राजा को मिली लाभदायक उचित सलाह

राजा को मिली लाभदायक उचित सलाह

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जी हां, पाठकों जो कहानी बचपन में दादी-नानी से सुनी है, उसे अपने शब्‍द रूपी माला में पिरोते हुए आपके समक्ष प्रस्‍तुत कर रही हूं । आशा है कि आप अवश्‍य ही पसंद करेंगे ।

बहुत पुरानी कहानी है, कि महाराष्ट्र राज्‍य में जब शिवाजी महाराज सुलतान के साथ लगातार युद्ध करने के पश्‍चात भी अपना पूर्ण रूप से शासन स्‍थापित करने में असफल हो रहे थे, तब उनको एकाएकी दिमाग में सूझी कि ऐसे तो मुझे कोई रास्‍ता समझ में नहीं आ रहा है, तो उन्होंने एक दिन भ्रमण पर निकलने की योजना बनाई ताकि वह ये जान सके कि प्रजा की उनके बारे में क्‍या राय है ? बस उसी को माध्‍यम बनाकर वे चल पड़े थे ।

एक दिन घनघोर वर्षा हो रही थी । मेघों की भयानक गर्जना ने उस शाम के वातावरण को और भी भयावह वह बना दिया था। एक गरीब दम्‍पत्ति अपनी झोपड़ी में बैठे बेचारे अपनी सुख-दुख की बातें कर रहे थे । इतने आंधी-तूफान में अचानक किसी राहगीर ने दरवाजा खटखटाया और आवाज देकर कहा ‘ अन्‍दर कोई है क्‍या ? किसान ने दरवाजा खोलकर देखा तो सामने पूरे सकारात्‍मक आत्‍मविश्‍वास से सराबोर बीस-इक्‍कीस वर्ष का नौजवान खड़ा था । वर्षा में वह पूरी तरह से भीग चुका था और थक भी गया था । उसकी वेशभूषा और लटकती तलवार को देखकर मानों ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वह कोई सिपाही होगा ।

किसान ने उससे पूछा, क्‍या बात है भाई ?

नौजवान बोला, ‘मैं एक राहगीर हूं, इस वर्षा में बुरी तरह भीगने के कारण मार्ग भटक गया हूं और इस कारण मेरा घोड़ा भी बहुत थक गया है, इसलिये आज की रात बिताने के लिए केवल जगह चाहिए । सबेरा होते ही हम अपनी राह चले जाएंगे ।

नौजवान को आसरा मिल गया, इसकी वह खुशी मना ही रहा था कि किसान की पत्नी ने उसे बदलने के लिए कपड़े दिए और कहा इन्‍हें पहन लो और भीगे वस्त्रों को आग के पास सुखा दो, जिससे वे जल्दी सूख जाएँगे । किसान ने घोड़े को आँगन में बाँध दिया और खाने के लिए चारा दे दिया ।

किसान की पत्नी ने उस नौजवान से पूछा – “भूख लगी होगी तुम्‍हें , रात भी हो चुकी है, कुछ खाना खा लो” ।

नौजवान ने कहा – “नहीं, नहीं, मैं खाना नहीं खाऊँगा. मैं अभी सोना चाहता हूँ.” किसान बोला – “यह नहीं हो सकता. हम गरीब अवश्य हैं, लेकिन घर आए अतिथि को भूखा थोड़े ही सोने देंगे. जो कुछ रूखा-सूखा हम खाते हैं, वही तुम भी खा लो”

वह नौजवान, इस प्रेम भरे आग्रह को टाल न सका. किसान की पत्नी ने नौजवान तथा किसान के आगे केले के पत्तल लगा दिए. पत्तल पर ही गरमा-गरम चावल परोसा और वह कढ़ी लाने गई । महिला ने चावल पर कढ़ी परोसी तो वह पत्तल पर बहने लगी. नौजवान उसे एक ओर से रोका तो वह दूसरी ओर से बहने लगी । उसकी समझ में यह नहीं आ रहा था, कि वह कढ़ी को बहने से रोकने के लिए करे क्‍या ?

उस नौजवान की परेशानी देखकर किसान की पत्नी को एकदम जोरों से हँसी आ गई और वह उससे बोली – “तुम तो शिवाजी की तरह बुद्धू निकले ” । फिर उसने उसे सलाह देते हुए कहा – “चावल में कढ़ी लेने से पहले बीच में जगह कर लेना चाहिए, नहीं तो कढ़ी बहने से रुक नहीं सकती, तुम्हें इतना भी नहीं मालूम ” ?

नौजवान बोला – “मुझे तो कढ़ी-चावल खाना आता ही नहीं, इसलिए मैं तो बुद्धू हूँ, लेकिन यह शिवाजी कौन है ? आप जानतीं हैं कौन है वह ? उसे आप बुद्धू क्यों कह रहीं हैं ”?

