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Gunjan Johari

Inspirational

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Gunjan Johari

Inspirational

माँ की पाठशाला

माँ की पाठशाला

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सुबह का समय। पहाड़ी कस्बा नीले-सफेद कोहरे की चादर में लिपटा हुआ है। सूनी सड़कें, कहीं-कहीं पर जमीं बर्फ पर पड़ती धूप की झलक चमक पैदा कर रही है। वही पर धीरे-धीरे एक साड़ी में लिपटी एक महिला जो लंबा ओवरकोट पहने, जूते घिसटती, एक बैग अपने कंधे पर टांगे, तेज़ क़दमों से अस्पताल की ओर बढ़ रही है, यह है डॉ. वसुंधरा मिश्रा। उसके चेहरे पर नींद की थकान और जिम्मेदारी का बोझ साफ़ झलकता है।

डाक्टर वसुंधरा मिश्रा..... जो अकेली रहती है इन पहाडों पर। और लोगों की सेवा कर रही है। इनके पास सबकुछ है धन दौलत और शोहरत, पर बांटने वाला कोई नहीं। परिवार कहाँ है, कोई नहीं जानता पर इतना पता है कि माँ न बन पाने के कारण इनके पति ने इनसे तलाक ले लिया था। 

"कभी-कभी ज़िंदगी तुम्हें वो नहीं देती जो तुम चाहते हो, लेकिन वो देती है... जो किसी और की ज़रूरत बन जाए...।"डाक्टर वसुंधरा ने अब सबकी सेवा को ही अपना धर्म मान लिया और अब वो यही करती है। 

जैसे ही वसुंधरा अस्पताल की ओर मुड़ती है, पीछे से कोहरे में से एक नर्स हांफती हुई भागती आती है। 
नर्स घबराई हुई, आँखों में डर और बेचैनी से कहती है-
"मैम! गेट पर... अस्पताल के गेट पर कोई नवजात बच्चा छोड़ गया है... शायद मरा हुआ हो!"

वसुंधरा ठिठक जाती है। उसकी सांसें थम सी जाती हैं। वह नर्स की आँखों में देखती है... नर्स की आवाज़ अब भी गूंज रही है, लेकिन वसुंधरा के कानों में गूंजता है एक शिशु का रोना।


अस्पताल के गेट पर एक फटे पुराने कम्बल में लिपटा एक छोटा सा बच्चा पड़ा है। 

वसुंधरा पास आती है, धीरे-धीरे झुकती है। एक पल को सब शांत। लेकिन तभी... बच्चा बहुत धीमे से रोता है। एक मरा हुआ समझा गया जीवन अचानक सांस लेता है।

वसुंधरा की आँखें चौड़ी हो जाती हैं, वो कांपते हाथों से बच्चे को उठाती है, उसकी नब्ज़ टटोलती है।

वसुंधरा धीरे से, कहती है-"ये मरा नहीं है... ये तो ज़िंदा है…!"

धीरे धीरे कोहरा छंटने लगता है, और सूरज की एक किरण उस नवजात पर पड़ती है। 

अस्पताल के अंदर बेबी वार्ड में। बच्चे को अब एक इनक्यूबेटर में है। वसुंधरा डॉक्टरों की टीम के साथ बच्चे की रिपोर्ट देख रही है। उसके माथे पर चिंता की लकीरें साफ़ हैं।

वसुंधरा धीमे स्वर में कहती है-"ब्रेन एक्टिविटी बहुत धीमी है, इस बच्चे को कॉँगेनिटल ब्रेन डिफिशिएंसी है। शायद ये कभी न चल पाए, न ठीक से बोल पाए...।"

इतना कहकर वसुंधरा खामोश हो जाती है। उसकी आंखें बच्चे की ओर देखती हैं — मासूम चेहरा, आंखें बंद, सांसें धीमी।

"शायद इसी लिए इस बच्चे को इसके परिवार ने यहाँ छोड़ दिया। क्योंकि यह सबके लिए बोझ ही है।" एक नर्स बोली। 

"चुप रहो। हमारा काम यह कयास लगाना नहीं है। यहाँ जो भी
जिंदगी आए वो अनमोल है।"उसकी आँखों में इस समय प्रेम और ममता दिख रही है और फिर आगे वसुंधरा ने कहा -

"तो क्या हुआ अगर ये कमजोर है? इसका जीना भी किसी मकसद से जुड़ा है… शायद मैं इसकी ज़रूरत बनूं, और ये मेरी।"

वो धीरे से बच्चे की उंगलियों को छूती है, और बच्चा बहुत हल्का सा अपनी उंगली हिलाता है।

"कभी-कभी हमें वो नहीं मिलता जो हम चाहते हैं... लेकिन जो मिलता है, वो हमें पूरा कर देता है।"

