रेत का सरर् से
रेत का सरर् से


पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक जाना "
वैसे तो ये मुहावरा आपने और मैंने बचपन में बहुत सुना है।एग्ज़ाम में वाक्य भी बनाएं है।
आप सब को एक बहुत ही रीयल किस्सा है हम दोनों अपनी बेटी को "केरल" ट्रेनिंग के लिए लेकर गए उसकी टी. सी.एस. कम्पनी की ट्रेनिंग थी।
हमने उसे ट्रेनिंग सेंटर में छोड़ा , बेटी को कभी इतनी बड़ी हो गई थी, कभी अकेला नहीं छोड़ा था।हम दोनों ने भोपाल से ही प्लानिंग कर लिया था "केरल और तमिलनाडु" घूम लेंगे
हमारे परिचितों ने कहा था *असमा*को काॅंफिडेंस आने दीजिए।
अरे हां मैं आपको कहाँ से कहाँ ले गई , बात कर रही थीं।मुहावरे की
"पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक जाना"
हम दोनों "कन्याकुमारी" के सागर तट पर गए जहाँ "अरब सागर और हिन्द महासागर मिलतें है।ये तमिलनाडु में है हम दोनों बहुत ही मस्त इंज्वाय कर रहे थे।
इतने मैं एक बहुत ही तेज़ लहर आई और साहब मेरे
" पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गईं "
उस दिन सच्चे मायने में मुहावरा इम्पलिमेंट हुआ था ।मैं लहरों के ऊपर थी शायद वो दिन मेरी लाइफ का आख़िरी दिन होता।
"मगर मेरे हमसफ़र" बहुत ही सर्तक थे जैसे ही मुझे लहरों के साथ बहता देखा पूरी ताक़त से मुझे कसके खींचने लगे जब तक वो लहर उतर नहीं गई मुझे बांहों में जकड़े रखा ख़ुद भी दूर तक बहते चले गए ।मुझे तैरना नहीं आता था ।मगर मेरे हसबैंड बहुत अच्छे तैराक है।
जब मुझे रेत पर लिटा कर पानी निकाला लगे,मुझे होश आने लगा था ।तब बहुत लोग इकठ्ठा हो गए थे ।हर कोई सलाह दे रहा था।
मुझे थोड़ी ही देर में ठीक लगने लगा।
आज भी मेरे हसबैंड से मै मज़ाक़ में कहती हूँ "उस दिन तो मैं ही चली जाती", तो ये कहतें है अरे कैसे चली जाती ....!
उस दिन जैसे ही लहर आई "मेरे पैरों के नीचे से रेत पानी के साथ बहने लगी" और मेरा शरीर पानी के ऊपर बहने लगा बस इतना ही याद है मुझे "उसके बाद क्या हुआ ख़ूब पानी नाक में और मुंह में घूस गया था मेरे....!