प्यार-सम्मान
प्यार-सम्मान


२० साल की दीप्ति अपने से दुगनी से ज्यादा उम्र के देवेश से प्यार कर बैठी। देवेश शायद उसके पापा से कुछ ही वर्ष छोटा रहा होगा। देवेश उसके पापा के दूर के रिश्ते के भाई का बेटा था। दीप्ति और देवेश के पिताओं के बीच रिश्ते से अधिक मित्रता का व्यवहार था। दोनों के बीच दाँत काटी रोटी का संबंध था। देवेश बचपन से ही दीप्ति के पिता के घर आया-जाया करता था। बड़े होने के बाद भी ये सिलसिला थमा नहीं। दीप्ति के पिता के विवाह में देवेश भी शामिल था। उसकी बड़ी बहन, उसके और उसके छोटे भाई के जन्म के समय भी आता-जाता रहता था। एक तरह से परिवार का हिस्सा ही था देवेश। देवेश ४२ वर्ष का हो चुका था। मगर अभी तक उसका विवाह नहीं हुआ था। कारण चाहे जो हो, वो महत्त्वपूर्ण नहीं। देवेश ने दीप्ति को अपनी आंखों के सामने बड़ी होते हुए देखा था। उसे अपनी गोद में बैठाया था। उसे दुलारा था। उसके साथ खेला था। मगर अब... ! अब सब कुछ बदल चुका था।
इस सब की शुरुआत तब हुई जब उसकी बड़ी बहन प्रिया की शादी की गहमागहमी चल रही थी। प्रिया की सगाई तय हो गई थी। प्रिया और उसके मंगेतर नीलेश के रोमांस को देखकर दीप्ति की भावनाएं भी मचलने लगी। ऐसे में उसकी भावनाएं अनायास ही देवेश से जा जुड़ी। सगाई के कार्यक्रम की तैयारी के लिए देवेश रोजाना दीप्ति के घर आ-जा रहा था। ऐसे में एक दिन जब देवेश दीप्ति के घर पहुंचा- घर में दीप्ति के अतिरिक्त अन्य कोई भी नहीं था। दीप्ति ने देवेश को बिठाया और एक प्लेट में बर्फी लेकर आ गई। आते ही देवेश की गोद में बैठ गई। गोद में बैठ गई तो क्या? इसमें कौन सी अनहोनी हो गई। वो तो बचपन से ही बैठती आई है। अभी भी अक्सर बैठ जाया करती है। न तो देवेश को अटपटा लगता और न ही दीप्ति के परिवार वालों को। लेकिन नहीं! आज दीप्ति का गोद में बैठना कुछ अलग ही था। देवेश की गोद में बैठकर दीप्ति ने हाथ में पकड़ी हुई प्लेट सामने रखी मेज पर रख दी और बर्फी का एक टुकड़ा उठाकर देवेश के मुंह की तरफ बढ़ाया। देवेश ने मुस्करा कर मुंह खोल दिया। दीप्ति ने बर्फी देवेश के मुंह में रखी। देवेश ने आधी बर्फी दाँतों से काटकर चबानी शुरू कर दी। शेष आधी बर्फी दीप्ति के हाथ में रह गई। देवेश सोच रहा था कि दीप्ति शेष आधी बर्फी भी उसे खिला देगी। मगर वो हैरान तब हुआ जब शेष आधी बर्फी दीप्ति ने बिना देर किए स्वयं खा ली। दीप्ति यहीं नहीं रुकी। उसने एक दूसरी बर्फी उठाई, आधी स्वयं खाई, शेष आधी हल्की जबरदस्ती के साथ देवेश के मुंह में डाल दी और बिना ये देखे कि देवेश ने बर्फी खाई है या नहीं, भाग खड़ी हुई। देवेश भौंचक्का रह गया था। दूसरी बर्फी का आधा टुकड़ा न चबा पा रहा था और न ही उगल पा रहा था। उसका मन-मस्तिष्क एकदम जाम हो चुका था। उधर मुंह में पड़ी बर्फी लार के साथ घुलती हुई गले और गले से पेट में उतर गई। इस घटना से दीप्ति के मन में देवेश के लिए क्या चल रहा है, यह देवेश पर स्पष्ट हो चुका था।
