शापित हवेली
शापित हवेली
हम पांच दोस्त अभय, यश, रूही, आरणा और मैं निर्भया। बहुत पक्की है हमारी दोस्ती। स्कूल टाइम से दोस्त हैं हम।
अब कोलेज भी कम्पलीट होने वाला है।आगे के कैरियर के लिए हम सबको अलग अलग हो जाना है। इस लिए मन बहुत उदास है।
"अरे यार हम सब एक दूसरे के कोंटेस्ट में तो रहेंगे ही। और मिलते भी रहेंगे। "यश ने कहा।
"एक आइडिया है मेरे पास। "मैं बोली।"हम कुछ दिन साथ रह सकते हैं। फिर तो अगले साल ही मौका मिलेगा।"
"क्या प्लान है तेरा निर्भया।"आरणा ने घूरते हुए पूछा।
"ऐसे घूर मत। मैं सिर्फ यही कह रही हूं,कि हम सब एक हफ्ते के लिए कहीं घूमने चलें।"
"हां सही है। आइडिया बुरा नहीं है।"अभय ने कहा।"घर से सबको परमिशन मिल जाएगी।"
"हां। वो कोई दिक्कत नहीं। पर जाएंगे कहां ?"आरणा बोली।
"मैं बताऊं। जयपुर चलते हैं। वहां जयगढ़ के पास मेरे मामाजी ने होटल बनाया है। वो बुला रहे थे हमें, वहीं चलते हैं।"रूही ने कहा।
रूही का आइडिया सबको बढ़िया लगा। और सबने उसके लिए हामी भर दी और दो दिन बाद जयपुर निकलने का पक्का कर लिया। रूही ने भी वही मामाजी से बात करली वो भी खुश हो गये सबका प्लान सुनकर। घर वालों को भी कोई आब्जेक्शन नहीं था।सब एक दूसरे से अच्छे से वाकिफ थे और जा भी किसी गैर के नहीं रहे थे।इस लिए वो सब ख़ुशी ख़ुशी जयपुर के लिए निकल गए।
जयपुर पहुंचकर वो सब सीधे होटल पहुंचे जहां मामाजी पहले से उन सबका इंतजार कर रहे थे। उन्होंने खूब अच्छे से उन सबका स्वागत किया।
घूमने के लिए एक आदमी भी साथ दिया। जो हमारा गाइड बना। दो दिन हो गए हमें जयपुर घूमते हुए। पर मेरी नजर एक हवैली पर रोज जा रही थी, होटल के पास ही थी।
"भाई जी, आपने हमें यह हवेली तो घुमाई ही नहीं। कितनी सुंदर है, बाहर से। आज यही घूमा दो।"
"इस हवेली की तरफ देखना भी नहीं। यह शापित हवैली हैं। इस हवेली में जो जाता है वापस नहीं आता।"
"अरे यह क्या बात हुई। आज के समय में यह बातें कौन मानता है।"अभय बोला।
"हुकुम यह राजस्थान है। यहां आधे से ज्यादा हवेली ऐसे ही भूतीया मिलेगी। कोई कहानी होगी जुड़ी उनके साथ।"
"इस हवेली की क्या कहानी है ?"रुही ने पूछा।
"करीब 70 साल पहले कुछ डकैतों ने इस हवेली पर हमला करा था। उसमें राणा साहब मारे गए। पर डकैतों को कुछ भी नहीं मिला। और कमाल की बात यह हुई कि लाश सिर्फ राणा साहब की मिली। उनके बीवी बच्चे तब से लापता है। किसी को कुछ नहीं पता उनके बारे में।"
"किसी ने उन्हें ढूंढा नहीं।"मैंने पूछा।
"परिवार वालों ने बहुत ढूंढा। पर कुछ न पता कुछ लोग कहते हैं शायद वही राणा का धन लेकर भाग गई।" कहकर वो आगे बढ़ गया।
हम सब भी वापस होटल आ गये। पर वो हवेली और वो कहानी मेरे दिमाग से नहीं निकल रही थी।
"क्या हुआ निर्भया ?"
"मैं बताता हूं इसके खाली दिमाग में क्या चल रहा है ?"
