सूझ-बूझ
सूझ-बूझ
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(प्रस्तुत रक्षाबन्धन पर बालकथा सूझबूझ सबसे लल्लूजगधर अ.वा. मई 2006 पृ...21 पर उसके बाद देवपुत्र रचनाकार आदि में छपी आज आपके सामने है रक्षा बन्धन की बहुत बहुत बधाई)
इस बार पुनः रक्षाबन्धन का पावन पर्व आने वाला है।वैसे तो यह पर्व भाई-बहिन के बीच अनूठे रिश्ते का है।प्यार का है।भाईयों के मन में अपनी बहिन की रक्षा के संकल्प को मजबूत करता है। सभी बड़ी बेचैनी से रक्षाबंधन की प्रतीक्षा कर रहे थे।बच्चे चाहते थे, कि प्रत्येक वर्ष की तरह ही इस वर्ष भी रक्षाबन्धन किसी नये तरीके से मनाया जाये।उनकी इच्छा थी,कि त्यौहार तो हम सब मनायें ही;साथ ही साथ अपने देश- समाज व उसके वातावरण को भी इससे जोड़े रखें। बूंद-बूंद से ही घड़ा भरता है।ऐसा मानते हुए बच्चों ने बगीचे में एक बैठक बुलाई- ‘‘हां, तो मित्रों; रक्षा बन्धन का पवित्र पर्व पुनः आने वाला है।घर से बाहर तक उसकी चमक-धमक फैल रही है।दुकानें रंग-बिरंगी राखियों, खिलौनों से सज गई है। हां दिखती तो रही हैं।यह प्रतिवर्ष ही दिखती हैं इसमे कोई आश्चर्य नहीं? भागीरथी की बात पर साक्षर ने बोलते हुए कहा, बात यह नहीं है मित्रो, बल्कि प्रश्न यह है कि हम जिन राखियों को अपनी कलाई पर बांधते हैं।वह कहां से आती है।शायद आपको पता नहीं है, कि धरा के आभूषण पेड़-पौधों का ही इन राखियों के बनाने में सबसे बड़ा योगदान है।उनमें लगने वाला लाल, हरा, नीला, पीला रंग और रुई भी इन्हीं पौधों से मिलती है। फिर क्यों न इस बार हम सभी कुछ ऐसा करें कि हमारा यह पर्व पर्यावरण से जुड़ जाये।जिससे पेड़ों के कटने पर रोक लगेगी।प्रदूषण भी कम हो जायेगा।चेतना ने भागीरथी की बात को स्पष्ट करते हुए कहा, ठीक तो है, हमें अपने आस-पास का भी सोचना चाहिए।सभी की कुछ न कुछ अपनी जिम्मेदारी है।आस्था बोली। हां सो तो है।क्यों न हम सभी इस आने वाले रक्षा बन्धन पर इन्हीं वृक्षों को अपना भाई बहन बना लें।एक राखी अपने भाई की कलाई पर बांधें। दूसरी वृक्ष को भाई बनाकर उसके तने पर बांधें।अपनी रक्षा के संकल्प के साथ-साथ भाई-बहन वृक्षों की रक्षा का भी संकल्प लें।बोलो मित्रों, आप सभी का क्या विचार है।भावना ने सभी की ओर देखते हुए कहा, ठीक है हम सभी आपसे सहमत हैं.......। सभी एक साथ बोल पड़े। अच्छा तो शीघ्र ही सभी लोग अपने लिए एक-एक भाई का चुनाव करेंगे।फिर आने वाले रक्षा बन्धन पर उसे रक्षा सूत्र बांधेंगे।साथ ही साथ उसकी रक्षा का संकल्प भी लेंगे। इसी के साथ आज की बैठक समाप्त होती है।उपदेशिका ने बैठक समाप्त करते हुए कहा। सभी अपने-अपने घर चले गये।कुछ ही दिनों बाद रक्षा बन्धन का पवित्र पर्व आ गया।जिसके लिए हर बच्चा पहले से कहीं अधिक उत्साहित था।होता भी क्यों न, इस बार उन्हें नया जो करना था। पहले से ही तय किये गये कार्यक्रम के अनुसार बहिनों ने अपने भाईयों के साथ-साथ अपने लिए चुने गये वृक्ष भाईयों के भी राखियां बांधीं। पूरे एक वर्ष तक रक्षा करने का संकल्प लिया।देखते ही देखते गांव के सभी वृक्ष किसी न किसी के भाई बन गये थे।कितना अद्भुत था वह दृश्य।कुछ ही वर्षों के बाद गांव पुनः हरे-भरे वृक्षों से घिर गया।कोयलिया के गीत पुनः गूंजने लगे।गरमी के दिन भी बिना किसी कठिनाई के पेड़ों की मधुर छाया में आसानी से बीतने लगे। यह सब गांव के होनहार बच्चों की सूझ-बूझ का ही फल था। जिन्होंने कुछ वर्षों पूर्व उनकी रक्षा का सूत्र रक्षा बन्धन के पवित्र पर्व से जोड़ दिया था।वृक्षों को भाई बना दिया था।
