"वो कौन था" आख़िरी भाग
"वो कौन था" आख़िरी भाग


एक दिन रमिया को हाट से लौटने में देर हो गई। रमिया अपने कुत्ते भूरा से बतियाती जाती है। देख तो "भूरा" आज तो ये बादल बिजली की कड़कडा़ती आवाज़ें और तेज़ बारिश से चलना कठिन हो रहा है । घना अंधेरा और आंधी-तूफ़ान में जंगल में झींगुर की झांय-झांय, हवाओं की सनसनाहट, तेज़ हवाओं से पेड़ उखड़ कर गिरने से रास्ता भटक जाती है रमिया ...,
जंगल के दूसरे छौर पर पहुंच जाती है ।नदी किनारे जहां खंडहरनुमा किले है। जो बरसों से वीरान पड़े थे। रमिया "भूरा" को लेकर बरसात से बचने के लिए खंडहरों में रुक गई। उन खंडहरों कि किदवंती थी।वहां भूत-प्रेत का वास है। गांव के लोग दिन में भी आने में डरते थे। रमिया बहादुर औरत थी ,डर तो पास से भी नहीं गुज़रा था।
थोड़ी ही देर में मस्त -मलंग सा आदमी उस खंडहर में अपनी बिल्ली के साथ बारिश से बचने के लिए आ जाता है। ये क्या वो रमिया को देख ठिठक जाता है।दूसरे बरामदें में चला जाता है।
बेमौसम बारिश से रमिया और भूरा भीग गए थे। मूसलाधार बारिश तो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। रमिया अंधेरे में टटोलने लगी कहीं कुछ सूखी लकड़ियां मिल जाए। खंडहरों कि खिड़की से हाथ टकराया। रमिया ने ज़ोर लगा कर खिड़की के पल्लों को खींचा तो पल्ला टूट गया। अंधेरे में ही कुछ सूखे पत्ते इकट्ठा कर इधर-उधर पत्थर ढ़ूनने की कोशिश करने लगी आग जलाने के लिए , रमिया और भूरा ठंड से कांप रहे थे। रमिया पत्थर ढ़ूंढ़ लेती आग जलाने में सफल हो जाती है।ठंड से राहत मिलती है ।
रमिया घर से कुछ चने-भूगंडें टोकरी में रखे रखती है । बारिश से भीग गए थे।रमिया को चिंता सता रही थी ।इस तूफ़ानी रात में घर लौटना कठिन था। रमिया को नींद के झोंके आने लगे थकी हारी थी। रमिया परेशान थी।पति झूंझून की बहुत याद आ रही थी ।कहते हे ना जब परेशान होतें हैं, तो जो सबसे प्यारा होता है उसकी याद सताने लगती है।
सपने में! भी
जब रमिया और झूंझून पहली बार मिले थे ,**झाबुआ"में शादी के पहले की प्रथा प्रचलित है भगौरिया हाट लगता है। जीवनसाथी चुनने पर लड़का-लड़की को लेकर जंगल में भाग जाता है। जंगल में **घौटुल** एक जगह है ।वह जगह नए जोड़ों को रहने के लिए बनाई गई हैं। नए जोड़े जंगल में महीनों रहते हैं ।रमिया सपने में वही सब देखती रहती है**।अपने होने वाले पति झूंझून को देखती है। छैल-छबीला गठीला शरीर ,मूंछें, सिर पर रंग-बिरंगी पगड़ी और धोती पहने सजीला जवान दिख रहा है।
वो रमणीय जंगल ,जहां झरनें, नदियां, पहाड़ रमिया बहुत "सुन्दर रुपसी नवयौवना"चांदी की हंसली , बड़े-बड़े कर्णफूल, फूलों की मालाओं के गहनें रमिया की सुन्दरता में चार-चांद लगा रहे थे।अपने पति के हाथ में-हाथ डालें रमणीय जंगल में घूम रही है। गहरी नींद में बड़बड़ाती हुई, पति के आलिंगन में स्मृतियों में खोई थी।
सुबह की पहली किरण के साथ ही जंगल में पक्षियों का कलरव सुन रमिया को यथा स्थिति का भान हुआ ।बारिश थम चुकी थी। ऐसा प्रतीत होता था ,जैसे बादल भी सुस्ता रहे हों ,पेड़ों के पत्तों से बूंदें धीमे-धीमे टप-टप गिर रही थी । रमिया ने देखा भूरा भी वहीं कुछ सूंघता फिर रहा था। खंडहरों में कुछ तब्दीली देख रमिया भी चौंकी। रमिया को याद आया कि कल रात एक आदमी टकराया था। रमिया की नज़रें उसे तलाश रही थी कि बिल्ली प्रकट हुई पीछे-पीछे वही मस्त-मलंग आदमी भी आ गया ।वो कुछ बोला नहीं। अपने रास्ते चलता बना ।रमिया कुछ सोचती सी इस जैसी छवि को पहले भी कहीं देखा है। कौन होगा ये मानुष?भूरा को लेकर लम्बें-लम्बें डग भरती रमिया घर की ओर चल दी।
एक दिन उस मस्त मलंग को जंगल के रास्ते में रमिया ने देखा तो पीछे-पीछे खंडहरों तक पहुंच गई। भूरा भी मंलग को सूंघने केसाथ -साथ कूं-कूं-कूं करके पैरों में लिपटने की कोशिश करता है। मस्त-मलंग तेज़-तेज़ डग भर के खंडहरों के बरामदे में बैठ गया। दिन की रौशनी में जैसे ही रमिया ने उसे देखा तो वो दंग रह गई ,ये तो उसका झूंझून ही था। आवक सी ख़ुशी में आंसू बह रहे थे।
रमिया का यूं यकायक मस्त- मंलग को रमिया का हाथ लगाना अच्छा नहीं लगा। वो दूर छिटकने लगा। झूंझून पहचान नहीं रहा था। शायद याददाश्त चली गई थी ।
रमिया ख़ुशी से भूरा से बतियाती रही
"अरे देख भूरा ये तेरा मालिक है। बरसात वाली रात के बाद तू सुबह-सवेरे इस ही की सूंघ ले रहा था। मैं तो बावरी घर चलने की जल्दी में तुझे अपने साथ ले गई ।"
रमिया झूंझून को कहती है,कि झूंझून तू गूंगा-बहरा तो जन्मजात था। ये क्या तेरी याददाश्त भी चली गई ? रमिया ख़ूब इशारे से उसे याद करवाने की कोशिश करती रही।
रमिया को ऐसा लगा जैसे दु:स्वपन सा हो ।रात को देखा हो ।सुबह-सवेरे अंत सुखद अनुभव लिए हो।उसका झूंझून मिल गया।
रमिया सोच में पड़ गई कि फिर मेरे पति के कपड़े धोती और पगड़ी उस शव पर कैसे आए..., माना कि शव क्षत-विक्षत था
वो कौन था?