"क्या चल रहा है बता।"
"वो हवेली और वो कहानी। है ना।"अभय ने कहा।"बहुत अच्छे से जानता हूं तूझे। तू उस हवेली में जाने की सोच रही हैं। यह भी बता सकता हूं।"
"नहीं उस हवेली में कोई भी नहीं जायेगा। मामा जी को पता चला तो वो हमे वापस भेज देंगे।"रूही ने कहा।
"ठीक है। पर जब मामा जी को पता चलेगा तब न। मैंने कहा।
"क्या कहना चाहती हो।"
"मैं उस हवेली में जाकर सच पता करना चाहती हूं।इस लिए मैं उस हवेली में जरूर जाऊंगी। "
"मैं भी चलूंगा। " अभय ने कहा।
"सब मत चलो।"
"सब नहीं जा रहे हैं। सिर्फ मैं और तुम।"
"हम सब क्यों नहीं ? यश ने पूछा।
"यहां भी कोई चाहिए न, सब सम्भालने को।"
"प्लान क्या है तुम्हारा ?"मैंने अभय से पूछा।
"बहुत Simple हवेली में जाने का। आज रात को।"
"कैसे जाएंगे ?"
"खाना खाने के बाद। टहलने के लिए हम लोग निकलेंगे, वहीं से हम दोनों हवेली में निकल जाएंगे तुम लोग होटल आ जाना।"
सब लोगों ने हामी भर दी, अभय के प्लान में।सब लोग प्लान के हिसाब से बाहर गए। और हवेली पर अभय और निर्भया अलग होकर सबको बाय बोल कर हवेली में चले गए।
सब उन्हें रोकना चाह रहे थे, पर कोई कुछ कह न सका। और सबके सामने वो दोनों हवेली में घुस गये। हवेली में घुस कर उन्होंने चारों तरफ देखा हवेली बहुत सुंदर है पर सब तरफ गन्दगी बिखरी पड़ी हैं।धूल, मिट्टी, जाले से भरी है हवेली।
"निर्भया कुछ भी हो जाए तुम मेरा हाथ मत छोड़ना।"अभय ने कहा और निर्भया का हाथ कसकर पकड़ लिया।
निर्भया एक पल के लिए चुप रही फिर एकदम से बोली -"क्यों ? यहां कौन है जिससे खतरा है। और होता भी तो मैं कमजोर नहीं हूं। "
"मैंने कब कहा तुम कमजोर हो।पर यह हवेली Hounted हैं, और बहुत बड़ी भी है अंधेरा है चारों तरफ़। इस लिए कह रहा हूं।"
"तो तुम्हें डर लग रहा है यह कहो।"
"हां बहुत डर लग रहा है। अब खुश। बस हाथ मत छोड़ना मेरा।"अभय ने कहा।
"मरते दम तक नहीं छोड़ूंगी। "निर्भया ने कहा,और अभय का हाथ और कस कर पकड़ लिया।
निर्भया की इस बात से अभय ने निर्भया की आंखों में आंखें डालकर कर देखने लगा, जैसे निर्भया से पूछ रहा हो-"जो तुमने कहा उसका क्या मतलब है।"तभी वहां पर एक मेज हवा में उड़ती हुई आई और उन दोनों पर गिरने लगी निर्भया का ध्यान उस पर गया और उसने अभय के साथ खुद को भी झुका लिया और इस वार से बच गए।
"यह मेज हवा में थी। पर कैसे ? यानि यह हवेली सच में Hounted है ?"मैने कहा।"हमने यहां आकर गलती कर दी।"
चिंता मत करो। सब ठीक होगा हम लोग यहां से जिंदा जाएंगे। बस मन में विश्वास रखो और हाथ मेरा मत छोड़ना।" अभय ने कहा।
मैंने भी हां में गर्दन हिलाई और दोनों वहां से उठ कर आगे बढ़े।आगे चलते चलते हम दोनों एक बहुत बड़े हॉल में पहुंचे। दोनों ने एक दूसरे का हाथ मजबूती से पकड़ रखा था। अब मुझे डर लगने लगा था। तभी उन्हें वहां दो बच्चे भागते हुए उस हॉल में आते दिखाई दिए।
"यह बच्चे यहां कैसे, यहां तो कोई नहीं रहता ? मैंने कहा।
",इन पर ध्यान मत दो। यह सब छलावा है। याद करो हमारे गाइड ने राणा के बच्चों का जिक्र किया था जो अपनी मां के साथ गायब हो गए थे।"
"तुम इतने Confidence से कैसे कह सकते हो कि यह सब छलावा है।"
"डर ने लगता है तुम्हारी सोचने समझने की शक्ति खत्म कर दी है।जब हम यहां पर आए थे तब कोई नहीं था यहां। गाइड भी कह रहा था, और इस हवेली की हालत तुम्हें लग रही है यहां कोई रह सकता है।वो आत्मा हमारे साथ खेल खेल रही है। बस हमें किसी छलावे में नहीं आना है।"
अभय ने कहा पर उसकी नजर चारों तरफ़ घूम रही थी। वो जैसे पूरी तरह से तैयार होकर आया था किसी भी परिस्थिति से लडने के लिए।
"तुम सबकुछ जानते हो यहां के बारे में ?" मैंने पूछा अभय से।
"हां। पहले दिन ही सब कहानी का पता चल गया था, मुझे।इस लिए जब तुमने यहां आने का सोचा तो मैं भी आया। यहां तुम्हें अकेले कैसे आने देता ?"
