मीठी यादें
मीठी यादें
बादलों की गड़गड़ाहट व चमकती बिजली सुषमा की चिंता को और बढ़ा रही थी। आज वर्षा की चेतावनी व मौसम के हाल जानने के बावजूद शर्मा साहब घर से बाहर निकल गए थे। उन्हें घर से निकले 2 घंटे हो चुके थे मौसम के कारण नेटवर्क भी गड़बड़ चल रहा था । फोन भी नहीं लग रहा था ऊपर से कोंधती बिजली उनकी घबराहट व चिंता में घी का काम कर रही थी। वे कभी राम राम के नाम का जाप करने लगती तो कभी शर्मा जी के लिए बड़बड़ाती _" अपने आपको जवान समझते हैं ,निकल पड़े। आज ना जाते तो क्या हो जाता? अगर घुटने में दर्द ज्यादा हो गया तो फिर बिस्तर से उठ ना पाएंगे। इस बार घुटने में दर्द हुआ तो मैं हाथ तक न लगाऊंगी।"
बरामदे में चक्कर लगाते हुए सुषमा की नजर बार-बार मेन गेट तक जा रही थी तभी चमकती बिजली के बीच में मेन गेट पर छाता लिए शर्मा साहब दिखाई दिए और वे दौड़कर बरामदे का गेट खोलने गई। गेट खोलते ही देखा शर्मा साहब छाता होने के बावजूद भीग गए थे। उन्हें भीगा देख सुषमा का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया। उन्होंने चुपचाप अपने कमरे से टॉवल लाकर रख दिया और बरामदे की कुर्सी पर बैठ गई ।शर्मा साहब समझ गए कि आज सुषमा का गुस्सा रौद्र रूप धारण करने वाला है। वे भी चुपचाप हाथ मुँह पोंछ कपड़े बदल आये।
अचानक सुषमा के पास रखी टेबल पर शर्मा साहब ने दाल के पकौड़े रखे।उनकी खुशबू तो पहले ही सुषमा तक पहुँच रही थी लेकिन अपने आप को काबू करे वह गुस्से में बैठी रही। प्लेट देख
आँखो की त्यौरियां ऊँची कर सुषमा बोली_ "यह किसके लिए?"
शर्मा साहब" सुषमा के कंधे पर हाथ रख हल्का मुस्कराते हुए बोले_" अरे भाई, पार्क के पास वाली दुकान पर गरमा गरम पकौड़े निकल रहे थे तो मुझे आपकी याद आ गई। जब हमारी नई नई शादी हुई थी तुम हमेशा एक ही फरमाइश करती दाल के पकौड़े लेकिन अब तुम्हें फरमाइश करे अरसा हो गया इसलिए मैं ले आया। वैसे कल तुम्हारा सोमवार का व्रत है तो आज अपनी पसंद के पकौड़े खा लो ।वैसे भी घंटे भर इंतजार किया तब तकदीर में यह पकौड़े हासिल हुए हैं।"
सुषमा का गुस्सा अब थोड़ा नरम पड़ गया था हल्का सा मुस्कुराते हुए बोली "आपको आज भी याद है।"
शर्मा साहब भी नजर मिलाते हुए बोले_" वह पहला सावन और तुम्हारा साथ भुलाए नहीं भूलता। बारिश आते ही हम भीगने निकल पड़ते थे ।अब उम्र के इस पड़ाव में मीठी यादें ही रह गई है। हम तुम साथ घूमने तो आजकल कहीं जाते नहीं। तुम दस बहाने बनाती हो और बारिश से कतराती हो।" सुषमा जी का गुस्सा काफूर हो चुका था वे शर्मा जी के घुटने पर हाथ रख बोली_" मेरी छोड़ो, तुम्हारे घुटने भी अब साथ नहीं देते हैं इसलिए मना करती हूं।"
शर्मा जी बात टालते हुए बोले_ "सुषमा पहले पकौड़े खा लो फिर तुम्हारे हाथ की गरमा गरम चाय मसाला डालकर ले आओ।"
दोनों ने इत्मीनान से पकौड़ों का आनंद लिया और पुरानी यादों को याद कर आज सावन की बारिश का आनंद खिड़की से ले रहे थे। सुषमा जल्दी से चाय बना लाई और खिड़की खोल दोनों हाथों में हाथ पकड़े खिड़की से हाथों को भीगो इस प्रेम भरे सावन में भीग रहे थे।