Ayushee prahvi

Drama

3.4  

Ayushee prahvi

Drama

अपरा

अपरा

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दिल्ली के उस टू बी एच के फ़्लैट में सृष्टि की निगाहें कुछ गुंदमी रौशनी में बार-बार उस पुराने पंखे पर टिक जाती थीं । पंखे के चलने की अवाज कुछ ऐसी थी जैसे किसी की क़राह हो मानो एक पूरा चक्कर लगाते हुए अपने ही डैनों के बोझ से उसकी जान निकल जाती हो। अजीब सी मुर्दनी थी उस कमरे में जहां ना तो कभी पूरी रात होती थी और न कभी पूरा दिन।उसे सख़्त कोफ़्त हो रही थी पर नींद थी की उसका दूर -दूर तक कोई आता- पता नहीं ।उसके बग़ल में बरखा भी शायद इसी बेचैनी में करवट बदले पड़ी थी । वो दोनों शब्दों की कमी महसूस कर रहीं थी,कभी - कभी बातें ख़त्म हो जाती हैं और दिल हल्का नहीं होता । अब दोनो की उम्मीद भैया पर टिकी थी,उनके आते ही उन्हें सच बतायेंगे और भैया आनंद की असलियत जान कर अपरा दी को बचा लेंगे।इसी उधेड़बुन में जाने कब नींद आ गयी।

सुबह आँख खुली तो ९ बज चुके थे । बरखा किचन में कुछ बना रही थी । सृष्टि ने उठते ही ब्रश उठाया और नहाने चली गयी।उसके आते ही दोनो अस्पताल जाने के लिए तैयार होने लगीं।आज दोनों ने मन बना लिया था कि वो आनंद से पूछ कर ही रहेंगी कि आख़िर अपरा दी को हुआ क्या है । पिछले एक हफ़्ते से होश और बेहोशी के बीच झूल रही दी को अचानक ऐसा क्या हो गया?अभी दोनो निकालने ही वाली थी की डोर बेल बजी। सृष्टि ने दरवाज़ा खोला ।सामने आनंद था, घुसते ही आनंद सोफ़े पर धम्म से गिर पड़ा और आँसू टपकाते हुए उन दोनों के सामने पड़ा था।

‘सृष्टितेरी दीदी नहीं बचेगी।डॉक्टर पूरी कोशिश कर चुका है ।”

ग़ुस्से और दुःख का एक बड़ा ग़ुबार था सृष्टि के भीतर जो अब या तब फूट जाना चाहता था पर पता नहीं मन का कौन सा कोना उसे रोक लेता था।वह सोचती आखिर उसका रिश्ता ही क्या था दी से,भले ही अपरा के माँ -पापा न रहे हों, भाई बहन अपनी जिंदगियों में व्यस्त रहे हों,उस वक़्त सृष्टि ने उसे सम्भाल हो पर आख़िर सृष्टि उनकी केवल राज़दार ही तो थी !और लड़कियों के लिए तो कोई भी रिश्ता पति के बाद ही होता है ।माँ भी तो सृष्टि को यही समझाती हैं की वो अपरा और आनंद के मामले में बीच न पड़े।

सृष्टि ने न चाहते हुए भी पानी का ग्लास लाकर आनंद को दिया और बोली-

‘आप डॉक्टर की बातों पर मत जाइए दी ठीक हो जाएँगी।’

ऐसे इंसान को हिम्मत देना शायद सबसे धैर्य का काम है, जो दुखी होने का नाटक कर रहा हो । कुछ १० मिनटों की गमग़ीन चुप्पी के बाद आनंद बोला-

‘भैया सुबह ही हॉस्पिटल पहुँच गये हैं उनके लिए खाना ले जाओ।मैं फ़्रेश होकर हॉस्पिटल आता हूँ।’

फिर किसी ने कुछ नहीं कहा ।बस ग़ुस्से और संत्राससे भरी हुई बरखा और सृष्टि अपने भीतर एक जंग लड़ रही थीं।सचमुच कभी -कभी खून के रिश्ते आदमियत के रिश्ते के आगे कितने बौने हो जाते हैं।समाज में पति के आगे पत्नी के लिए बाक़ी सारे रिश्ते पराए मान लिए जाते हैं चाहे भले ही पति कितना भी स्वार्थी क्यों न हो।

