चौराहे पर बैठी बुढ़िया
चौराहे पर बैठी बुढ़िया
आज भी रीशु जब स्कूल से लौट रहा था तो उसने उस बुढ़िया को चौराहे पर फिर बैठे देखा। वो रोज उसे वहीं देखता था।
रीशु और उसके मम्मी पापा इस शहर में थोड़े दिन पहले ही आए थे। उसके पापा का यहां तबादला हुआ था। इस लिए वे लोग ज्यादा यहां किसी को जानते भी नहीं थे। लेकिन चौराहे पर बैठी बुढ़िया रीशु के लिए पहेली बन गई थी, जिसे वो जल्द ही सुलझाना चाहता था ।
रीशु क्या सोच रहे हो? मां ने कमरे में आते हुए बोली।
कुछ नहीं मां । रीशु बोला। फिर बोला- मां आपने उस बूढ़ी औरत को देखा है।
कौन बूढ़ी औरत? मां ने पूछा।
वहीं औरत जो चौराहे पर बैठी रहती है। रीशु ने जवाब दिया।
हां बेटा, मैंने देखा है। क्या बात है उसके बारे में क्यो पूछ रहे हो। कुछ कहा उसने तुम्हें? मां ने पूछा।
नहीं मां। बस उसके बारे में जानने की इच्छा हो रही हैं। जानना चाहता हूँ कि वो कौन है और क्यो चौराहे पर बैठी रहती है।
हो सकता है कि वो वहीं रहती हो । तुम बेकार में परेशान हो रहे हो। मां ने कहा और कमरे से चली गई।
नहीं मां। उनके बारे में मैं जानकर रहूंगा। रीशु ने मन ही मन में ठान लिया।
शाम को रीशु खेलने के लिए नीचे कम्पाउन्ड में गया। और चुपचाप बाहर चौराहे पर पहुंच गया उस बुढ़िया के पास,
दादी कौन है ?आप यहां क्यों बैठी रहती है? रीशु ने पूछा।
कौन हो बेटा तुम ये सब क्यों पूछ रहे हो? बुढ़िया ने रीशु से पूछा।
मैं रीशु हूं। सामने वाली गली में रहता हूं, आपको रोज यहां बैठे हुए देखता हूं। इस लिए आपके बारे में जानने की इच्छा हुई।
ये कोई पार्क है क्या? जो मजे से बाते कर रहे हो, ये चौराहा है अपने घर जाओ जी भर कर बात करो। पुलिस वाले ने आकर दोनों को टोका।
चलिए दादी मेरे साथ मुझे आपकी पूरी कहानी जाननी है। रीशु बुढ़िया का हाथ पकड़ कर अपने साथ चलने की जिद करने लगा।
मगर बेटा तुम्हारे घर वालों को अच्छा नहीं लगेगा।
वो सब में देख लूंगा आप चलिए।
रीशु बुढ़िया को अपनी बिल्डिंग में ले आया। वहां सब लोग रीशु को ढूंढ रहे थे।
कहां थे तुम? सब कितना परेशान हो गए थे। मां आते ही रीशु से सवाल करने लगी।
सॉरी मां ! मैं इन्हे मिलने गया था । इनकी कहानी जानने के लिए।
ये वही हैं चौराहे पर जो बैठी रहती है।
बेटा चौराहे पर कोई अपनी मर्जी से नहीं बैठता। तुम्हारा बेटा बहुत अच्छा है बहुत अच्छे संस्कार है हमेशा खुश रहो । मैं चलती हूं। कहकर वो जाने लगी।
रूकिए माता जी रीशु के सवाल का जवाब तो दे दीजिए। हमें भी सुननी है आपकी कहानी।
क्या कहानी सुनाऊं अपनी । मेरा नाम माला हैं। और मैं एक शहीद सिपाही की मां हूं।
क्या ? सब लोग ये सुन कर चौंक गए। एक शहीद की मां का ये हाल । रीशु की मां सोच में पड़ गई। फिर बोली आप ठीक से सारी बात बताइए ताकि हम आपकी मदद कर सके।
