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Gunjan Johari

Inspirational

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Gunjan Johari

Inspirational

हौसले का कैनवास

हौसले का कैनवास

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सूरज की पहली किरणें हल्के-हल्के आकाश में घुल रही हैं। आसमान गुलाबी, नारंगी और हल्के सुनहरे रंगों में रंगा हुआ है, जैसे कोई कलाकार अपने ब्रश से उसे सजा रहा हो। पंछियों की चहचहाहट हवा में गूंज रही है, और हल्की-सी ठंडक के साथ ताज़गी भरी हवा उसके चेहरे को छू रही है।


एका बालकनी में बैठी , इस खूबसूरत नज़ारे को अपनी आंखों में कैद कर रही है। उसके सामने दूर-दूर तक फैले हरियाले पेड़ है, जिनकी पत्तियाँ सुबह की रोशनी में चमक रही है। आसमान में उड़ते पक्षी उसे एक अधूरे सपने की तरह लग रहे हैं—स्वतंत्र, हल्के, बेफिक्र। उसने यह सब देखकर अपनी आँखें बंद कीं और गहरी सांस ली।


पर तभी… उसकी नज़र अपने हाथों पर गई।


उसकी उंगलियाँ वहीं है, पर बेजान। वो हिलती भी नहीं, कांपती नहीं , ब्रश पकड़ने की कोशिश तक नहीं कर सकती अब वो।यह सोचकर उसकी आँखों में नमी आ गई।


"कितना अजीब है ना… मैं इस खूबसूरती को देख सकती हूँ, महसूस कर सकती हूँ… पर इसे अपने कैनवास पर उतार नहीं सकती।" उसकी आवाज़ में एक दर्द है, एक छूटा हुआ ख्वाब, एक खोई हुई पहचान है उसकी। जो कल तक उसकी पहचान थी आज एक अधूरी ख्वाहिश बनकर रह गई है। 


उसने अपने करीब रखे कैनवास को देखा—खाली, बिल्कुल खाली। पहले इसी सफेदी पर वह अपनी दुनिया बनाती थी, रंगों से बातें करती , लेकिन अब… अब यह कैनवास उसके दर्द का आईना बन चुका है।


तभी हल्की हवा चली, और पास रखा ब्रश ज़मीन पर गिर पड़ा।


एका ने उसे देखा, और हल्की-सी आवाज में बोली—"ये भी मेरी तरह ही बेबस हो गया है।"


"किसने कहा कि तुम बेबस हो।" उसके पीछे से एक आवाज आई! 


"भाई।" एका पीछे पलटी वहाँ कृतार्थ खड़ा है एका का भाई। 


"भाई। आप आ गए।" एका ने कहा और दौड़ कर उसके गले लग गई। 


"अरे एका कब से रोने लगी मेरी बहन तो सबको रूलाती है।" कहकर कृतार्थ हंसने लगा। पर एका के आसूं रूक नहीं रहे थे। 


कृतार्थ इंजीनियर है वो एका का बड़ा भाई है।और बैंगलौर में जॉब करता है। एका के पापा भी इंजीनियर है रेलवे में।पूरा परिवार एजुकेटेड है उसकी मम्मी हाऊस वाइफ है।


एका बचपन से ही एक असाधारण प्रतिभा की धनी थी। जब बाकी बच्चे खिलौनों से खेलते, वह रंगों से खेलती थी। उसके छोटे-छोटे हाथ जब भी ब्रश पकड़ते, तो ऐसा लगता मानो वे जादू कर रहे हों। उसकी बनाई तस्वीरें सिर्फ तस्वीर नहीं होती थीं, बल्कि हर रंग जैसे अपनी कहानी कहता हो।


एका की सुंदरता भी उतनी ही अनोखी थी जितनी उसकी कला। बड़ी-बड़ी, भावनाओं से भरी आंखें, गुलाबी होंठों पर हमेशा एक हल्की-सी मुस्कान, और खुले बालों में अटकी एक-दो रंगों से सनी लटें—वो सच में किसी खूबसूरत पेंटिंग जैसी लगती है। लेकिन उसकी सबसे बड़ी खूबसूरती थी उसका आत्मविश्वास, उसकी ज़िद, जिससे वह अपने सपनों को पूरा करने के लिए जी रही थी।लेकिन आज वो आत्मविश्वास खो रहा है उसका। 


