mohammed urooj khan khan

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mohammed urooj khan khan

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पुरुष की मर्यादा

पुरुष की मर्यादा

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सुबह का समय था तब ही दरवाज़े पर एक दस्तक होती है।

इतनी सुबह कौन आया होगा जाकर देखती हूँ रसोई में काम कर रही उस घर की मालकिन ने कहा और दरवाज़े की तरफ चल पड़ी।

दरवाज़ा खोल कर देखा तो सामने एक लड़की ख़डी थी।

"जी नमस्ते! मेरा नाम अवनी है, क्या अंशुमन यही रहता है? " सामने ख़डी लड़की ने बड़े एहतराम से पूछा

"हाँ बेटा, ये अंशुमन का ही घर है और मैं उसकी माँ लेकिन तुम, तुम कौन?" दरवाज़े पर ख़डी उस महिला ने कहा।

वो लड़की अवनी कुछ बोलना तो चाह रही थी पर ना जाने क्यू उसकी जुबान साथ नहीं दे रही थी वो कुछ कह पाती तब ही अंशुमन की माँ बोल पड़ी " अच्छा! तुम जरूर मेरे बेटे के कॉलेज में पढ़ती होगी उससे मिलने आयी होगी तुमसे पहले भी उसके कुछ दोस्त आये थे उससे मिलने जबसे अस्पताल से आया है तब से कोई ना कोई दोस्त रिश्तेदार उसका पूछना करने आ रहे है

सबने पूछ पूछ कर जान ही निकाल दी है कि आखिर कैसे चोट लगी, कैसे हाथ टूटा अंशुमन की माँ ने कुछ ज्यादा ही बोल दिया ज़ब उन्हें एहसास हुआ तब वो बात को बदलने की कोशिश करते हुए हकलाते हुए बोली " म,, म,, मेरा वो मतलब नहीं था आओ तुम अंदर आओ, अंशु अभी अपने कमरे में है मैं जाकर बताती हूँ "

"नहीं,, नहीं आंटी मैं यहां किसी को तकलीफ देने नहीं आयी हूँ, अंशुमन सो रहा होगा इस समय मुझे बस पूछना था कि अब वो केसा है, ठीक तो है " अवनी ने कहा


"हाँ, बेटा ठीक ही है, डॉक्टर ने थोड़ा आराम करने को कहा है, हाथ भी फैक्चर हो गया है, इसलिए अभी कुछ दिन कॉलेज भी नहीं आएगा खेर छोड़ो तुम अंदर आओ इस तरह मेहमान को दरवाज़े से ही विदा करना अच्छी बात नहीं, अब आयी हो तो उससे मिल कर जाओ मैं अभी उसे बुला कर लाती हूँ " अंशुमन की माँ ने कहा और अवनी का हाथ पकड़ कर उसे घर के अंदर ले आयी।

"तुम बैठो बेटा, मैं अभी उसे बुलाकर लाती हूँ, अंशुमन,, बेटा अंशु देख तेरे कॉलेज की दोस्त आयी है तुझसे मिलने " अंशुमन की माँ ने अवनी से बैठने का कहा और अंशुमन को आवाज़ लगाती हुई उसके कमरे की और चली गयी।

सोफे पर बैठी अवनी अंशुमन के घर को देख रही थी जो की एक छोटा सा घर था और वही दिवार पर टंगी एक तस्वीर जिस पर माला टंगी हुई थी शायद अंशुमन के पिता की थी अवनी अंशुमन का इंतज़ार कर रही थी।

"अंशुमन की माँ, अंशु के कमरे में पहुंच कर, तू यहां बैठा पढ़ाई कर रहा है और मैं तुझे कबसे आवाज़ दे रही हूँ, चल बाहर तुझसे मिलने तेरी कॉलेज की कोई दोस्त आयी है " अंशुमन की माँ ने कहा

"सॉरी माँ, वो कानो में हैडफ़ोन लगे हुए थे, दोस्त ने लेक्चर की रिकॉर्डिंग भेजी थी वही सुन रहा था, अब बोलो क्या हुआ?"अंशुमन ने पढ़ाई की तरफ से ध्यान हटाते हुए कहा।

