रंग ही नहीं प्यार भी ऑर्गेनिक
रंग ही नहीं प्यार भी ऑर्गेनिक
"तुमने, मुझे कहां लाकर फंसा दिया", रमन।
तुम्हे तो पता है मुझे रंग खेलना बिलकुल नहीं पसंद उस पर से तुम्हारा इतना बड़ा परिवार" भौहों को खींचकर परेशानी के लहजे में रक्षा ने अपने पति से कहा
रमन की रक्षा से शादी हुए अभी 1 साल होने वाला था और ससुराल में ये उसकी पहली होली थी। जिसे मनाने के लिए वो अपने ससुराल गांव आयी हुई थी।
रमन का भरा पूरा संयुक्त परिवार था जिसमें दादा दादी, दो चाचा चाची, सबके तीन तीन बच्चे जिसमें रमन सबसे बड़ा था कुल मिलाकर नौ भाई बहनों में दो देवर और छ: ननदे थी। रक्षा जब भी सबको एक साथ देखती रमन का मजाक बनाते हुए कहती।
"रमन! तुम्हारा परिवार तो एकता कपूर के सीरियल क्योंकि सास भी कभी बहु रही कि तरह तीन तीन पीढ़ियों वाला हो गया है।"
अब !"देखने वाली बात ये है कि इसमें ड्रामा कितना होगा।"
रमन ने सब कुछ चुपचाप सुना और मुस्कुराते हुए कमरे से निकलकर, सबके बीच जाकर हँसी मजाक, और बातें करने लगा। रक्षा को ये सब पसंद नहीं था तो वो चुपचाप अपने कमरे में ही रुक गयी ।
एक दो बार ननदों ने कोशिश की लेकिन हर बार वो कोई ना कोई बहाना बना देती। औऱ बस अपने काम से काम रखती।
रक्षा एकल परिवार से थी जिसमें सिर्फ वो उसका भाई और मम्मी पापा। रक्षा के माता पिता दोनों नौकरी करते थे। उनके यहाँ होली के नाम पर कुछ नहीं होता था बस रात में पूरा परिवार होटल में खाना आ आता था। रक्षा को बचपन से ही होली के बारे में सिर्फ नकारात्मक बाते बताई गयीं थी इसलिए उस को लगता था कि ये सब गलत है इससे पानी की बरबादी, प्रदूषण, स्किन खराब होना और तमाम समस्याएं होती है सिर्फ और कुछ भी नहीं।
अगले दिन रक्षा अपनी सहेली से बात कर रही थी तो बातों बातों में उसने सहेली को बताया कि वो गांव आयी है होली मनाने।
तो उसने कहा"ओह्ह माय गॉड"!तू बच कर रहना क्योंकि गाँव में तो देवर नो बहुत ही गंदे तरीके से भाभियों के साथ रंग खेलते है। और इतना बढ़ा चढ़ा कर बताया कि रक्षा का मन डर और आशंका से भर गया कि कही उसके साथ कोई कुछ गलत ना कर दे।"
रक्षा सबको खुश देखती तो वो भी एक पल को खुश हो जाती |लेकिन अगले ही पल उसके दिमाग मे उसकी सहेली की बात आ जाती है वो सबसे अलग अपने कमरे में चली जाती। अब वो जैसे तैसे होली बीतने का इंतजार करने लगी।
देखते देखते होली का भी दिन आ गया। सब काम खत्म करके सब एक दूसरे के साथ रंग गुलाल खेल रहे थे। सबने बहुत कोशिश की लेकिन रक्षा ने दरवाजा नहीं खोला।
तभी रमन ने दरवाजा खटखटाते हुए कहा "रक्षा होली के रंग ना सही शगुन के लिए टिका तो लगवा सकती हो ना"
रमन की आवाज सुनकर रक्षा ने दरवाजा खोला।
रमन ने जैसे ही हाँथ बढ़ाया रंग लगाने को रक्षा ने कहा "रूको! रमन ये कलर ऑर्गेनिक तो है ना। कही तुम केमिकल वाला तो रंग नही लाये।"
तब तक रक्षा के सबसे छोटे देवर ने रक्षा और रमन के पैरों पर रंग लगाते हुए कहा "भाई भाभी हैप्पी होली। भाभी आशीर्वाद दीजिये छोटे देवर को और हाँ आप चिंता ना करो, होली के रंगों के साथ साथ हम सबका प्यार और सम्मान भी आपके लिए ऑर्गेनिक है।"