स्कूल में उसकी बनाई पेंटिंग्स की धूम थी। कोई भी प्रतियोगिता हो, कोई भी इवेंट हो—एका का नाम सबसे आगे होता। उसके बनाए पोस्टर्स स्कूल की दीवारों की शोभा बढ़ाते, उसके स्केचेज़ टीचर्स के कमरों में सजते। हर कोई मानता था कि एका एक दिन महान कलाकार बनेगी। लेकिन घर की दीवारों में उसकी कला की कोई जगह नहीं थी।


उसके पापा मम्मी उसे डॉक्टर या इंजीनियर बनाना चाहते थे। उनके लिए पेंटिंग सिर्फ एक 'शौक' है, जिसे बड़े होकर छोड़ देना चाहिए। जब भी एका अपने सपनों के बारे में बात करती, उसे एक ही जवाब मिलता—


"ये सब टाइमपास है, इससे ज़िंदगी नहीं चलती!"


धीरे-धीरे, रिश्तेदारों ने भी ताने देने शुरू कर दिए—"अरे, लड़की है, शादी के बाद कौन इसे पेंटिंग करने देगा?"


"इतने रंगों में घुसी रहती है, पढ़ाई पर ध्यान दे, नहीं तो कुछ नहीं बनेगी!"अक्सर माँ कहती थी। 


लेकिन एका को पढ़ाई में ज़्यादा दिलचस्पी नहीं थी। वह औसत थी, लेकिन जब भी उसके सामने कैनवास आता, उसकी आत्मा जैसे उसमें समा जाती।


एक दिन, उसने माँ से कहा,"माँ, मैं एक आर्टिस्ट बनना चाहती हूँ।"


माँ ने ठंडी सांस भरी,और बोली-"बेटा, इस दुनिया में पेट पालने के लिए नौकरी चाहिए, सपने नहीं।"


एका का दिल टूट गया, लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसने तय कर लिया कि चाहे जो हो, वह अपनी पहचान बनाएगी।


मगर आज सब कहानी बदल चुकी है। आज एका अपनी रंगों की दुनिया से बहुत दूर आ चुकी है। उसके हाथो की उगलियां तो है पर वो उनसे फिर कभी ब्रंश नहीं उठा सकती, बेजान हो चुकी है उसकी उगलियां। 


सूरज धीरे-धीरे और ऊपर उठ रहा था, लेकिन एका के भीतर की रात अब भी नहीं ढली थी।


"एका बस चुप हो जा। मैं आ गया हूँ न अब सब ठीक हो जाएगा।"


"कृतार्थ अब तुम ही समझाओ इसे। रो रोकर बुरा हाल कर रखा है इसने। जो सच है वो जितनी जल्दी मानेगी उतना ही सही होगा। सारे दिन पेंटिंग करती रहती थी आखिर वही शौक इसके लिए मुसीबत बन अपाहिज बनाकर छोड़ दिया ।" माँ ने कहा। 


"माँ। यह क्या कह रहे हो आप।"माँ की बात सुनकर कृतार्थ ने तेज आवाज में कहा।


माँ की बात सुनकर एका वहाँ से अपने कमरे में दौड़ कर चली गई। "माँ आप को इस समय उसकी हिम्मत बनना चाहिए आप ही ऐसी बातें करके उसकी हिम्मत तोड़ रही है।"


"और हमारी हिम्मत बेटा। कितना मना किया था उस दिन जाने के लिए, पर वो आर्ट एग्जिबिशन जैसे जिद बना ली थी। वहाँ पहुँच भी न सकी और जिंदगी भर के लिए एक दाग लगा लिया जीवन में।अब क्या करेगी जिंदगी में?"


"माँ,,,,,,। ऐसा न कहो।" कृतार्थ ने कहा और एका के कमरे कि ओर चल दिया। 


एका अपने कमरे में पंलग पर बैठी याद कर रही है उस दिन को। 


शहर में एक आर्ट एग्जीबिशन थी, और उसके कोलेज की ओर से उसे मौका मिला था अपनी पेंटिंग रखने का। वो बहुत खुश थी यह मौका पाकर। 


उस एग्जिबिशन के लिए एका ने एक बहुत खूबसूरत पेंटिंग बनाई थी। उसे जमा करने का आखिरी दिन था, और वह जल्दी में थी। उसने अपनी स्कूटी ली,और हवा से बातें करते हुए, अपनी आखों में अपने सपनों की चमक लिए चली जा रही थी।