बाहर निकलकर ऑटो में बैठ दोनो हास्पिटल के लिए निकल गयी।

भैया हॉस्पिटल के बाहर ही मिल गये।पेशंट से मिलने का टाइम ख़त्म हो चुका था।अपरा दी कि दोस्त प्रीति पहले ही वहाँ पहुँच चुकी थी।सबने कुछ खाया फिर बातें शुरू हुईं।भैया भी तफ़सील से आनंद की ग़लतियाँ सुन थे थे।सृष्टि को भैया बड़े भले लगे।उसे सचमुच लगा कि भाईबहन का रिश्ता कितना पक्का होता है, तभी तो भैया अपने छोटे से बच्चे और पत्नी को गाँव में अकेली छोड़ ,बहन के लिए यहाँ भागे आए।अब भैया सब ठीक कर देंगे।उन्हें आनंद की चालाकियाँ पता चल गयीं हैं ,कि कैसे उसने अपरा दी की फ़ेलोशिप के सारे पैसे ख़र्च कर दिए और अब एक घटिया से हॉस्पिटल में एक हफ़्ते से बिना मर्ज़ जाने दवाइयाँ चलवा रहा है ।केवल ब्याह कर लेने से वो ख़ुद को अपरा दी की ज़िंदगी का मालिक समझने लगा है।पूछने पर बेशर्मी से किसी और अस्पताल में ले जाने की बात टाल जाता है।

सारे राज खोलकर सृष्टि को लगा जैसे अब सब कुछ ठीक हो जाने वाला है । अपरा दी अब ठीक होकर बाहर आ जाएगी ।भैया उन्हें अब एक अच्छे अस्पताल में भर्ती करवाने की बात भी कर रहे हैं।

आख़िर आनंद के आने के बाद पाँच बजे फिर मिलने का टाइम हुआ , सृष्टि और बरखा मिलने गयी । अपरा दी बेजान सी बेड पर पड़ीं थी।उनका चेहरा सफ़ेद पड़ चुका था, बरखा ने उनके हाथ छुए और उनकी धड़कने कुछ तेज़ हुईं केवल इससे ही पता चलता था की वोज़िंदा हैं वर्ना उनके पूरे शरीर में कोई और हरकत नहीं हुई। सृष्टि का मन जैसे सूख सा गया। फिर अगले ही पल लगा कि नहीं , दी इतनी कमज़ोर नहीं हैं !वो मौत को एक बार मात दे चुकी हैं, और अभी उनकी उम्र ही क्या है 32 की उम्र कोई मौत की उम्र तो नहीं।

वहाँ से निकलते ही सृष्टि साथ चल रही बरखा से बोल उठी।बस एक बार दी बाहर आ जाए फिर इस इंसान के सारे राज हम खोल देंगे। प्यार की बड़ी-बड़ी डींगें हाँकने वाला यह इंसान वक़्त आने पर कैसे पैसे गिन्ने लगा ये बात उनको भी पता चलनी चाहिए।

अपने फ़्लैट पर लौट के सृष्टि ने शावर लिया और खाना खाया और फ़ोन लेकर लेट गयी। इस भागदौड़ में माँ से बात भी नहीं हो पायी थी। माँ से बातें कर के दिल कुछ हल्का हो गया। अगले दो दिन पी एच डी कोर्सवर्क की परीक्षाओं में निकल गये।परीक्षा के बाद निकलते वक़्त आनंद का फ़ोन आया । आज उसकी आवाज़ कुछ बदली सी थी, बोला आज अपरा को होश आ गया है और शाम तक उन्हें जेनरल वार्ड में शिफ़्ट कर देंगे।तुम उनसे मिल सकती हो।सृष्टि सचमुच ख़ुश थी। उसने बैग निकाला और हॉस्पिटल के लिए निकल गयी। पूरे रास्ते वह सोचती रही कि दी बाहर आयीं तो क्या क्या करेगी।वो सबसे पहले तो उन्हें कमला नगर वाले हनुमान मंदिर ले जाएगी, उसकी मन्नत जो पूरी हो गयी।फिर उन्हें उन लोगों के बारे में बताएगी जो उन्हें बीमार समझ कर देखने भी नहीं आ रहे जबकि दी उनके ऊपर जान छिड़कती थीं,उनके लिए वो हमेशा बुरे वक्त में साथ खड़ी रहती थीं।किसी का माइग्रेन हो या किसी के बॉयफ्रेंड से लड़ाई उनकी अदरक वाली चाय और भूख के वक़्त मैग्गी होस्टल में हमेशा तैयार मिलती थी।पर वही लोग वक़्त आने पर अपने माइग्रेन को संभाल कर पीएचडी में और बॉयफ्रैंड को संभाल कर परिवार चलाने में कैसे व्यस्त हो गए उन सब का कच्चा चिट्ठा उनके सामने रखेगी।

