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Gunjan Johari

Tragedy

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Gunjan Johari

Tragedy

कहानी अरूणा की

कहानी अरूणा की

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मैं आज बात कर रही हूं अरूणा शानबाग की।एक समय बहुत चर्चा का विषय बना था यह केस। अरूणा शानबाग रेप केस। जिसमे आरोपी को तो सात साल की सजा मिली पर अरूणा शानबाग ने 42 साल सजा भुगती।

उनके अपनों ने भी उनसे मुंह फेर लिया। उनके इलाज, उनकी देखभाल उनके साथ काम करने वाली नर्सों ने करी।वो भी 42 साल। 


यह कहानी अगर किसी की हैवानियत की है तो, कुछ लोगों की इंसानियत भी दर्शाती है। जिसे जानकर महसूस होता है दुनिया में अभी है इंसानियत।


अरुणा शानबाग मुम्बई में किंग एडवर्ड मेमोरियल अस्पताल (के ई एम) में जूनियर नर्स थी।उनकी सगाई उसी अस्पताल में काम करने वाले एक डाक्टर से हुई थी। अरूणा शानबाग का जन्म 1948 में उत्तर कन्नड, कर्नाटक में हुआ था।


के ई एम अस्पताल में दवाई का कुत्तों पर एक्सपेरिमेंट करने का डिपार्टमेंट था उन नर्सों में अरूणा भी शामिल थी जो कुत्तों को दवा देती थी।27 नवंबर 1972 को अरूणा ने अपनी ड्यूटी खत्म करके कपड़े बदलने बेसमेंट में गई। वार्ड ब्वाय सोहनलाल पहले से ही वहां छुपा बैठा था। अरूणा के आते ही उसने उस पर हमला कर दिया। उसने अरूणा के गले में कुत्ते के बांधने वाली चेन लपेट कर दबाने कुछ कोशिश करी। अरूणा ने खुद को छुड़ाने की बहुत कोशिश करी,पर गले की नस दबने की वजह से वो बेहोश हो गई। और फिर वह कभी होश में नहीं आई।


गला काफी देर तक बंधा रहने के कारण अरूणा के दिमाग में ब्लड सर्कुलेशन और आक्सिजन की कमी हो गई थी।जिस वजह से वह कोमा में चली गई थी।उस समय के डीन ने भी अरूणा के साथ हुए अप्राकृतिक सम्बन्ध की बात को दबा दी थी वो इसलिए क्योंकि बहुत जल्द ही अरूणा की शादी होने वाली थी।


पुलिस ने भी डकैती और हत्या के प्रयास में केस दर्ज किया। कोर्ट में भी उसे मारपीट और डकैती के लिए लगातार सात साल की सजा दी।उस पर न रेप, और न ही अप्राकृतिक संबंध और दुराचार का कोई केस चला।सात साल बाद सोहन की सजा खत्म हो गई ,पर उसके किए गुनाह की सजा अरूणा ने 42 साल तक सही और एक नरकीय जीवन जीया।1980 में महानगरपालिका ने अरुणा को दो बार अस्पताल से बाहर निकालने का प्रयास किया। ताकि वह उस बिस्तर को खाली करवा सके जिस पर वह सात साल कब्जा कर रखे थी।इस पर नर्सों ने विरोध किया वो हड़ताल पर चली गई। तब बी एमसी ने इस योजना को छोड़ दिया


अरूणा शानबाग का कोई भी अपना सामने नहीं आया कभी भी। उसकी 42 साल तक देख रेख के ई एम अस्पताल की नर्सों ने ही करी।वो भी ख़ुशी से।


जर्नलिस्ट पिंकी विरानी ने एक पिटीशन सुप्रीम कोर्ट में डाली अरूणा शानबाग को इच्छा मृत्यु देने के लिए।जो कि 8 मार्च 2011 को खारिज कर दी गई। 


अरूणा की कहानी नामक एक गैर काल्पनिक पुस्तक 1998 में पिंकी विरानी द्वारा मामले में लिखी गई। दत्ता कुमार देसाई ने 1994-95 मराठी नाटक कथा अरूणाची लिखी , जिसे बाद में कोलेज स्तर पर प्रदर्शित किया गया।2002 में इस विनय आप्टे ने इस कहानी को मंचित भी किया।


गुजराती लेखक हरकिशन मेहता ने 1985 में लिखा था।अनुमोल ने 2014 में मलयालम फिल्म भी बन चुकी है इस कहानी पर। अरूणा की कहानी क्राइम पेट्रोल पर भी आ चुकी है।जून 2020 में, "कसाक" नाम की उल्लू वेब सीरीज रीलिज हुई जो इस मामले पर आधारित है।


42 साल तक ज़िंदा लाश बनकर रही अरूणा शानबाग , 18 मई 2015 मैं कोमा में ही चल बसी। जिसका अपना कोई नहीं था पूछने वाला उसके लिए कितने लोग खड़े थे। जिसके लिए अपना कोई आंसू बहाने वाला नहीं था।न जाने कितनी आंखें उसके लिए रोयी।

बलात्कार, एसिड अटैक ऐसे गुनाह है जिसकी सजा गुनहगार के लिए तो खत्म हो जाती है,पर पूरी जिंदगी सजा बन जाती उस लड़की के लिए जो कभी उस दर्द से उबर नहीं पाती । वो उस गुनाह की सजा भुगतती है जो उसने किया नहीं। गुनहगार सजा खत्म करके फिर से जिंदगी शुरू कर देता है पर वो लड़की क्या करें जिसे समाज भी उसके दर्द से बाहर नहीं आने देता। इसे किसका दुर्भाग्य कहें.....…



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