वह दिन उसकी ज़िंदगी का सबसे काला दिन था।

और अचानक अचानक…एक ट्रक उसकी ओर तेजी से बढ़ा…

तेज ब्रेक की आवाज़…और झटके से गिरती एका… और फिर अंधेरा छा गया उसकी आखों के सामने।


जब उसकी आंख खुली, वह अस्पताल में थी। उसके चारों ओर डॉक्टर, मशीनों की बीप-बीप की आवाज़, और माँ-पापा के चिंता से भरे चेहरे।वो देख पा रही है पर वो कुछ बोल नहीं पा रही।वो उठना चाह रही है पर वो उठ नहीं पा रही। 


डॉक्टर ने धीमी आवाज़ में कहा,"आपकी बेटी अब अपने हाथों से कुछ नहीं कर पाएगी। उसकी उंगलियों की नसें बुरी तरह डैमेज हो गई हैं।वो अब कागज तक नहीं उठा पाएगी।"


यह बात सुनते ही एका को ऐसा लगा, जैसे किसी ने उसकी आत्मा छीन ली हो।


माँ के आंसू गिरने लगे, लेकिन पापा की आंखों में एक अलग ही दर्द है।"मैनें मना किया था बाहर निकलने को,बोला था ये सब छोड़ दो!"माँ की आवाज उसके कानों में पड़ रही थी।


कुछ दिनों बाद, जब वह घर लौटी, तो रिश्तेदारों के ताने शुरू हो गए—


"अब इसका क्या होगा?"

"कोई लड़का इससे शादी भी नहीं करेगा!"

"देखा, भाग्य में जो लिखा होता है, वही होता है।इतनी सुंदर पढी लिखी मगर किस्मत कितनी खराब अपाहिज होगई।"


अपाहिज,,,, यह शब्द उसके कानों में तेजाब की तरह गये। सब अपने अपने तरीके से उसे अपना अफसोस जता रहे थे, पर किसी को भी उसकी होने वाली तकलीफ से कोई मतलब नहीं था। वो चुपचाप सबकी बातें सिर्फ सुन रही है। 


एक दिन उससे मिलने उसका दोस्त रेयांश आया, जिससे वह बेइंतहा प्यार करती है। "ओह रेयांश तुम कहाँ थे? मैं कितना याद कर रही थी तुम्हें, मिस कर रही थी?"


"ऑफिस के काम से बाहर गया था। कल रात ही लौटा हूँ।"


"तुमने कोल भी नहीं किया?"


"हाँ बिजी था।"


रेयांश सामने बैठा रहा चुपचाप, लेकिन उसकी आंखों में अब वो प्यार नहीं है।उसका यह अजीब बर्ताव देख पा रही है एका, पर उसका दिल मानने को तैयार नहीं रेयांश के इस बदले रूप को मानने के लिए। 


"एका, सच कहूँ तो अब तुम पहले जैसी नहीं रहीं… तुम्हारी आर्ट ही तुम्हारी पहचान थी, और वो अब नहीं रहा… मैं तुम्हें इस हाल में नहीं देख सकता।अब तुम सिर्फ एक,,,,,,,,।"कहते कहते रेयांश चुप हो गया। 


"बोलो न! अपनी बात पूरी करो रेयांश। कहो अब मैं अपाहिज हो गई हूँ एक रिस्पोंसबलिटी बन गई हूँ और तुम दूर जाना चाहते हो पल्ला झाड़ लेना चाहते हो।"एका गंभीर होकर रेयांश की बात को पूरा करती है। उसकी आखें नम है। 


"तुम आजाद हो रेयांश। तुम जा सकते हो मेरी जिंदगी से। क्योंकि तुम ने कभी इश्क़ किया ही नहीं मुझसे, अगर किया होता तो तुम्हे मैं अपाहिज दिखती ही नहीं। क्योंकि इश्क़ सिर्फ इश्क़ को पहचानता है उसे जिस्म और कमियों से कोई मतलब ही नहीं।" रेयांश ने उसकी बातो को सुना और बिना कुछ कहे ही चला गया। एका की आँखों से आँसू गिर पड़े।"तो ये था तुम्हारा प्यार?"बस यही शब्द निकले एका के मुह से रेयांश को जाता देखकर। पीछे रह गई एक टूटी हुई एका… और एक खाली कैनवास, जिस पर अब रंग नहीं।


