"वो कौन था" शेष भाग 2
"वो कौन था" शेष भाग 2


रमिया कई दिनों तक झूंझून और उसके साथी का इंतज़ार करती है। उन तीनों लोगों के घर वालों से भी बार-बार पूछती है । कुछ खबर है।
रमिया गांव के मुखिया के पास झूंझून की गुमशुदगी की फरियाद लेकर जाती है। मुखिया और क़बिले के बड़े-बूढ़े उन चारों की खोजबीन करने के लिए क़बिले के लोगों को भेजते है। वो लोग भी ख़ाली हाथ लौट आतें हैं। जैसे-जैसे समय बीतता है, रमिया बड़ी बेचैन और उदास रहती है। बार-बार रमिया को बुरे विचार आते है। फॉरेस्ट के गार्ड को पन्द्रह दिन बाद घने जंगलों में क्षत-विक्षत लाशें पड़ी दिखती है।
बड़वानी गांव कबिले के मुखिया को फॉरेस्ट डिपार्टमेंट की तरफ से खबर की जाती है। क्या गांव से कोई गुमशुदा हुआ है। मुखिया तक ख़बर आती है।
रमिया और उन तीनों के घर वालों को भी लाशें मिलने की भनक लगती है, तो वो लोग भी फॉरेस्ट डिपार्टम पहुंच जाते हैं । मुखिया और गांव के बड़े-बूढ़े भी पहुंचते है।
'रमिया तो बदहवास सी हो जाती है। बस झूंझून के कपड़े और पगड़ी से ही पहचान पाती है। लाश क्षत -विक्षत रहती है। चेहरा पहचान पाना मुश्किल होता है। रमिया बेहोश हो जाती है।
रमिया के पति झूंझून की मौत के बाद रमिया और उसका एक कुत्ता भूरा दोनों रहते थे। रमिया अक्सर अपने कुत्ते भूरा से ही बतियाती रहती थी । कभी-कभी रमिया का भाई "दीनू" उसकी ख़ैर-ख़बर लेने आ जाता था। अपनी "विधवा" बहन की देखभाल ना कर पाने का उसे दुःख था। दीनू अपनी बहन को अपने साथ चलने को कहता तो...,
रमिया ये कह कर टाल देती "दीनू" मैं यहीं ठीक हूं। देख मैं इस गांव को छोड़कर नहीं जाऊंगी । मेरी यादें बसी हैं। रमिया को भी अपने भाई की माली हालत का अंदाज़ा था।
रमिया को गांव के मुखिया और बड़े-बूढ़े सम्मान देते थे। रमिया को गांव के सब लोग "काकी" से सम्बोधित करते थे।
रमिया अपने कुत्ते भूरा के साथ पास के गांव में हाट-बाज़ारों में मिट्टी के खिलौने और कुछ दीये लेकर "हाट-बाज़ार" को निकल पड़ती।