Ayushee prahvi

Abstract

3.9  

Ayushee prahvi

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ज़िन्दगी से गुफ्तगू

ज़िन्दगी से गुफ्तगू

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प्रिय डायरी,

आज 27 अप्रैल हो गए ! भई हम जैसे किताबी कीड़ों को तो ऐसे भी वक़्त का पता चलना मुश्किल था पर अभी तो ऐसा लगता है सरकार भी कुछ अपने ही फ़ेवर में आ गयी है ।बहरहाल मज़ाक के इतर वाक़ई इस वक़्त ने हमें अपने अपनों को समझने की काबिलियत बढ़ा दी है ।दुनिया चाहे जितनी चीखे कि उसे अपनी प्राइवेसी बहोत प्यारी है पर उनको भी दिखाना इसी दुनिया को होता है ।किसी को कुछ साबित करना होता है असल में एकांत चाहने और उसे जीने वाले इक्का दुक्का ही होते हैं।

फिर तो भई आप सब भी इक्का दुक्का के इतर ही हुए न ? तो फिर आप ही के लिए एक सलाह है क्यों नहीं कुछ लिख डालते चलो न सही लिखना कुछ सिल-बुन डालो !वो भी न सही तो छूटे हुए दोस्तों रिश्तेदारों को ही याद क्यों नहीं कर लेते ।माना कि हर काम में टांग अड़ाते हैं वो पर फिर भी आज की दुनिया में इसके लिए भी वक़्त किसके पास है? तो अगर उनके लिए आप इतनी सी भी अहमियत रखते हो तो क्यों न पलटकर एक कॉल ही कर ली जाय!

खैर आज के लिए दुआ यही कि ऊपरवाला हममें इतनी नरमियत बख्शे कि हम केवल प्यार करने वालों को ही नहीं बल्कि नफ़रत करने वालों को भी प्यार कर सकें !


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