किसान की पत्नी बोली – “शिवाजी महाराष्ट्र पर पूर्ण रूप से अपना शासन कायम करना चाहता है, इसीलिए तो सुल्तान से युद्ध करता है वह । बहादुर तो बहुत है वह, लेकिन उसके युद्ध करने का तरीका पूर्णत: ठीक नहीं है ” ।

“तरीका, वह कैसे ?” – नौजवान ने अचरज से पूछा ?

महिला बोली – “शिवाजी छोटे-छोटे गाँव पर कब्जा तो पहले कर लेता है, परन्तु किलों पर अधिकार नहीं करता है । बस यह बात सुल्‍तान को मालूम है, इसलिए तो उसके सैनिक मौका मिलते ही किले से निकलते हैं और युद्ध करते हैं । फिर शिवाजी को कायरों की तरह मन मसोस कर अपनी राह परवर्तित करनी पड़ती है । वह यह नहीं जानता है कि स्वराज्य हासिल करना है तो बड़े किलों पर कब्जा पहले करने की कोशिश करनी चाहिए ” ।

नौजवान बोला – “किलों पर इतनी जल्‍दी कब्जा करना आसान नहीं है और इसमें वक्‍त भी लगता है ” ।

महिला ने कहा – “ठीक है, परन्तु छोटे-छोटे किलों पर कब्जा करना परम आवश्यक तो है । मानती हूं मैं, परन्‍तु बड़े किलों को अपने अधिकार में किए बिना स्वराज्य हासिल नहीं किया जा सकता । जैसे चावल में बीच में जगह किए बिना कढ़ी बह जाती है, उसी प्रकारबड़े किलों के बिना प्रदेश भी हासिल करना कठिन कार्य है । जिसके पास बड़ें किले होंगे, उसी का महाराष्ट्र पर स्‍वच्‍छंद शासन होगा” ।

उस नौजवान को अब किसान की पत्‍नी की बात पूर्ण रूप से समझ में आ गई थी । वह सुबह-सुबह ही उठकर अपनी राह चला गया ।

इस घटना को घटित हुए काफी वर्ष बीत गए । किसान का परिवार अब वृद्ध हो गया था । पूर्ण महाराष्ट्र राज्‍य में शिवाजी महाराज का ही पूर्ण रूप से शासन स्‍थापित हो चुका था और पूरे राज्‍य में उनके राज्याभिषेक की तैयारियाँ जोर-शोर से हो रही थीं ।

एक दिन बूढ़ा किसान अपनी झोंपड़ी के बाहर बैठा था । उसी समय बहुत से घुड़सवार वहाँ आकर रुके और किसान से कुछ पूछा । उत्तरों से संतुष्ट होकर घुड़सवारों के नेता ने कहा – “शिवाजी महाराज ने आपको आमंत्रित किया है ” ।

यह सुनते ही बुढ़ा किसान बिचारा घबरा गया और बोला – “क्या बात हो गई, भाई ? मुझसे कोई खता हुई क्‍या ? जो शिवाजी महाराज ने हमें बुलाया है ” । सरदार ने कहा – “महाराज ने हमें तो केवल इतना ही जानकारी मिली है दादा, कि आपके कढ़ी-चावल के उदाहरण के कारण ही पूर्ण रूप से स्‍वराज्‍य हासिल करने में सफलता प्राप्‍त हो पायी है । अतः महाराज की इच्छा है कि आप उनके राज्याभिषेक में अवश्य ही पधारें ” ।

इस प्रकार से एक गरीब किसान परिवार की लाभदायक उचित सलाह ने शिवाजी महाराज को नयी योजनाएं आंरभ करने के लिये मूर्त रूप दिया,इसी उचित सलाह को ध्‍यान में रखकर अपना एकमात्र लक्ष्‍य हासिल करते हुए ही उन्होंने मराठा साम्राज्य स्थापित किया। इसीलिये शिवाजी महाराज का नाम आज भी पूरे महाराष्ट्र में ही नहीं पूर्ण विश्‍व में भी प्रसिद्ध है और पूरे सम्‍मान के साथ ही उन्‍हें नतमस्‍तक होते हुए आज भी याद कियवो कहते हैं न, कि कभी-कभी जीवन में सफलता प्राप्‍त करना हो तो अपने छोटों की भी सलाह आवश्‍यकता पड़ने पर ले लेना चाहिए । इस धरती पर कोई भी मानव छोटा-बड़ा नहीं होता है । यह समझ-समझ का फेर है, जो शासन चलाता है, उसे हमेशा ही सकारात्‍मक सोच के साथ हर फैसले लेने की जरूरत होती है, इसलिये बीच-बीच में प्रजा की राय लेना भी अति- आवश्‍यक है, तभी तो हम कहते हैं न, जहॉं राजा, वहॉं प्रजा और राजा यदि सही फैसले लेते हुए शासन करे, तो प्रजा भी खुश, साथ ही राजा भी अपने मकसद को सफलतापूर्वक हासिल करने में कामियाब । यही इस कहानी का महत्‍वपूर्ण उद्देश्‍य है । तो देखा आपने कभी-कभी महाराजा को भी छोटों की सलाह लेना लाभदायक हो जाता है ।


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