सफलता की कुंजी
सफलता की कुंजी
सफलता की कुंजी सिर्फ हमारी नेकनीयत, और मेहनत हैं।
बेईमानी से सफल होकर कुछ समय तो आराम से गुजर जाएगा, जिंदगी की कुछ मुश्किल भी खत्म हो जाएंगी।पर वो सफलता स्थाई नहीं होता है।
कहते हैं न कर्मों का फल अच्छा या बुरा जरूर मिलता है। सफलता या अफलता मिलनी भी सिर्फ हम पर ही निर्भर है। बिना कर्म करें फल कभी नहीं मिलता।
हम एक मेहनत की मिसाल एक उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की प्रज्ञा की कहानी सुनाते हैं जिन्होंने महिला सशक्तिकरण की एक नई मिसाल बना दी।
प्रज्ञा जिसका बचपन सिर्फ यही सुनते हुए बीता था कि"काश कि वो एक लड़का होती।"परम्परागत सोच से बंधे प्रज्ञा के मां और पिता ने प्रज्ञा को वो प्यार नहीं दिया जिसकी वो हकदार थी।जब प्रज्ञा 6 साल की थी।उसका दाखिला पास के ही प्राइमरी स्कूल में दाखिला करा दिया।एक रोज जब वो दोपहर को अपनी सहेलियों के साथ छुपन छुपाई खेलते खेलते वो एक पड़ोसी के घर छुप गई।घर के मालिक ने अकेले प्रज्ञा को देख बुलाकर डराकर उसका शारीरिक शोषण किया।6 साल की बच्ची पहले से ही संकुचित दिमाग और उस पर यह शारीरिक और मानसिक
चोट ने प्रज्ञा को झकझोर दिया।वो अपने परिवार से पहले ही डरी हुई थी, उसकी हिम्मत नहीं हुई घर में किसी को कुछ भी बताने की।
प्रज्ञा जब 18 साल की हुई तो उसके माता - पिता ने उसकी शादी तय कर दी। उनके लिए वो किसी सामान से ज्यादा नहीं थी।जिसे वो जल्दी ही ठीकाने लगाना चाहते थे।प्रज्ञा ने घर छोड़ने का फैसला लिया और लखनऊ से दिल्ली आ गई।
एक अकेली लडकी, दिल्ली जैसा शहर न कोई सहारा न कोई पहचान। उसे सिलाई,बुनाई का काम अच्छा आता था। उसने कई जगह आवेदन किए पर कहीं नौकरी नहीं मिली।प्रज्ञा की जान पहचान एक सर्वे आफिसर अजय से हुई और उसने प्रज्ञा की भी नौकरी लगवा दी। प्रज्ञा ने काफी पैसा जोड़ लिया,पर यह नौकरी उसे पसंद नहीं आ रही थी। अजय को पता चला कि प्रज्ञा नौकरी छोड़ने वाली है तब उसने उसे घर बुलाया और जोर जबरदस्ती करने की कोशिश करी पर प्रज्ञा के चिल्लाने पर वो भाग गया। पर अजय के इस रुप ने प्रज्ञा के बचपन के जख्म को कुरेद दिया। फिर वो अपने टूटे विश्वास को बटोर कर गुड़गांव आ गई।
अपने जोड़े पैसे से प्रज्ञा ने कपड़े का काम शुरू किया। आसपास के लोगों पसंद के हिसाब से कपड़े बनाने शुरू किए।एक दिन उसे पता चला वो अपने बनाए कपड़े ओनलाइन प्लेट फार्म पर भी बेच सकते हैं उसने चार मशीन रख ली और चार लोगों को रख कर "ओमिला फैशन" के नाम से अपना काम शुरू किया।प्रज्ञा का काम इतना बढ़ गया कि उसे और मशीन लगानी पड़ी प्रज्ञा के जुझारू पन और मेहनत ने उसे एक कम्पनी का मालिक बना दिया।
आज जिन मां पिता और भाई ने प्रज्ञा को बोझ समझा। आज वो सब उसके साथ रहते हैं और उस पर
गर्व करते हैं। आज प्रज्ञा ओनलाइन कारोबार में "ओमिला फैशन " की मालिक हैं। और उनका व्यापार विदेश तक फ़ैल चुका है।
प्रज्ञा अपने गुजरे कल को याद करके दुखी होती है उसने उन सब को कलमबद्ध कर रखी है। आज प्रज्ञा ने कई ट्रेनिंग सेंटर खोल रखे हैं।वो लड़कीयों को आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा देती है।वो कहती हैं लड़की तभी तक कमजोर है जब तक वो खुद को कमजोर समझती है।प्रज्ञा ने आज न जाने कितनी महिलाओं को जीना सिखा दिया।
प्रज्ञा की नेकनीयत और मेहनत उनकी सफलता की कुंजी है जिन्होंने बहुत लोगों की भी जीने की राह खोली। यही है असली सफलता,जो दूसरों को भी मुस्कान देती है।