ज़िन्दगी से गुफ्तगू
ज़िन्दगी से गुफ्तगू


प्रिय डायरी,
आज अप्रैल के भी चार दिन निकल गए। आजकल ऐसा लगता है जैसे हम किसी ऐसी घड़ी में तब्दील हो गए हैं जिसके कांटे किसी ने निकाल दिए हों और फिर भी अलार्म की सख्त सुई के साथ हम सब घड़ी के कलपुर्जों की मानिंद एक दूसरे को धकेल रहे हैं।
ख़ैर वक़्त का काम है चलना चाहे आप चलो न चलो वक़्त तो चलता ही है। खैर मुद्दे की बात दिन भर न्यूज़ चैनल पर पैनिक बढ़ाने वाली खबरों के इतर भी दुनिया है , किताबें हैं , रंग हैं , कूँची है और आप जो किस्मत वाले हैं तो आपके घरवाले भी! क्यों न बिना घिरनी चलने वाली ज़िन्दगी की इस गाड़ी को कुछ और रंग और तवज़्ज़ोह बख्शी जाए और कुछ प्यारे रंग भरे जाएं।
आज दुआ सिर्फ ये कि ऐसे वक्त में हम कुछ ज्यादा इंसान बन पाएं ! आप भी इस दुआ में शामिल हो सकते हैं आमीन !