कर लिया बगीचा भी फिर हराभरा हो गया। वहां अब कभी-कभी बेटा बहू व बच्चों के आने से फिर रौनक लौट आती थी। अब हवेली फिर आबाद हो गई पास पड़ोसी भी रमा से मिलने रोजाना आते। बगीचे में भी मोगरे की बहार फिर लौट आयी थी।हवेली मोगरे की महक से महक उठी थी।
