"वो कौन था"शेष भाग 3
"वो कौन था"शेष भाग 3
मिट्टी के खिलौने में "घोड़ागाड़ी,हाथी, गुड्डा-गुड्डी, सुन्दर रंगों से सजा कर और साथ में जंगलों की जड़ी -बूटियां भी रख लेती थी ।
हाट-बाजार में सड़क किनारे टाट बिछा कर दुकान लगा लेती । दिन भर की हाड़-तोड़ मेहनत के बाद रोजी-रोटी का जुगाड़ हो पाता। सांझ ढ़ले लौट आती थी अपने गांव।
हाट में आए बच्चे रमिया के खिलौने देख मचल जाते । माता-पिता से ज़िद करके ख़रीद लेते। काकी के पास ही एक गुब्बारे वाला भी खड़ा रहता। प्लास्टिक के घरेलू सामान वाले भी बैठते थे। सब में बड़ा अपनापन हो गया था। "रमिया" की सब ही इज़्ज़त करते थे। "रमिया" मिलनसार थी ।कभी बच्चों के माता-पिता किसी मजबूरी वंश खिलौने दिलाने से मना करते तो "रमिया" उन बच्चों को वैसे ही प्रेम से खिलौने दे देती है।
बच्चों के माता-पिता मना करते नहीं -नहीं आप मत दो "मां जी" तो अधिकार से डांट कर कहती "मां जी" कह रहे हो तो ये "मेरे नाती-पोते हुए ना"
रमिया और सब दुकानदार बैठे चाय पी रहे थे। उनमें एक नया लड़का था। उसने रमिया से पूछ लिया "काकी" आप इस उम्र में "काहे" को आती हो
इतनी दूर से अपने घर से किसी को भेज दिया करों सामान बैचने इतना सुनते ही, पुराने साथी इशारे से चुप कराने की कोशिश करने लगें। रमिया ने कहा बेटा मेरे आगे-पीछे कोई नहीं है। मुझ बूढ़ी के पति को भगवान् ने ले लिया और बच्चें दिए नहीं।
एक दिन रमिया को हाट से लौटने में देर हो गई।रमिया कुत्ते भूरा से बतियाती जाती है। देख तो "भूरा" आज तो ये बादल बिजली की कड़कडा़ती आवाज़ें और तेज़ बारिश से चलना कठिन हो रहा है । घना अंधेरा और आंधी-तूफ़ान में जंगल में झींगुर की झांय-झांय, हवाओं की सनसनाहट, तेज़ हवाओं से पेड़ उखड़ कर गिरने से रास्ता भटक जाती है