बूढ़ा पेड़
बूढ़ा पेड़
प्रणव और सृष्टि अपने दो बच्चों और पिता के साथ एक ही घर में रहते थे। प्रणव और सृष्टि दोनों ही नौकरी करते थे। बच्चों को प्रणव के पिता सम्हालते थे। पर कुछ वक्त से सृष्टि के व्यवहार में एक बदलाव आया अपने ससुर को लेकर । वो उन्हें वृद्धा आश्रम भेजने की जिद करने लगी।
प्रणव हर बार बात टाल जाता। सृष्टि भी ठान चुकी थी पापा को घर से निकालने का। पापा भी सब देख और समझ रहे थे।
प्रणव हमारी भी अपनी जिंदगी है इस तरह कब तक हम नौकरी से छुट्टी लेकर पापा को बार बार डाक्टर को दिखाते रहेंगे । बच्चे भी बड़े हो रहे हैं उनके बारे में भी सोचना है। सृष्टि गुस्से से प्रणव से बोली।
"वो मेरे पापा है जब भी उन्हें मेरी जरूरत होगी मैं उनके पास आऊंगा।"
"चाहे नौकरी छूट जाएं।" सृष्टि बोली।
"तुम कहना क्या चाहती हो।" प्रणव बोला।
"तुम पापा को वृद्धाश्रम छोड़ दो वहां उन्हें अपने हम उम्र लोगों का साथ मिलेगा और देखभाल भी अच्छी मिलेगी।"
"तुम्हारा दिमाग खराब है क्या। ऐसा कभी नहीं होगा।" प्रणव बोला। और कमरे से बाहर निकल गया सृष्टि वहीं खड़ी रह गई।
प्रणव कमरे से बाहर आया तो बाहर पापा दोनों बच्चों को फल खिला रहे थे। वो खड़ा खड़ा उन्हें चुपचाप देखता रहा। पापा भी प्रणव की हालत समझ रहे थे। प्रणव को उन्होंने अपने पास बुलाया और अपने पास बैठा कर अपने हाथ से उसे सेब का एक टुकड़ा खिलाया और बोले - बेटा तुम्हारी बुआ बहुत दिनों से कुछ दिन के लिए अपने पास बुला रही हैं। सोच रहा हूं कुछ दिन के लिए हो आऊं। उसे अच्छा लगेगा।
"पर अचानक आप वहां क्यों जाना चाहते हैं।" प्रणव ने कहा।
"कुछ दिन के लिए जाना चाहता हूं मेरा टिकट क्या दो।" पापा ने प्रणव से कहा और अपने कमरे में आकर सामान सूटकेस में लगाने लगे।
प्रणव ने अगले दिन का टिकट लाकर अपने पापा दे दिया।अगले दिन पापा अपनी बहन के घर चले गए। बच्चे बहुत दुखी थे अपने दादा जी के जाने से प्रणव भी दुखी था। पर सृष्टि बहुत खुश थी ।
"प्रणव पापा जब लौटे उससे पहले तुम वृद्धाश्रम जाकर सब तय कर लो । अब वो मुझे इस घर में नहीं चाहिए।" सृष्टि बोली।
"पापा बुआ के साथ ही रहेंगे अब वो वापस नहीं आ रहे हैं ।अब यह पूरा घर तुम्हारा है खुश रहो।"
"क्या । पापा तुम्हें बोल कर गये हैं।"
"हर बात जुबान से बोली जाए जरूरी नहीं। वो मेरे पापा है मैं उनकी खामोशी भी सुन सकता हूं। और वो मेरी। तुम नहीं समझोगे । तुम्हें मुझे समझाना भी नहीं।" कहकर वो कमरे से निकल कर अपने पापा के कमरे में चला गया। सृष्टि कमरे में अकेले रह गई।
सुबह सृष्टि ने नाश्ता जल्दी से बनाया प्रणव को दिया । बच्चों का लंच बाक्स तैयार किया।
मम्मा हमें लेट हो रहा है जल्दी करो हमारी स्कूल वैन छूट जाएंगी।
"हां चलो तुम्हें छोड़ आती हूं ।" कहकर वो जल्दी से बच्चों को लेकर निकली लेकिन जब तक पहुंची तब तक वैन जा चुकी थी।