मेरा बेटा कश्मीर में सेना में था। आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में वो शहीद हो गया। छोड़ गया मुझे अकेले।
मगर आप का घर, पेंशन आपको मिलता होगा।
हां बेटा सब था सब है । मगर जब कोई सहारा नहीं होता तो दुनिया फायदा भी बहुत उठाती हैं। अपने ही पराये हो जाते हैं।
मैं तो अपने बेटे के ग़म में थी, मेरी बेटी और उसके घरवालों ने मुझसे सब कुछ छीन लिया और घर से निकाल दिया और मैं इस चौराहे पर पहुंच गई।
सब लोग सुनकर हैरान थे। रीशु की मां ने उनसे घर का पता लिया। और उन्हें वहीं क्र्वाटर में रख लिया। सब लोगों ने उनकी जिम्मेदारी लें ली।
जो कुछ माता जी ने कहा सब ठीक है। हमें उनकी मदद करनी चाहिए।
हम कैसे करें उनकी मदद। उनके बेटे ने हम देशवासियों की खातिर अपनी जान दे दी। जीने का हक तो उन्हें भी है। फिर भी हमारी खातिर उन्होंने अपनी जान दी। उनकी माऺ की जिम्मेदारी हम सबकी हैं। रीशु के पापा बोले।
आप ठीक कह रहे हैं भाई साहब । माता जी अब यही रहेगी हमारे साथ। उनका हक भी हम उन्हें दिला कर रहेंगे। मगर कैसे?
हमने सोच लिया। रीशु ने अन्दर आते हुए बोला।
कैसे करोगे। रीशु के पापा ने पूछा।
सोशल मीडिया की मदद से। हम सब दादी की कहानी सोशल नेटवर्क पर डालेंगे। और उसे इतना वायरल करेंगे कि लोगों को दादी की सहायता करनी होगी।
सही कह रहा है रीशु, यह रास्ता ठीक रहेगा। लग जाओ सब काम पर। सब लोग मिलकर दादी को इंसाफ दिलाने की कोशिश में लग गए। और जैसे रीशु ने कहा था कुछ सरकारी लोगों का भी ध्यान भी इस पर गया। उन्होंने जब पता लगाया । सारी कहानी का पता चला। उन्होंने हस्तक्षेप करके दादी को उनका हक वापस दिया।
माता जी अब आप खुश हैं ।आप को आपका हक मिल गया।
बहुत बहुत धन्यवाद । आप लोगों ने गैर होकर भी मेरा साथ दिया।
आप हमारे देश के उस सिपाही की मां है जिसने हम अनदेखे देशवासियों के लिए जान दे दी। उसके बलिदान के आगे तो हमने कुछ भी नहीं किया।
एक सिपाही हमारे लिए अपनी जान दे सकता है क्या हम उसकी मां की जिम्मेदारी नहीं ले सकते।
आप सब के विचार बहुत अच्छे हैं। आप लोगों को कोई एतराज़ न हो तो क्या मैं यही रह सकती हूं।
हम आपको जाने देंगे ये आप ने सोच भी कैसे लिया। आप यहीं हम सब के साथ रहेगी।
चौराहे पर बैठी बुढ़िया अब रीशु की बिल्डिंग के बच्चों की दादी और बड़ों की माता जी हो गई थी। वो वहीं एक क्र्वाटर में रहने लगी। सब लोग मिलकर उनका ध्यान रखते । और वो भी अपने जीवन के दिन खुशी खुशी उन सब के साथ गुजारने लगी।
कितना अच्छा होता है कि लोग मिलकर एक शहीद सिपाही के परिवार की इज्जत करें, उन्हें अपना मानकर उनकी जिम्मेदारी लें। उसने आप की खातिर अपने घर का चिराग को खो दिया क्या आप ऐसे किसी घर में रोशनी नहीं कर सकते।
सोचिएगा! अच्छा लगेगा।