"क्यों ?"
"क्या क्यों ?"
"मुझे अकेले आने क्यों नहीं दिया ?हम सिर्फ दोस्त हैं बचपन के।खुद को खतरे में क्यों डाला जानते बूझते ?"
मेरे सवालों पर अभय चुप रहा और मेरी तरफ चुपचाप देख रहा था। मेरी आंखें अभय की आंखों पर थी। जिनमें मेरे सवालों के जवाब तो थे पर पता नहीं वो जवाब क्यों नहीं नहीं देना चाहता था। तभी एक आवाज हुई कुछ चरमराने की,हम दोनों की नजर ऊपर गई। झूमर हम दोनों पर गिरने वाला ही था तभी अभय ने फौरन दूसरी तरफ मुझे धक्का दिया और खुद भी गिरा।
"सच में मैंने बहुत बड़ी ग़लती कर दी यहां आकर। और मेरी वजह से तुमने यहां आकर। वापस चलते हैं मुझे नहीं देखना इस हवेली को।वापस चलो।"मैंने अभय से कहा।
"नहीं जा सकते बाहर हम।"
"क्यों नहीं जा सकते। "
"क्योंकि जब हम इस हवेली के अन्दर आए इस हवेली का दरवाजा गायब हो गया।"
"क्या ? ऐसे कैसे हो सकता है।"
"मानो या ना मानो पर ऐसा हुआ है। मैंने खुद दरवाजे को गायब होते देखा है। तभी मैं समझ गया था हम चक्रव्यूह में घुस गये है। आएं अपनी मर्जी से जाएंगे उसकी मर्जी से।"
"किसकी मर्जी से।"
"कौन रहता है यहां ?"
"क्यों जान लेते हो जो यहां आता है।"
"वो सब बेगुनाह थे जिनकी जान ली।"
"जवाब दो हमें।" अभय ने तेज आवाज में पूछा। अभय की आवाज़ हवेली में गूंज रही थी। तभी हवेली में तेज हवाएं आने लगी जैसे कोई तूफान आ गया हो।वो हवा एक औरत का आकार ले लेती है। और फिर सब शांत हो जाता है। मैं और अभय दोनों सब आश्चर्य से सब देख रहे थे। हम सांइस के जमाने के जवान है।जो इंटरनेट में जीते हैं यह सब हम अपनी आंखों से देख रहे हैं पर दिमाग मानने से इन्कार कर रहा था।सब सच है या सपना, समझ से बाहर था।
"कौन हो तुम ?"अभय ने पूछा।
"मेरी हवेली में घुस कर मुझ से ही मेरा परिचय पूछ रहे हो। मैं इस हवेली की मालकिन हूं। राणा साहब की पत्नी।"
उस औरत की बातें सुनकर हम चौंक गए। क्योंकि सब जगह यही बात मशहूर थी की राणा की पत्नी सब धन और जेवर लेकर भाग गई। पर हवेली की भूतनी तो खुद राणा की पत्नी हैं।पर लाश तो सिर्फ राणा की ही मिली थी।यह सब पहेली थी और मेरी सब कहानी जानने की इच्छा थी।
"आप राणा साहब की पत्नी कैसे हो सकती है वो तो भाग गई थी। आपकी तो लाश भी नहीं मिली थी।"मैंने उस आत्मा से कहा।
"नहीं मैं तो यही थी इस हवेली में। वो हमारे कमरे की अलमारी में से एक गुप्त कमरे का रास्ता है उस कमरे में राणा साहब ने मुझे और बच्चों को धन और जेवर के साथ छुपा दिया था। वो बोले थे उन डाकुओं के जाते ही वो हमें बाहर निकाल लेंगे।पर उन्होंने वो दरवाजा खोला ही नहीं। मेरे दोनों बच्चे भूख और प्यास से तड़फ तड़फ कर मेरे सामने मर गए मैं चीखी चिल्लाई पर किसी ने मेरी आवाज़ नहीं सुनी।वो दरवाजा नहीं खोला। मैं और मेरे बच्चे भूखे हैं इंतजार कर रहे हैं उस दरवाजे के खुलने का अपनी मुक्ति का।"