बुरे वक्त में बुरी बातें कितनी भी हों ,एक अच्छी बात जरूर है ! वह कौन अपना औऱ कौन पराया है इसकी पहचान करा ही देता है।बस दी एक बार बाहर आ जाएं वो दी को सब बताएगी।सृष्टि मन ही मन ख़ुश हो रही थी।

वाह !आज अपरा दी सचमुच पहले जैसी दिख रहीं थीं।आस-पास फैली हुई मशीनों और ड्रिप के बावजूद वो होश में हैं।और उसे पहचान रही हैं।अपने तमाम दर्द को छिपाकर मुस्कुराना वो वहाँ भी नहीं भूलीं।वहाँ भी इशारों में उनकी ताक़ीद जारी थी तुम्हें इग्ज़ाम देना चाहिए ना कि यहाँ आना चाहिए था।बाहर निकल के पार्टी करेंगे।

बाहर आकर सृष्टि को लगा, आज सचमुच बहुत ख़ुशगवार दिन है।आज पता नहीं क्यूँ उसे आनंद की शक्ल भी उतनी बुरी नहीं लगी।फ़्लैट पर आकर उसने किताबें उठायीं और पढ़ने लगी।इधर हॉस्पिटल की ख़बर बरखा से पता चल जाती थी।सृष्टि ने सोचा अब दी के डिस्चार्ज होने पर ही मिलूँगी ।

सुबह उठते ही उसने देखा आनंद की १२ मिस्ड कॉल हैं।पर सृष्टि समझती है, ये सब वो ख़ुद को दी की नज़रों में सही साबित करने के लिए कर है,दी को सृष्टि पर भरोसा जो है। पर सृष्टि अब इतनी बेवक़ूफ़ नहीं है, वह बता देगी अपरा दी को सबकुछ सच -सच।अब जब भी आनंद और दी की लड़ाई होगी।वह हमेशा की तरह ये नहीं कहेगी कि आप माफ़ी माँग लो बल्कि वह कहेगी आप झुकना नहीं।आप भी उससे उसी तरह प्यार करो जैसे वह आपसे करता है। प्यार अपनी जगह और फ़ायनैन्शल सिक्योरिटी अपनी जगह।

वह अभी नहाने ही घुसी थी कि प्रभा का फ़ोन आने लगा, कोचिंग का टाइम हो गया था।वह बाहर निकली और बैग पैक करने लगीI।चाय का मग हाथ में लेकर उसने फ़ोन उठाया और सामने आनंद का मैसेज था ‘अपरा नहीं रही’।

उन शब्दों को पढ़ते हुए भी जैसे यकायक उसे कुछ महसूस नहीं हुआ।सचमुच शायद कल्पना की भी सीमाएँ होती हैं और जहाँ विचार नहीं पहुँचते वहाँ कल्पना भी नहीं पहुँचती।जो सोचा ही ना हो वो सच कैसे हो सकता है?

आज चार साल बाद फ़ोटो फ़्रेम के नीचे छिपा कर रखी हुई अपरा दी की फ़ोटो को निकालते हुए उसे बड़ी गहरायी से महसूस हुआ कि उस वक़्त वह केवल फ़ेमिनिज़म को पढ़ती थी असल ज़िंदगी उसे उतार नहीं पायी थी ।

बुरा वक्त शायद दुनिया को देखने के हमारे नज़रिये को भी हमेशा के लिए बदल देता है ,आप फिर कभी दुनिया को पुराने चश्मे से उसे नहीं देख पाते। अपरा दी का जाना खुद सृष्टि के लिए एक बड़ी सीख बन गया।आज दी की फ़ोटो को निकलकर आज सृष्टि उस अपराधबोध से भी बाहर निकल आयी थी। बेशक दुनिया नही बदली पर दुनिया को देखने का कम से कम सृष्टि का नजरिया ज़रूर बदल गया।


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