 रात हो चुकी है पहाडो पर वसुंधरा उस बच्चे को अपने घर ले आई है। 
कमरे में सन्नाटा पसरा है। हल्की-हल्की हवा खिड़की के पर्दे हिला रही है। घर का एक कोने में भगवान की मूर्ति से रोशन है एक धीमा-सा दीया टिमटिमा रहा है, जैसे कोई उम्मीद अब भी बाकी हो।

वसुंधरा एक पुरानी झूलेनुमा कुर्सी पर बैठी है। उसके चेहरे पर दिन भर की थकान है, लेकिन गोद में सोया बच्चा जैसे उसकी रगों में एक नई ऊर्जा भर रहा हो। बच्चे की छोटी-छोटी अंगुलियाँ उसकी उंगलियों को पकड़ने की कोशिश कर रही हैं।

वसुंधरा मन में, बहुत धीमी, कोमल आवाज़ में कहती है-
"माँ बनने की दुआ मैंने कितनी बार माँगी थी… हर बार खाली हाथ लौटी।सोच लिया था कि अब ये मेरा नसीब नहीं।
पर अब लगता है... शायद भगवान ने मुझे देवकी नहीं, यशोदा बनने का काम सौंपा है।"

वो बच्चे की ओर मुस्कुरा कर देखती है, धीरे-धीरे उसके माथे पर हाथ फेरती है। बच्चा आँखें बंद किए हल्का मुस्कुरा देता है।

वसुंधरा धीरे से, प्यार से कहती है-"तू मेरे घर आया नहीं… तू मेरे जीवन में उजाला बनकर उतरा है।नाम चाहिए तुझे… कुछ ऐसा जो तुझे पहचान दे… ताक़त दे… और मुझे भी।"

वो एक पल को भगवान की मूर्ति की ओर देखती है, शिव की एक प्रतिमा मुस्कुराते हुए प्रतीत होती है।

वसुंधरा थोड़ी देर सोचकर बोलती है-"आर्यन…तू आर्यन है।
शुद्ध, उज्ज्वल, तेजस्वी। चाहे तुझे दुनिया कमजोर समझे…
पर मेरी नज़रों में तू सबसे बड़ा योद्धा है।"

वो बच्चे को सीने से लगाकर आंखें बंद करती है। दीया एक बार तेज़ जलता है, जैसे इस नाम पर ईश्वर की मुहर लग रही हो।

कमरे की दीवार पर परछाईं बनती है एक माँ और उसके बच्चे की… जो अब एक दूसरे की किस्मत बन चुके है। 

देखते ही देखते पांच साल गुजर जाते हैं। आर्यन उम्र और शरीर से तो बढ़ रहा है पर दिमाग से....... दिमाग से नहीं। वो व्हील चेयर पर ही रहता है चल नहीं सकता और सही से बोल भी नहीं पाता वो। लेकिन आर्यन वसुंधरा की जिंदगी का मकसद बन चुका है। 

वसुंधरा आर्यन के साथ प्रिंसिपल के ऑफिस में दाखिल होती हैं, एडमिशन के लिए। आर्यन की आंखों में उत्सुकता है, वो अपनी नजरों से चारों ओर देख रहा है।प्रिंसिपल फाइलें पलटता है,उसकी नज़रों में एक झिझक और उपेक्षा साफ देख रही है वसुंधरा। 

प्रिंसिपल एक फॉर्मल हंसी के साथ कहता है-
"मैम, मैं आपकी भावना समझता हूँ… लेकिन देखिए, हम… हम ऐसे बच्चों को रखने के लिए प्रशिक्षित नहीं हैं।
यह नार्मल क्लासेज़ में कैसे एडजस्ट करेगा? टीचर्स का भी एक लिमिट होता है…।"

वसुंधरा की पकड़ आर्यन के हाथ पर और मज़बूत हो जाती है। वो थोड़ी देर प्रिंसिपल की आंखों में देखती है, फिर शांत मगर तेज आवाज़ में बोलती है—
"समस्या बच्चे में नहीं है, सर… समस्या आपकी सोच में है।
शब्दों से नहीं, दिल से पढ़ाइए।और अगर ये स्कूल सिर्फ टॉपर्स के लिए है…तो यकीन मानिए, ये समाज बेवकूफ़ ही रह जाएगा।"

प्रिंसिपल थोड़ा असहज होकर कुर्सी पर पीछे झुकता है।और 
प्रिंसिपल फिर बोलता है-"मैम, हमें अफ़सोस है... हम 'स्पेशल केसेज़' को संभालने के लिए डिज़ाइन नहीं हैं। आपको ऐसे बच्चों के लिए कोई स्पेशल स्कूल तलाशना चाहिए।"

आर्यन की आंखें झुक जाती हैं। वसुंधरा उसकी ओर देखती है, फिर खड़ी हो जाती है और तेज आवाज में बोलती है-

"ठीक है, सर। आप जैसे सिस्टम से मेरी उम्मीद नहीं थी…
अब से मेरा घर ही मेरा स्कूल होगा और मैं वादा करती हूँ…
ये बच्चा एक दिन ऐसा कुछ सीखेगा,जो आपकी किताबों में कभी नहीं मिलेगा।"वो आर्यन के साथ बाहर निकल जाती है। 

