"समय का चक्र"
"समय का चक्र"
"बरेली-कासगंज में अखिलेश चौहान जमींदार थे । उनका बहुत बड़ा साम्राज्य स्थापित था ।चार भाई और छह बहनों का संयुक्त परिवार था।
पुश्तैनी हवेली और ज़मीनें थी। सबसे बड़े भाई देवान्त चौहान और गायत्रीदेवी की एक ही औलाद थी जतिन
चौहान अपने दादा अखिलेश चौहान का लाडला था ।
'जतिन मेडिकल की पढ़ाई पूरी कर चुका था।
अपनी आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका जाना चाहता था। घर के बुजुर्ग दादाजी, ताऊ जी और चाचा जी की इच्छा थी, जतिन की शादी तय करना चाहते थे। जतिन अपने दादा-दादी का लाडला होने की वजह से उनकी इच्छा के विरुद्ध नहीं जाना चाहता था।
उसने दादाजी के बताए हुए रिश्ते के लिए हां कर दी थी, एक शर्त रखी थी, कि मैं दो साल बाद अमेरिका से पढ़ाई पूरी करके ही शादी करूंगा ।
जतिन को घर के बड़े-बुजुर्गों के साथ दादाजी के बचपन के दोस्त 'हरि सिंह' की पोती को देखने जाते हैं।
लड़की को जब बुलाया जाता है, लड़की को देखते ही जतिन और लड़की के होश उड़ जाते हैं। अनजाने में ही जतिन के मुंह से लड़की का नाम निकल जाता है वैशाली तुम ...
वैशाली भी एक लम्बें अंतराल के बाद जतिन को देखकर झटका लगता है "ये कैसा समय का चक्र है।
जतिन का रिएक्शन देखकर बड़े-बूढ़े समझते हैं दोनों एक-दूसरे को जानते हैं। जतिन ख़ामोश रहता है।
दादाजी कहते हैं। जतिन तुम्हें कुछ बात करनी हो तो वैशाली से बात कर लो। हमें बताना ये रिश्ता पक्का कर देते हैं, लेकिन तुम अच्छे से एक-दूसरे को समझ लो तब ही बात आगे बढ़ाएंगे
तुम दोनों आपस में सोच समझ लो तब ही इस रिश्ते को, हम ये नहीं चाहते कि बड़ों के दबाव में आकर तुम दोनों सोच-समझ कर हां करना। जीवन तुम दोनों को बिताना है।
जतिन की आंखों में वो दृश्य घूम जाते हैं, जब वैशाली और जतिन एक ही कोचिंग में मिलते हैं पी.एम.टी की तैयारी के लिए दिल्ली में रहने जाता है। होस्टल में आलोक, रोहन और विकास, जतिन चारों की दोस्ती पढ़ाई की वजह से थी।
कोचिंग में लड़कियों भी साथ पढ़ती थी। उन्हीं में एक वैशाली भी थी। इन लड़कियों का ग्रुप पैसे वाली बाप की औलादों में शुमार था ।
शेष भाग कल ....!