रक्षा देवर का ये व्यवहार देखकर चौक गयी क्योंकि ये उसकी सोच से परे था। वो भौचक्की खड़ी देवर को देखने लगी क्योंकि उसकी सहेली ने जो बताया था यहाँ तो बिलकुल उसके उलटा हो रहा था।
तब तक रमन ने कहा "क्या सोचने लगी।"
तभी वहां उसकी ननद ने आकर कहा," ठीक है आप रंग मत खेलना , कोई आपको रंग लगाएगा भी नहीं बिना आपकी मर्जी के लेकिन प्लीज् चलो ना सबके साथ बैठो , दूर से देख ही लेना।"
ना जाने क्यों इस बार रक्षा मना नहीं कर पायी और अपने देवर ,ननद और रमन के साथ सबके बीच जाकर बैठी।
सभी एक साथ ढोलक बजाकर डांस कर रहे थे। कि तभी चाची सास ने रक्षा को भी डांस करने के लिये बुलाया "रक्षा ने थोड़ी देर सोचा, फिर उठ खड़ी हुई और सबके साथ मिलकर खूब धमाल किया। रंग गुलाल की होली उसने पहली बार खेली थी।"
रंगों का असर उसके तन पर कम मन पर ज्यादा चढ़ा था आज उसको संयुक्त परिवार की ख़ुशी और अहमियत दोनों पता हो गयी थी।
दअरसल रक्षा के ससुराल में सभी शिक्षित और संस्कारी थे। सभी को परवरिश में हर रिश्ते की अहमियत और सम्मान सिखाया गया था।
सब रंग खेलकर इतना थक गए थे । दोपहर में रक्षा सबके बीच जाकर बैठी तो उसकी सास रक्षा की बलाये लेते नहीं थक रही थी। उन्होंने कहा "अब लग रहा है पूरा परिवार"
सबने साथ बैठकर होली के पकवानों का स्वाद चखा । तभी दादी सास ने कहा"बहु कैसी लगी होली ,रमन ने बताया तुम्हें रंगों से एलर्जी है,अभी तबियत कैसी है तुम्हारी"
रक्षा समझ गयी कि रमन ने उसको बचाने के लिए सबसे झूठ कहा है। उसने कहा "ठीक हूं दादी, बहुत पसंद आई मुझे तो होली, क्योंकि पहली बार रंग और परिवार दोनों को जान और पहचान पायी। थैंक यू आप सबका मुझे समझने और समय देने के लिए।"
तब रक्षा की सास ने कहा "बहु परिवार इसी को तो कहते है जो एक दूसरे को समझे, वैसे हर त्योहार मनाने के तो बहुत से कारण बताएं जाते है लेकिन मैं तो सिर्फ इतना जानती हूं कि इसी बहाने इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम सब कुछ थोड़ी देर के लिए भूलकर चिंता मुक्त होकर परिवार को समय और खुद को समय दे पाते है। इसलिए हम सब को तो बहाना चाहिए खुशियां मनाने का बस।"
रक्षा की ननद ने मुस्कुराते हुए कहा "भाभी माँ बिलकुल सही कह रही है। वैसे भी खुशियाँ किसी पल की मोहताज कहा होती है। वो तो बस जब जैसे जिस बहाने मौका मिले बस मना लेनी चाहिए।"
रात में रमन ने रक्षा से कहा "रक्षा अब तो तुम्हारा भ्रम दूर हो गया ना ,की हर कोई एक जैसा नही होता, अब तो तुम्हें होली मनाने से कोई एतराज नहीं होगा।"
रक्षा ने रमन के गले मे अपनी एक बाहें डाली और दूसरे हाथ से रमन के गालों पर गुलाल लगाते हुए कहा "नहीं रमन !अब तुम्हारी ही नहीं होली और गुलाल मेरे भी फेवरट हो गए। होली मुबारक हो सुबह बाकी रह गया था तुमको लगाना।"
और दोनों एक साथ एक रंग में खिलखिला पड़े।
प्रिय पाठकगण आप सभी को मेरी तरफ से सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएं।