उसी रात गार्डन में झुले पर लेटा आर्यन टकटकी लगाए तारों को देख रहा है। उसके पास एक खिलौना दूरबीन है।

वसुंधरा हँसते हुए : "हर रात तारे तुम्हें देखकर मुस्कुराते हैं बेटा... लगता है तुम्हारी उनसे कुछ ज़्यादा ही बनती है।"


आर्यन अब बड़ा हो चुका है उसका कमरा अब एक छोटा-सा लैब जैसा दिखता है। दीवार पर कुछ सर्टिफिकेट्स, लैपटॉप, स्क्रीन, कोड की लाइनें, इलेक्ट्रॉनिक पार्ट्स... बीच में बैठा है आर्यन , वो अब भी व्हीलचेयर पर ही है, लेकिन चेहरे पर आत्मविश्वास, आँखों में चमक है।जो वसुंधरा की तपस्या की सफलता बयान करती है। 

उसके सामने तीन स्क्रीनें हैं ,एक पर कोड चल रहा है, दूसरी पर वॉयस-सिंथेसाइज़र ओपन है, और तीसरी पर एक इंटेलीजेंट यूआई इंटरफेस। उसकी उंगलियां तेजी से टाइप कर रही हैं। और पीछे से वसुंधरा खड़ी देख रही है आर्यन को। 

वसुंधरा धीमे, आंखों में नमी और गर्व से कहती है -"तू बोल नहीं सकता बेटा...! पर आज तेरा सिस्टम सैकड़ों को बोलना सिखाएगा...!"

आर्यन कुछ टाइप करता है। फिर स्पीकर से एक मीठी, कंप्यूटराइज़्ड आवाज़ आती है— "मां…!"

वसुंधरा की आंखें भर आती हैं। वो कुछ नहीं कहतीं। बस पास जाकर उसके सिर पर हाथ फेरती हैं। धीमे से झुकती हैं और माथा चूमती हैं। उस क्षण में कोई शब्द नहीं होता , पर सारी दुनिया उस खामोशी को सुन सकती है।

एक बड़ा हॉल है Tech Innovation for Social Good Awards. आज आर्यन को उसके बनाए सोफ्टवेयर के लिए सम्मानित किया जा रहा है। 

हजारों लोगों की भीड़ है। मंच सजा हुआ है। स्क्रीन पर आर्यन का नाम चमकता है।वो व्हीलचेयर से धीरे-धीरे मंच पर आता है , शांत, सहज, और सबसे अलग। उसके पीछे खड़ी हैं वसुंधरा ....अब भी उतनी ही सादी, लेकिन चेहरे पर संतोष और तेज का अनोखा संगम है।आज उसकी तपस्या का फल का दिन है। 

होस्ट माइक पर, भावुक स्वर में बोलता है-
"आप सबके सामने हैं आर्यन , जिसने अपनी क्षमता को अपनी शक्ति बना दिया।जिसने एक ऐसा सॉफ़्टवेयर बनाया जो बोल नहीं पाने वाले बच्चों को आवाज़ देता है।
पर सबसे बड़ी आवाज़ है उसकी माँ का विश्वास, जिसने इन्हें इस लायक बनाया।हम आज उन्हें भी सम्मानित करते हैं। "

तालियाँ बजती हैं। आर्यन मंच के केंद्र में आता है, स्क्रीन पर एक टेक-स्पीच विंडो खुलती है। वो टाइप करता है… सब चुप हैं। फिर—

स्पीकर आर्यन की आवाज़ में बोलता है-
"मैं आज यहां हूं क्योंकि मेरी मां ने मुझमें ममत्व नहीं, विश्वास भरा।उन्होंने मुझे दया से नहीं, अवसर से सींचा…और सच्चा प्रेम दिया , जिसमें न शर्त थी, न कोई संदेह।आज मेरी जीत का दिन नहीं,मेरी माँ की तपस्या के फल का दिन है।"

फिर वो एक पल ठहरता है है लोग सांस रोक लेते हैं। फिर अगली लाइन आती है-

स्पीकर पर - "प्रेम वह नहीं जो पूर्णता में ढूंढा जाए,प्रेम वह है जो अधूरे को भी पूर्ण कर दे। और मां… वो हमेशा यही करती है।"

पूरे हॉल में सन्नाटा टूटता है, तालियों की गूंज से। कुछ लोग रो रहे हैं। सब वसुंधरा को देखते हैं,उनकी आंखों में नमी है, पर चेहरा शांत और गर्व से चमक रहा है, जैसे खुद ब्रह्मा ने उसे कोई चमत्कार दिया हो।

 स्क्रीन पर शब्द उभरते हैं—"Inspired by true love.
A mother's courage. A son's voice."

𝒢𝓊𝓃𝒿𝒶𝓃 𝒿ℴ𝒽𝓇𝒾 






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