इस घटना के बाद देवेश तनावग्रस्त हो गया। अजीब सी असमंजस की स्थिति थी। दीप्ति के वय की कोई अन्य लड़की होती तो देवेश अवश्य ही उसके बारे में सोचता। सोचता भी क्या उसे स्वीकार कर लेता। मगर दीप्ति जो उसकी गोद में खेली है, उसे कैसे स्वीकार कर लें? नहीं-नहीं! दीप्ति ने ऐसे ही खा ली होगी बर्फी।
उसके मन ने उसे समझाया।
ऐसे ही कैसे खा ली होगी? भला कोई भी लड़की किसी का भी झूठा ऐसे ही कैसे खा सकती है। जब तक कि वो उससे कुछ विशेष न चाहती हो।
देवेश के अंतर्मन ने कहा।
इसके साथ ही देवेश के मन में वे सारे दृश्य चलने लगे जब एक विशेष उम्र के बाद दीप्ति का व्यवहार बदल गया था। जिसे वो बाल सुलभ चंचलता समझ कर नज़रअंदाज़ कर दिया करता था वास्तव में वो कुछ और ही था। और इस तरह व्यवहार हमेशा उस समय करती जब वो और देवेश अकेले होते। यानी ये भावना दीप्ति के मन में आज उत्पन्न नहीं हुई थी वर्षों से पनप रही थी। हां, देवेश ने ज़रुर अब समझा था।
धीरे-धीरे देवेश को विश्वास होता चला गया कि दीप्ति सचमुच उससे प्यार करती है। और प्रेम-प्रसंगों के मामले में भला पुरुष की कब चली है। अंततः पुरुष को परास्त होना ही पड़ता है।
तो क्या उसे दीप्ति के प्रस्ताव को स्वीकार कर लेना चाहिए?
अवश्य! अन्यथा ये एक स्त्री की भावनाओं का अपमान होगा। उसके प्रेम का तिरस्कार होगा।
और यदि उसके मन में ये भावना न हो तो?
तो भी उसके मन को टटोलने के लिए उसे स्वीकार करना ही होगा। यदि उसके मन में प्रेम की भावना होगी तो वो उसे सहर्ष स्वीकार कर लेगी। और यदि ये भावना नहीं होगी तो उसे ठुकरा देगी। दोनों ही अवस्थाओं में उसे स्वीकार तो करना ही होगा।
अगली बार जब देवेश दीप्ति से अकेले में मिला तब दीप्ति उससे लिपट गई। देवेश के ह्रदय की धड़कनें अनायास ही बहुत तेज हो गई। उसे लगने लगा कि कहीं उसकी देह में दौड़ रहा रक्त उसकी धमनियों को फाड़ कर बाहर न बह जाए। मगर देवेश को अपनी कमजोरी पर विजय पाना ही होगा। पूरी तरह साहस जुटाकर देवेश ने अपने होठ दीप्ति के होठों पर रख दिए। दीप्ति ने कोई विरोध नहीं किया। हां, कुछ पलों के बाद जरूर कसमसा कर अलग होने की कोशिश करने लगी। देवेश ने कोई जबरदस्ती भी नहीं की। छोड़ दिया दीप्ति को। और स्वयं अपने शरीर में बह चली विद्युतधारा पर नियंत्रण करने का प्रयास करने लगा। उधर शायद दीप्ति भी ऐसा ही कर रही थी। दीप्ति, देवेश की तरफ पीठ करके एक कोने में खड़ी हो गई थी। उसकी सांसें बता रही थीं कि विद्युतधारा ने उसके भी शरीर पर नियंत्रण कर रखा है। देवेश तुरंत वापस लौट गया। यदि वो कुछ देर भी और रुक जाता तो शायद ये बाढ़ सारे बांध तोड़ डालती।
