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शशांक मिश्र भारती

Abstract

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शशांक मिश्र भारती

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राष्ट्रभाषा

राष्ट्रभाषा

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     एक देश की राजधानी में चार व्यक्ति अलग-अलग प्रांतों से आकर मिले।

     चारों ने अपनी बात अपनी-अपनी भाषा में कहने की ठानी। एक-दूसरे की भाषा कोई न जानता था।

     फलतः एक-दूसरे की बात कोई न समझ पाया। कोई ऐसा भी न था, जो समझाता-

    अरे, मूर्खों क्यों अपनी ढपली अपना राग सुना रहे हो।

    एक सर्वमान्य भाषा को राष्ट्रभाषा क्यों नहीं बनाते। उसका प्रयोग ऐसी समस्या का अन्त करता।


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