उस आत्मा की कहानी सुनकर मेरा दिल तड़प उठा। कितनी तकलीफ़ भोगी होगी उन तीनों ने, जो आज भी इंतजार कर रहे हैं अपनी मुक्ति का।
"हम क्या कर सकते हैं आपकी मुक्ती के लिए हमें बताइए।हम आपकी मदद करेंगे।"मैंने कहा।
"मुझे तुम्हारी जान चाहिए तुम्हारी मदद नहीं। उसने कहा और तभी एक खंजर हवा में उड़ता हुआ आया और वो मुझे लगने ही वाला था मैने अपनी आंखें जोर से बंद कर ली और "आह........…...।"यह चीख तो अभय की हैं। मैंने फ़ौरन आंखें खोली मेरे सामने अभय दीवार की तरह खड़ा था। और वो खंजर अभय के दाएं कंधे पर घुसा था।मैंने अभय की तरफ देखा वो बहुत दर्द में था।वो आत्मा अब गुस्से से पागल हो गई थी।सब चीजें हवा में उड़ रही थी।अभय को सम्हाले खड़ी थी मैं,कंधे से खंजर निकाला अभय के मैंने हिम्मत करके। बहुत खुन बह रहा था उसे होस्पिटल ले जाना बहुत जरूरी है पर यहां से निकले कैसे।
"अभय क्या करें ? कुछ समझ नहीं आ रहा।"मैंने परेशान होते हुए कहा।
अभी सब ठीक होगा। चिंता मत करो। हम निकल जाएंगे यहां से।अभय ने कहा और जेब से एक थैली निकाली उसमें सिंदूर था। अभय ने सिंदूर हाथ में लिया और उस सिंदूर को उस आत्मा की तरफ उड़ा दिया।वो सिंदूर उस पर पड़ते ही वो आत्मा जलने लगी। और थोड़ी देर में सब शांत हो गया।
"यह क्या था ?"
"मां के मंदिर का सिंदूर। अपने साथ लाया था। रक्षा के लिए। अब कोई डर नहीं हमें। अब सब ठीक है। यह हवेली भी सुरक्षित है।उस श्राप से यह मुक्त है" अभय ने कहा।
"क्या मतलब ?"
"कोई नहीं जानता था कि राणा की पत्नी भी मर चुकी है क्योंकि राणा ने छुपा दिया था उसे। पर वो उस हमले में मर गया और अपनी पत्नी बच्चों को मुक्त नहीं करा सका उस जगह से। कुछ समय बाद वो सब भी मर गये पर सबने यह साबित कर दिया कि वो बेवफा थी और धन लेकर भाग गई। जिस कारण उनकी आत्मा बेचैन थी। यही सच्चाई वो किसी को बताना चाहती थी ।जो कोई नहीं सुन रहा था। आज हमें उन्होंने सच बता दिया और उन्हें मुक्ति मिल गई। "
"ओह !वो पतिव्रता पत्नी थी जो मरने के इतने सालों बाद भी अपने पति का इंतजार कर रही थी। उनकी मौत के बारे में भी कोई नहीं जानता था।"
"हां !अब चलों यहां से बहुत दर्द हो रहा है।"
"हां ! चलो बाहर चले।"
हवेली का दरवाजा अपने आप खुल गया। मै अभय को सहारा देकर उसे हवेली से बाहर लेकर आई। अब भी मेरे हाथ में अभय का हाथ है जो मैं कभी नहीं छोड़ूंगी। इस हवेली में बिताई रात ने मुझे भी मेरे कुछ जवाब से रूबरू करा दिया है मुझे मेरे पहले प्यार से मिलवा दिया।