इस घटना के बाद तो दीप्ति और भी खुल कर सामने आ गई। मगर देवेश अभी भी एक कशमकश में था। और वो कशमकश था उसके और दीप्ति के बीच की उम्र का फासला। फिर भी देवेश ने स्वयं को धारा में छोड़ दिया था। अब दीप्ति उसकी प्रेमिका थी।
प्रिया की शादी की तैयारियां जोरों से चल रही थी। इस बीच न जाने कितनी बार दीप्ति और देवेश अकेले में मिले। न जाने कितनी बार दोनों अकेले शापिंग करने गए। जब भी दोनों अकेले होते दोनों के बीच प्रेम का आदान-प्रदान होता। देवेश ने दीप्ति के प्रेम को स्वीकार कर लिया था परंतु अभी भी एक सीमा रेखा बनाए रखी। उस सीमा रेखा का उल्लंघन कभी नहीं किया।
प्रिया की शादी राजी खुशी निपट गई। प्रिया अपने घर की हो गई। विवाह के बाद किसी कारणवश देवेश दो महीने तक दीप्ति से नहीं मिल सका। देवेश कुछ ऐसी उलझन में फँस गया था कि उसे फोन भी करने का अवसर नहीं मिल पाया। दो महीने बाद जब देवेश दीप्ति के घर पहुंचा तो दीप्ति ने बहुत ज्यादा बेरुखी दिखाई। अकेले में होने के बावजूद भी दीप्ति उससे नहीं मिली। देवेश ने कुछ कारण होगा, यह सोचकर किसी तरह का दबाव भी नहीं दिया। घर लौटकर शांति से दीप्ति के बदले हुए व्यवहार के बारे में सोचता रहा। जब कुछ समझ नहीं आया तो दीप्ति के मोबाइल पर मैसेज डाल दिया जिसमें उसने अपने प्रति उखड़े हुए व्यवहार के बारे में जानना चाहा। दीप्ति का जवाब बहुत जल्दी ही आ गया। उसने लिखा- 'मैं गलत थी। अब अपनी ग़लती सुधारना चाहती हूं।'
देवेश ने पुनः एक संदेश दिया- 'कोई बात नहीं। मैंने जब तुम्हारे प्रेम को स्वीकारा था तब भी तुम्हारी इच्छा का सम्मान किया था। अब भी तुम्हारी इस इच्छा का सम्मान करूँगा। बस इतना याद रखना कि तुमने मेरा झूठा खाया है और मैंने भी तुम्हारे होठ... । ये कोई सामान्य बात नहीं है।'
देवेश के मन से जैसे कोई बहुत बड़ा बोझ हट गया। जिस असमंजस की स्थिति में वो पिछले तीन-चार महीनों से पड़ा था, एक झटके में उससे बाहर निकल आया। उसने अपने मन में एक अजीब सी शांति महसूस की।
इसके बाद भी देवेश दीप्ति के घर जाता रहा। मगर अब उसने दीप्ति से एक दूरी बना ली थी। अब उसके मन में एक डर समाया हुआ था। उसके और दीप्ति के बीच जो कुछ हुआ यदि वो किसी भी तरह सबके सामने आ गया तो दीप्ति साफ मुकर जाएगी। देवेश की बात पर कोई विश्वास नहीं करेगा। देवेश बिना अपराध किए अपराधी हो जाएगा।
अब देवेश दीप्ति से बहुत ही सीमित व्यवहार करता था। दीप्ति नमस्ते करती तो नमस्ते का जवाब देता। अन्यथा अपनी तरफ से नमस्ते नहीं करता। दीप्ति कुछ पूछती है तो जवाब देता अन्यथा अपनी तरफ से कोई बात नहीं करता।
समय बीतता चला गया। आज देवेश ६२ वर्ष का हो चुका है। दीप्ति भी ४० वर्ष की हो चुकी है। दोनों आज भी अविवाहित हैं। मगर अब भी दोनों के बीच दूरी बनी हुई है।