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Ayushee prahvi

Abstract

3.8  

Ayushee prahvi

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नैतिकता और कुरकुरे टाइप लोग

नैतिकता और कुरकुरे टाइप लोग

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आपने नोटिस किया है आजकल सरलता, निश्छलता जैसे शब्द कैसे out of फैशन हो गए हैं। अगर कोई आपसे कहे कि आप तो जी बड़े सरल इंसान हैं तो जी बोलने वाले की मिठास पर न जाएं। दरअसल ये आजकल मूर्खों के लिए प्रयोग किया जाने वाला बहुत ही सॉफिस्टिकेटेड पर्याय है !

पर फिर अगर चल रहा है तो क्या हम भी मान लें और क्या सीधापन निरी मूर्खता का ही पर्याय है ? असल में क्या होता है कि ये महानुभाव बहोत बार सीधेपन को कोमलता से जोड़ लेते हैं जबकि होता इसके ठीक उलट है।

बेशक़ at that पर्टिकुलर मोमेंट ये एक बढ़िया सर्वाइवल टूल हो सकता है, इससे मुझे इंकार नहीं पर जो कहीं से भी मुड जाए टेढ़ा हो जाये और चूं न कसे , अपनी नाक की हड्डी की तरह!उसका क्या मज़ा ? असल मज़ा तो मज़बूत टिबिया- फिबुला बनने में है जो टूट जाये पर लचकती नहीं है (गो कि हमारी वाक़ई में चटकी हुई है)

असल में क्या होता है न कि जिनकी मेजोरिटी होती है , वो अपना एक नरेटिव बना लेते हैं।, फिर बाकी भेड़ें क्या करती हैं ? वो उसे दुहराती हैं बें बें बें बस्स! न हो भरोसा तो किसी एक भेड़ को पकड़कर तौल लीजिए।ये भेड़ें हैं!जो मजबूत करती हैं किसी भी नरेटिव को और मुश्किल चीजें वो तो भई भेड़ों के भेड़पन के बस की नहीं होतीं।

बस यही कारण है कि चतुराई या टेढ़ापन इतना इन ट्रेंड है। जब लोगों में दम ही न हो सीधे जीने का तो लोग टेढ़ेपन के ही उपासक होंगे, और सीधेपन को मूर्खता मानेंगे।सच मानने में ईगो जो हर्ट होता है।

फिर ऐसे में क्या करते हैं वो ? एक तरीका ये कि नैतिक लोगों को सीधा और मूर्ख कह कर टाल दें और दूसरा कि अनैतिकता को महिमा मंडित कर दें।पर होंगे तो दोनों ही मनोविनोद के साधन। क्या है कि सच ही सबसे लंबे समय तक टिकता है, हर मुलम्मे के घिसने के बाद भी।

तो जी अगर आप हम जैसे पहली कैटिगरी में आते हैं तो अगली बार मिल जाये कोई ऐसा बिंगो मैड ऐंगल्स ! कुरकुरे (टेढेमेढे) टाइप पर्सनलिटी तो जमा दीजिये एक सीधा 180° का हथौड़ा ! अगर आप पूछें कि इसके दरमियाँ ? तो जी तब तक स्वस्थ रहें ! मस्त रहें और बेशक़ व्यस्त रहें !


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