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शशांक मिश्र भारती

Abstract

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शशांक मिश्र भारती

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कैसा परिवार

कैसा परिवार

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            सत्तर साल के रघुनन्दन की छाती में अचानक दर्द उठा।जैसे तैसे उठकर आए।देखा बैठक में लड़का बहू बेटी व पत्नी सबके सब अपने अपने मोबाइल में व्यस्त हैं।

            लम्बी सांस लेकर कहा कि मैं अस्पताल चैकअप के लिए जा रहा हूं।छाती में दर्द हैं।

            ठीक है।संभलकर जाना।कोई जरूरत हो तो फोन कर लेना कहकर पत्नी अपने मोबाइल में लग गई।

            बड़े प्रयास कर दरवाजे तक आए।लड़खड़ाकर गिर गए।होश आया तो अस्पताल में थे।पास में घर का नौकर आशीष खड़ा था।

            बेटा मैं यहां कैसे आया और तुम मेरे पास क्या कर रहे हो ? बापू जी जब मैं सब्जी लेकर बाजार से आया।आप दरवाजे के पास पड़े थे।मैंने अन्दर आवाज दी किसी ने सुना नही ंतो मैं आपको ई रिक्शा पर बिठाकर यहां ले आया।ऐसा आशीष बता रहा था कि तभी उसके मोबाइल की घण्टी बज उठी।

            मालकिन का फोन था।बहुत नाराज हो रही थी।कितनी देर लगा दी सब्जी लाने में।घर आओ अच्छी तरह खबर लेती हूं।

           रघुनन्दन के कान में आवाज पड़ी तुरन्त मोबाइल ले लिया।सामने उनकी ही घर वाली थी ।बोले यह मुझे अस्पताल लाया है।

            बात पूरी हो पाती कि श्रीमती जी ने प्रश्न कर दिया क्या मुझे फोन नहीं कर सकते थे।मैं और मेरा परिवार आपके साथ होता।

            इतना सुनना था कि रघंनन्दन ने फोन काट दिया।उनके मुख से निकला कैसा परिवार ???


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