Ayushee prahvi

Abstract

4.5  

Ayushee prahvi

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विश्वविद्यालयी चुगली और हम अकिंचन

विश्वविद्यालयी चुगली और हम अकिंचन

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आगे वाला कोट पता नहीं किस महापुरुष ने कहा था ,आप को पता चले तो मुझे भी सूचित करें दें- " अगर आप किसी की निंदा नहीं कर सकते तो आपके मित्र हो सकते हैं मित्र मंडली कभी नहीं हो सकती।"और भई जिनके अगल- बगल चाटुकार मित्रों की मंडली न हो वो काहे का ज्ञानी है कि नएँ?


भई उपर्युक्त महापुरुष जी की तरह इधर भी ज्ञान की धुआँधार बारिश हो रही थी कुछ सहज प्रसार टिप्पणियों के रूप में ब्लॉग में भी भेज रही हूँ। मुझे पता है पकौड़ियाँ तलने में आप बखूबी माहिर हैं और चटनी और मसाले तो अपने आप खिंचे चले आएंगे। ये जानते हुए भी कि टिप्पणियां करने का अधिकार सिर्फ समर्थ जनों को ही शोभा देता है,इस अकिंचन ने भी कुछ प्रयास किया पर झूठ बोलने की महान कारीगरी मूढ़ों में कहाँ,इसलिए ये नहीं कहूंगी कि इन टिप्पड़ियों का मेरे जीवन से कोई लेना देना नहीं है, बाकी तो आप सब समर्थ जन हैं जोड़ने का कोई अवसर आप कृपया मत छोड़िएगा!


तो भई असल मुद्दे पर आते हैं कि हम जैसे हिंदी माध्यम वाले बच्चे जो देश के किसी कोने के किसी विद्यालय से नैतिकता और आदर्श का पाठ पढ़ कर आते हैं उन नैतिक वचनों से आगे सोचने में अक्सर दिक्कत महसूस करते हैं , उन्हें अपना पूरा एजुकेशन सिस्टम जो सिर के बल हिप्पोक्रेसी में धंसा हुआ है कभी पूरा समझ नहीं आता।ऐसे में पूरी स्थिति ही एक गर्हित उपहास में तब्दील हो जाती है।


यहाँ अगर आप प्रतिभाशाली विद्यार्थी हैं तो आपको खूब आशीष और सम्मान मिलेगा मगर प्रतिभा प्रदर्शन का अवसर आपके चरण पूजक मित्र को मिलेगा जहाँ आपकी समस्त प्रतिभा तालियां बजाने और लोग जुटाने में खर्च होगी ऐसे में 'मा विद्विषावहै' पढ़ कर हमारी तरह कभी द्वेष नहीं करें (सलाह वैदिक है पर अंडरलाइन हमने किया है)। और अगर आप भयानक रूप से नैतिक और सच्चे हैं और प्रसंशा और चाटुकारिता के आसमानी अंतर को जानते हैं तो चाटुकारी लिजलिजेपन से दूर रहने का जो ये प्रयास आप करते हैं उसे अपने मन तक ही सीमित रखें क्या है कि ऐसे आप जगहँसाई से बचे रहेंगे क्योंकि भाई इन पवित्र ज्ञान के मंदिरों में रहते हुए अगर आप चापलूसी में माहिर नहीं हैं तो फिर आप के लिए यही उक्ति बचती है 'सकल कला गुण विद्या हीना' और हीनों पर हँसने का लाइसेंस तो नैतिक लोग भी देते हैं।खैर इसके आगे …अगर ये नैतिक वचन आपकी घुट्टी में गहरे हैं या प्रकारांतर से कहें तो अगर आप समस्त ज्ञानार्जन के पश्चात भी सत्यवादी बचे रहेते हैं तो निराश बिल्कुल न हों आगे भी आपको झोला भर सम्मान मिलेगा और 'आपको' प्रोत्साहित करने के लिए पदोंन्नति आपके चापलूस 'पड़ोसी' को दी जाएगी ,जो पदग्रहण के समय पूरी निष्ठा और खूब गंभीरमुद्रा में सत्यवादिता और निष्पक्षता की शपथ खायेगा। इसलिए या तो इस नैतिक बीमारी से छुटकारा पा लीजिए या तालियां बजाने के लिए हाथ और अशरीरी सम्मान बटोरने के लिए झोला अभी से मजबूत कर लीजिए।


भले ही आप कोई अंतर्यामी न हों पर मन की बात तो आप भी सुनते ही होंगे तो लगे हाथ हमारी भी सुन लीजिए।एक मुहावरा है कुँए में भांग पड़ना इस केस में तो हमें यही सही लगता है । जब पेड़ – पौधे ऐसे उग रहे हैं तो खराबी जरूर उस जमीन में ही होगी जाहिर है, जब प्रोफेशन में ये हालात हैं तो पढ़ाई भी ऐसी ही रही होगी।हमारे पुरखे तो कहते हैं कि बिना मांगे कभी राय नहीं देनी चाहिए पर हम क्या करें हमारे तो नाम में ही राय है🙄खैर अगर आप इस pj को नजरअंदाज कर चुके हों तो आपके लिए आसान ट्रिक है कि अगर आप अपने देश की किसी विख्यात विश्वविद्यालय के मानविकी विभाग में पढ़ने की इच्छा रखते हैं तो पहले अपना राजनीति विज्ञान ठीक कर लें ,फिर कुछ चुनिंदा शब्दावलियां सीख लें जिसे गाहेबगाहे भांजते चलें और गैंग बनाना तो कत्तई आना ही चहिये इसके बिना आप काहे के इंटेलेक्चुअल ?अब भई इतना करने के बाद जो समय बच जाए उसमें ही पढें ! वरना अगर सिर्फ पढ़ना ही आपका शौक है तो टैग वाली यूनिवर्सिटी काहे जाना?


अब जो इतनी सुनी है कान में तेल डालकर तो इतनी और सुनते जाओ भइये! कि ये जो रामकहानी कही सो जलभुन के कही,पूरा सच मत जान लियो !पढ़ने वाले तो होते ही हैं हरजगह और जो नहीं होते हैं वो एंट्रेंस टॉप कर के *व्यंग्य छानते हैं हमारी तरह!बाकी आप समर्थ जन हम अकिंचन!




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