वो धीरे धीरे टूट रही है जो कुछ उसकी जिंदगी में हुआ, उसने उसकी जिंदगी से जुड़े सबके वो रंग दिखा दिए जो उससे छुपे हुए थे, पर इन बदलते रंगो ने उसका दिल जरूर छलनी कर दिया था। 


"एका ,,,,,एका सुनो,,,,,?"कृतार्थ की आवाज उसे फिर से वर्तमान में ले आई। 


कृतार्थ कमरे में आया एका की आखों से आंसू आ रहे थे पर वो अपने आसूं खुद पोछ भी नहीं पा रही थी वो अपने कंधे का सहारा ले रही है आंसू पोंछने के लिए। एका को ऐसे करते देख कृतार्थ के दिल पर एक चोट पहुंची। 


पूरे घर में एक सिर्फ वही था जो एका को सपोर्ट करता था। उसकी कला को पहचानता था। उस दिन भी एका कृतार्थ के कहने पर ही अपनी पेंटिंग देने जा रही थी। 


"भाई, आप जानते हैं।मम्मी और पापा को बिल्कुल नहीं पसंद मेरा यू पेंटिंग करना। वो मुझे कभी इस शौक को करियर में बदलने नहीं देगें।"


"एका तू जा और अपनी पेंटिंग एग्जिबिशन में देकर आ। देखना जब वो दोनों तेरी पेंटिंग इतनी बड़ी एग्जिबिशन में देखेगें वौ भी गर्व करेगें तूझ पर। तू जा मेरी बात मान।"


इन बातों क़ो सोचकर कृतार्थ की आखों में भी आंसू आ गए। पर वो एका के सामने नहीं कमजोर होना चाहता है वो यहाँ सिर्फ एका के लिए आया था। 


"एका ,,, एका चल मेरे साथ।"कृतार्थ बोला। 


"कहाँ?"


"बाहर कहीं चलते हैं! चल।"कृतार्थ ने कहा और एका के साथ बाहर एक पार्क में आ गया। 


वो देख रहा है एका की जिंदगी से धीरे धीरे सब कुछ खत्म हो रहा है उसके पेंटिंग, सपने, प्यार सब कुछ और खुद एका भी।पर वो अपनी बहन को यूँ खत्म होते नहीं देख सकता था। 


वो दोनों एक पार्क में आ गये। एका और कृतार्थ दोनों पार्क में एक बेंच पर बैठ गए। शाम का समय है, हल्की ठंडी हवा बह रही है, जो पेड़ों की पत्तियों को हल्के-हल्के हिला रही थी। चारों ओर हरियाली फैली है, घास पर छोटे-छोटे फूल खिले हुए हैं, और रंग-बिरंगी तितलियाँ उन पर मंडरा रही है।


बच्चों की हँसी और किलकारियाँ पूरे माहौल में घुली हुई हैं। कुछ बच्चे झूले पर उछल-कूद कर रहे तो, कुछ फुटबॉल खेलते हुए खुशी से चिल्ला रहे हैं। पास ही एक परिवार पिकनिक मना रहा है, उनके बीच ठहाकों की गूँज सुनाई दे रही है। एक बुजुर्ग दंपत्ति हाथ में छड़ी लिए धीरे-धीरे टहल रहे, जैसे अपनी पुरानी यादों में खोए हों।


तभी एका की नजर सड़क किनारे बैठे एक युवक पर गई। वह जमीन पर एक सफेद कैनवास फैलाए बैठा था, लेकिन उसके दोनों हाथ नहीं थे।यह देखकर एका को आश्चर्य हुआ।


वो खड़ी हुई और उस लड़के के पास खडी़ हो गई।वो देख रही है उसके पास अपने हाथ नहीं लेकिन इसके बावजूद वह बड़ी निपुणता से अपने पैरों से ब्रश पकड़कर कैनवास पर रंग बिखेर रहा है। उसकी आँखों में एक अजीब-सी चमक है, जैसे हर के पीछे वो कोई अनकही कहानी लिख रहा हो।


एका की आँखें उस दृश्य पर टिक गईं। वह लड़का अपनी सीमाओं से परे जाकर अपनी ही दुनिया सजा रहा है—एक ऐसी दुनिया, जहाँ कोई कमी उसकी उड़ान को नहीं रोक सकती है।