"मम्मा आपने हमारी वैन छुड़वा दी। अब क्या करेंगे । घर चलो देखते हैं।"
"छूट गई वैन प्रणव बोला। पता था चलो स्कूल छोड़ देता हूं। "
"क्या मतलब है तुम्हारा सुबह से लगी हूं सब काम में । हो जाता है कभी कभी आज छुट्टी होने दो।"
"रोज तुम्हारे साथ पापा होते थे सारा काम कराते थे। बच्चों की वैन कभी नहीं छूटी वो समय से छोड़ते थे। आज तुम छुट्टी लोगी या मैं लूं।"
"क्यों छुट्टी की क्या जरूरत है। आज बहुत काम है आफिस में।"
"काम तो मुझे भी है। तो बच्चो के साथ कौन रहेगा घर पर। बच्चे शाम तक अकेले रहेंगे ।"
"यह तो मैंने सोचा ही नहीं। क्या करें।"
"बहुत से काम ऐसे हैं जो तुम्हें पता ही नहीं और पापा चुपचाप कर दिया कर दिया करते थे। सृष्टि पेड़ कितना ही बूढ़ा क्यों न हो जाए फल देना भी बंद कर दें। पर उसकी छाया से हमारा भविष्य हमेशा सुरक्षित रहता है।"
सृष्टि प्रणव की बात सुनकर चुप रही । फिलहाल उस दिन सृष्टि घर रुक गई। प्रणव आफिस चला गया। पर यह समस्या रोज की थी। प्रणव और सृष्टि शाम को घर लौटते थे और बच्चे स्कूल से दोपहर को लौट आते थे। अब सृष्टि को अपने ससुर की कमी खल रही थी। वाकई घर के ऐसे कई काम थे जो उसे पता ही नहीं थे। बच्चे तो उसने कभी सम्हाले ही नहीं थे। उसने पड़ोस में भाभी से बात करी वो स्कूल के बाद बच्चों को अपने घर रखने को तैयार हो गई।
सृष्टि को आराम मिला शाम को प्रणव घर लौट कर आया तो उसने यह खबर उसे दी। प्रणव मुस्कुरा दिया। अगले दिन सृष्टि थोड़ा और जल्दी उठने लगी। समय से बच्चों को वैन छोड़ने लगी। स्कूल के बाद बच्चे भाभी के पास शाम तक रहते। शाम को प्रणव और सृष्टि बच्चों को लेकर घर आते। पापा को गये दस दिन हो गए थे। पापा से फोन पर प्रणव और बच्चों की बात हो जाती थी। बच्चे हमेशा दादाजी से लौट आने को कहते और वो हमेशा टाल जाते।
धीरे धीरे महीना हो गया। सृष्टि खुश थी की वो अपना घर और काम दोनो मैनेज कर रही थी।मगर इस बीच बच्चे बहुत कमजोर हो रहे थे उन्होंने खेलना भी बन्द कर दिया था हमेशा थके थके रहते थे।
प्रणव इस बात को नोटिस कर रहा था। सृष्टि बच्चे इतने कमजोर और थके थके क्यों रहते हैं।
यह बात मैंने भी नोटिस की थी पर भाभी कह रही थी बच्चे बढ़ रहे हैं इस लिए ऐसा हो रहा है।
एक दिन प्रणव आफिस में था तभी उसका फोन बजा फोन पापा का था। प्रणव ने फ़ोन पिक किया -प्रणव स्कूल से फोन आया था दोनों बच्चे स्कूल में बेहोश हो गए हैं वो होस्पिटल में है। मैं और तुम्हारी बुआ आ रहे हैं तुम बच्चों को देखो जाकर। एक सांस में पापा ने सारी बात कह दी। और फोन काट दिया।
बच्चे होस्पिटल में है सुनकर प्रणव परेशान हो गया फौरन आफिस से निकला रास्ते में सृष्टि को फोन कर दिया। वो भी आफिस से निकल कर होस्पिटल पहुंची।
"मैम क्या हुआ बच्चों को। सुबह तक ठीक थे वो अचानक क्या हुआ।" सृष्टि टीचर से बोली।
