लेबल वाली शीशी
लेबल वाली शीशी
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जिस क्षण हम स्वीकार करते हैं कि हम कुछ भी हैं उसी क्षण हम कुछ दूसरा होने की संभावना से इंकार कर देते हैं।- अज्ञात
कभी- कभी सचमुच लगता है हम कैसी संवादहीन दुनिया में रह रहे हैं जहां ठहरकर सुनने वालों की बेइंतहा कमी है। हम अपने को किसी खांचे में बांधकर मुतमइन पड़े बैठे हैं,उसके लिए किसी को मौत के घाट भी उतार सकते हैं पर कभी अपने चश्मे उतार कर नहीं देख सकते।
मुझे लगता है इसका कारण शायद हमारा समय ही है जो हमें बिना लेबल के स्वीकार नहीं कर सकता,केमिस्ट की दुकान पर आपने दवाइयों की शीशियां तो देखी ही होंगी ठीक उन्ही की तरह।
लेबल के बिना ये बेकार हैं , एक जैसी महक ,एक जैसे रंगरूप। अगर कभी ग़लती से आपसे कोई ढक्कन खुल गया तो उसी नीरस नॉनस्टॉप बकबक के लिए तैयार रहिये , खुद का अपना एक शब्द अपनी एक लाइन नहीं सिर्फ लेबल और आप समझ सकते हैं शीशी के भीतर क्या है।
खैर आप घबराईये नहीं ये उत्तर आधुनिक समय है , आप के पास लेबल के ऑप्शन बहुत हैं सिर्फ लाल नहीं है काला सफेद भूरा, इधर लंबी वेराइटी है रंग तो सही दिशाएं भी हैं वाम दक्षिण, और इसमें भी न पसंद आये तो सम ,विषम, और द्वैध के रास्ते भी खुले हैं।भई इतनी वेराइटी है पूछो मत ! बस गलती से भी बिना लेबल मत रहना 'लाली देखन मैं गयी मैं भी हो गयी लाल' पूरे इंसान मत बनों।जैसे खच्चरों की आंखें ढक देते हैं वैसे ही एक खास बाइस्कोप से ही देखो।ज़बान खोली की लेबल हटा और आप दवा की एक्सपायर शीशी!
पर उससे भी मजे की एक और बात है आप आधुनिक भारतवासी हैं तो निश्चित देखा सुना होगा कि दवा की एक्सपायरी खत्म तो कोई खास बात नहीं, उसके ऊपर नया लेबल चिपका दो बात खत्म ,न हींग न फिटकरी रंग पड़े चोखा! आप अंदर चाहे जो समेटे बैठे रहो ऊपर का लेबल खूब दुरुस्त होना चाहिए,चकाचक रंगीन और फैशनेबल! क्या है कि आजकल फैशन का बोलबाला है। आप गलती से भी ऐसे लेबल का विरोध न करें अन्यथा हानि की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
आप अंदर चाहे जो समेटे बैठे रहो ऊपर का लेबल खूब दुरुस्त होना चाहिए,चकाचक रंगीन और फैशनेबल! क्या है कि आजकल फैशन का बोलबाला है। आप गलती से भी ऐसे लेबल का विरोध न करें अन्यथा हानि की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
फिर आजकल के मालिक तो जी बड़े ओपन माइंडेड किसम के होते हैं कईबार तो खुद अपने पुराने लेबल की जगह अपने मातहतों को नया चकाचक फैशनेबल लेबल देने को तत्पर रहते हैं और फिर आप ठैरे समझदार इंसान इंकार क्यों ही करना! और फिर फैशन ही तो है जब बदले लेबल भी बदल लेना आप कोई मूरख तो हो नहीं क्या हुआ जो घोड़े न हुए खच्चर तो हो !
डिस्क्लेमर: उहू! उहू! (बडे लोग खास मौकों पर ऐसे ही बोलना शुरू करते हैं पर हम मौसम के कारण )अब आप अगर ये सोच रहे हैं कि जो ऐसा लिख रहा है जरूर किसी लेबल वाले से खार खाये बैठा है तो जी आपने मेरी दुखती रग पकड़ ली आप वाक़ई महान आत्मा हैं चरण कहाँ हैं आपके!पर इसके साथ यह भी जोड़ लीजिये की ये दुख लेबल वाले से नहीं एक्सपायरी के ऊपर लेबल लगाने वाले से जरूर है!