"तुम,,,,,, तुम यह कैसे कर लेते हो।"एका ने उससे पूछा। 


उस लड़के ने सिर उठा कर एका को देखा और बोला-"क्योंकि मैनें यह मानने से इनकार कर दिया कि मैं अपाहिज हूँ।जो सब कर सकते हैं वो मै भी कर सकता हूँ।इसलिए जो कमजोरी एक हादसे ने मुझे दे दी मैनें उसे अपनी ताकत बना लिया अपने लिए ऊपर वाले का दिया मौका बना दिया।"कहकर वो हंसने लगा। 


"आप भी कोशिश करिए, अपने पैरों को अपने मुंह को अपनी ताकत बनाइए देखना पहले से ज्यादा सुंदर रंग बिखरेंगे आपके ब्रश से।"उस लड़के ने कहा और ब्रश को अपने मुंह से पकड़ कर रंग भरने लगा। 


एका के दिल में जैसे कुछ जागा वो पलटी, पीछे कृतार्थ खड़ा मुस्कुरा रहा है। उसकी आखों की चमक देखकर एका समझ गई कि वह जानबूझकर उसे यहाँ लाया था यह दिखाने। 


"अगर यह ये कर सकता है, तो एका क्यों नहीं?"कृतार्थ उसके पास आकर बोला। 


एका ने हां मैं सिर हिला दिया फिर से उसकी आखों में नमी है पर साथ ही उसकी आँखों में वो आत्मविश्वास भी है जो खो गया था। 


एका ने घर आकर अपने पैरों से पेंटिंग करने की कोशिश शुरू करी कभी मुंह से ब्रंश पकड़ कर करती। पापा तो उसे रोकते पर कृतार्थ उसके सामने आकर खड़ा हो जाता जो वो दोनों चुप हो जाते। 


पहले ब्रश गिरते, रंग फैल जाते, और निराशा बढ़ती। लेकिन धीरे-धीरे, उसके पैरों और मुंह दोनों से यह करना शुरू कर दिया, जो पहले उसके हाथ करते थे।यह कामयाबी पाकर कृतार्थ और एका खड़ी से झूम उठे। 


एका ने फिर से अपनी पेंटिंग्स बनानी शुरू करी,और कृतार्थ ने उनकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर डालनी शुरू कीं।


शुरुआत में लोग सहानुभूति जताते , लेकिन फिर उसकी कला खुद बोलने लगी।


और एक दिन आया, जब उसे "इंटरनेशनल पैराल आर्ट कॉम्पिटिशन" के बारे में पता चला और उसे मौका मिला अपनी पेंटिंग भेजने का। अब उसके पापा मम्मी के विचार भी बदल चुके थे, वो खुद उसके साथ गये उस कम्पटीशन में,उसने अपनी बेस्ट पेंटिंग भेजी—एक लड़की, जिसके हाथ नहीं हैं, लेकिन वो अपने पैरों से सितारे छूने की कोशिश कर रही है।


फिर परिणाम आया—एका ने पहला स्थान हासिल किया!पूरा परिवार का सिर गर्व से ऊंचा हो गया। 


"भाई, यह सिर्फ आपकी वजह से।" एका के मुहं से निकला। आज कृतार्थ की आंखों में आंसू है पर खुशी के। 



अब उसकी पेंटिंग्स अखबारों में छपने लगीं। उसे इंटरव्यू के लिए बुलाया जाने लगा।बड़ी बड़ी एग्जिबीशन में उसकी बनाई पेंटिंग रखी जाने लगी। 


एक दिन, उसने एक आर्ट एग्जीबिशन रखी। वहाँ भीड़ है, प्रेस है,… और हाँ, रेयांश भी है।


रेयांश चुपचाप उसकी पेंटिंग्स देख रहा है।एका को देखकर वो उसके पास आकर बोला,"एका… मुझे नहीं पता था कि तुम इतना आगे निकल जाओगी…Congratulations."


एका मुस्कुराई, लेकिन इस बार उसकी मुस्कान में कोई भी पुराने जज्बात नहीं है।


"रेयांश, मेरी पहचान मेरी कला है… और मैंने उसे फिर से पा लिया।"


रेयांश की आँखें झुक गईं।एका फिर से बोली-"पहले मैं सोचती थी कि मेरी ज़िंदगी का कैनवास खाली है।

लेकिन फिर समझ आया… कि ब्रश मेरे हाथ में था, बस मुझे चलाना सीखना था।"

"हमारी पहचान कोई और तय नहीं कर सकता। अगर हमें खुद पर यकीन है, तो दुनिया भी तुम्हें पहचानने पर मजबूर हो जाएगी।" एका ने कहा और अपने भाई के साथ आगे बढ़ गई। 



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