"अचानक । मैम आपके बच्चे पिछले एक महीने से कितने बैक हो रहे हैं आप जानती है। उनका होमवर्क कम्पीट नहीं है।इतने एक्टीव बच्चे एक दम से इतने सुस्त हो गये। आप ने कल उन्हें मारा पूरी कमर पर निशान है। उनके दादा जी कितना ध्यान रखते थे उनका समय समय पर स्कूल आते थे।"
"मैम हमने उन पर हाथ नहीं उठाया।" प्रणव बोला।
"आइए अंदर बच्चों को देखिए क्या हालत हो गई है।" डाक्टर ने कहा।
दोनों बच्चे अंदर बेड पर बेहोश थे उनके शरीर पर कई जगह चोट के निशान थे ।
"यह सब कैसे हुआ हमें नहीं मालूम।" सृष्टि बोली।
"बच्चे आपके है या किसी और के?" पुलिस इंस्पेक्टर अंदर आता हुआ बोला।
"हमने बुलाया है इन्हें। आप इन्हें सारी बात बताइए।" डाक्टर बोली।
"प्रणव बच्चे कैसे हैं?" पापा ने अंदर आते हुए बोले।
"इंस्पेक्टर साहब यह मेरे पापा है पिछले एक महीने से बाहर थे।" फिर शुरु से अब तक की सारी बात बताई।
"यानि जो कुछ हुआ है भाभी जी बताएंगी। चलिए उनसे भी पूछते हैं । फिर डाक्टर से पूछा- बच्चों की क्या हालत है।"
खतरे से बाहर है लेकिन काफी चोट है काफी दिनों से कुछ ढंग से खाया नहीं है शायद काफी कमजोर है।क्या हालत कर दी बच्चों की तुम दोनों ने। बुआ बोलीं।
चलिए आप दोनों भाभी जी के पास। इंस्पेक्टर बोला।
वो दोनों सीधा पड़ोस में गए। पुलिस देखकर भाभी जी घबरा गई जब पता चला बच्चे अस्पताल में है तो पूरी तरह से घबरा गई- मैंने कुछ नहीं किया। वो तो इस पर तरस खाकर बच्चों को अपने घर रख लिया।
अरे सृष्टि यह झूठ बोल रही है पूरे घर का काम कराती थी तेरे बच्चों से। खाना तक नहीं देती थी और जो लंचबॉक्स तुम देती थीं वो भी छीन कर खा जाती थी। कल बर्तन धोते हुए कप टूट गया तो खूब मारा तेरे बच्चों को इसने।दूसरी पड़ोसन बोली।
मुझे पहले क्यों नहीं बताया।
कितनी बार कोशिश करी पर तुम सुनती कब थी। जब अपनों की जगह गैरों पर भरोसा करोगे नुकसान तो उठाना पड़ेगा ना।पड़ोसन बोली।
सही कहा आपने भाभी जी। प्रणव बोला। इंस्पेक्टर साहब गिरफ्तार कर लिजीए इन्हें।
अस्पताल लौट कर आए तब तक दोनों बच्चे होश में आ चुके थे। प्रणव और सृष्टि कमरे में पहुंचे तब पापा दोनों बच्चों को फल खिला रहे थे और बुआ फल काट रहे थे। आज बच्चों के चेहरे पर वही खुशी थी जो पहले थी।
दादा जी अब तो आप हमें छोड़कर नहीं जाओगे न।
नहीं अब मैं नहीं जाने दूंगी पापा को। सृष्टि बोली - पापा मुझे माफ कर दो। सब कुछ अच्छा हो रहा था मैं समझी हम दोनों की वजह से हो रहा है यह समझी ही नहीं आप है इस लिए सब अच्छा हो रहा था। मैंने सब बिगाड़ दिया।
नहीं बेटा कोई बात नहीं हो जाता है कामयाबी जब दिमाग पर कब्जा जमा लेती है तब इंसान गलती कर बैठता है। अपने पराए में फर्क भूल जाता हैं। सब भूल जा। अपने घर को सम्भाल।
प्रणव तुमने सही कहा था। पेड़ बूढ़ा हो जाएं फल न दे पर उसकी छाया में हमारा भविष्य सुरक्षित रहता है।