"वो कौन था"
"वो कौन था"


अपने होने वाले पति झूंझून को देखती है। छैल-छबीला गठीला शरीर ,मूंछें, सिर पर रंग-बिरंगी पगड़ी और धोती पहने सजीला जवान दिख रहा है। वो रमणीय जंगल ,जहां झरनें, नदियां, पहाड़ रमिया बहुत "सुन्दर रुपसी नवयौवना" चांदी की हंसली , बड़े-बड़े कर्णफूल, फूलों की मालाओं के गहने रमिया की सुन्दरता में चार-चांद लगा रहे थे। अपने पति के हाथ में-हाथ डालें रमणीय जंगल में घूम रही है। गहरी नींद में बड़बड़ाती हुई, पति के आलिंगन में स्मृतियों में खोई थी।
सुबह की पहली किरण के साथ ही जंगल में पक्षियों का कलरव सुन रमिया को यथा स्थिति का भान हुआ ।बारिश थम चुकी थी। ऐसा प्रतीत होता था,जैसे बादल भी सुस्ता रहे हों ,पेड़ों के पत्तों से बूंदें धीमे-धीमे टप-टप गिर रही थी । रमिया ने देखा भूरा भी वहीं कुछ सूंघता फिर रहा था। खंडहरों में कुछ तबदीली देख रमिया भी चौंकी। रमिया को याद आया कि कल रात एक आदमी टकराया था। रमिया की नज़रें उसे तलाश रही थी कि बिल्ली प्रकट हुई पीछे-पीछे वही मस्त-मलंग आदमी भी आ गया ।वो कुछ बोला नहीं। अपने रास्ते चलता बना। रमिया कुछ सोचती सी इस जैसी छवि को पहले भी कहीं देखा है। कौन होगा ये मानुष?
भूरा को लेकर लम्बे -लम्बे डग भरती रमिया घर की ओर चल दी।
एक दिन उस मस्त मलंग को जंगल के रास्ते में रमिया ने देखा तो पीछे-पीछे खंडहरों तक पहुंच गई। भूरा भी मंलग को सूंघने के
साथ -साथ कूं-कूं-कूं करके पैरों में लिपटने की कोशिश करता है। मस्त-मलंग तेज़-तेज़ डग भर के खंडहरों के बरामदे में बैठ गया।
दिन की रौशनी में जैसे ही रमिया ने उसे देखा तो वो दंग रह गई ,ये तो उसका झूंझून ही था। आवक सी ख़ुशी में आंसू बह रहे थे।