"लो भाई, अब फिर बताऊ, तेरे कॉलेज की एक दोस्त आयी है तुझसे मिलने जरूर तेरा हाल चाल पूछने आयी होगी बड़ी प्यारी बच्ची है, चल अब ज्यादा इंतज़ार मत करा बाहर आ मुझे और भी काम है फिर स्कूल भी जाना है " अंशुमन की माँ ने कहा उसका हाथ पकड़ कर बाहर की और सहारा दे कर ले जाते हुए।

"मेरी दोस्त, मेरे कॉलेज की जरूर आपको कोई भूल हुई होगी आपकी ही कोई स्टूडेंट होगी जो अब इतने साल बाद आयी होगी और आप उसे पहचान नहीं पा रही होंगी ध्यान से जाकर देखिए " अंशुमन ने कहा माँ को रोकते हुए।

"मैं अभी इतनी बूढी नहीं हुई हूँ, कि मैं अपने पढ़ाये बच्चों को पहचान न पाऊ, उसने आकर तेरा ही नाम लिया था तेरे ही नाम से वो घर तक आयी है, कही कुछ और बात तो नहीं कही तू मुझसे कुछ छिपा तो नहीं रहा है,पहले ये चोट अब लड़की का घर आना अगर कुछ ऐसा वैसा है तो बता दे वरना बहुत पछतायेगा " अंशुमन की माँ राधा ने कहा।

"अरे माँ तुम भी, अच्छा चलो मैं भी तो देखू मुझसे मिलने कौन आया है वो भी कॉलेज से जहाँ अभी गए मुझे मुश्किल से दो महीने भी नहीं हुए है " अंशुमन ने कहा और फिर थोड़ा लड़खड़ाता हुआ बाहर की और आ गया अपनी माँ का सहारा लेकर

"ये लो आ गया, अंशुमन " राधा जी ने कहा पीठ फेरी बैठी अवनी से

उसने जैसे ही पीछे से आयी आवाज़ को सुना जल्द से गर्दन घुमा ली और पीछे खडे अंशुमन को देखने लगी।

अंशुमन भी उसे वहाँ देख भोचक्का सा रह गया था दोनों थोड़ी देर एक दुसरे को यूं ही देखते रहे तब ही राधा जी बोल पड़ी " ठीक है, तुम दोनों यहां बैठो मैं चाय लेकर आती हूँ "

नहीं ऑन्टी चाय नहीं मुझे कॉलेज भी जाना है, " अवनी ने कहा।

"नहीं बेटा तुम दोनों बैठो मैं पांच मिनट में आती हूँ चाय लेकर, इस तरह मेहमान को नहीं जाने देते है बिना कुछ खिलाये पिलाये " राधा जी ने कहा और वहाँ से चली गयी।

अब बस वहाँ अवनी और अंशुमन ही थे, अंशुमन अवनी के ठीक सामने बैठा था सामने बैठी अवनी के काँपते होठ बता रहे थे कि वो कुछ कहना चाह रही थी पर कह नहीं पा रही थी और आखिर कार उसने अपने काँपते होठों से कहा " त,, त,, तुम ठीक तो हो अंशुमन "

"हाँ ठीक हूँ, पर तुम यहां कैसे घर का पता कैसे मिला " अंशुमन ने पूछा

"वो मैंने,,, मैंने वो कॉलेज से लिया तुम्हारी चिंता हो रही थी तुम उस दिन मुझे माफ कर दो अंशुमन मुझसे गलती हो गयी " अवनी ने एक दम से हाथ जोड़ते हुए कहा।

उसे इस तरह देख अंशुमन बोल पड़ा " अवनी प्लीज, ये कोई कॉलेज या कैंटीन नहीं है जहाँ तुम इस तरह की बातें कर सकती हो ये मेरा घर है तुम मेरा पूछना करने आयी मुझे अच्छा लगा अब तुम जा सकती हो, तुम परेशान मत हो मैं किसी को नहीं बताऊंगा की मुझे चोट कैसे लगी खास कर कॉलेज के डीन को "

"तुम्हे लगता है मैं यहां इसलिए आयी हूँ " अवनी ने कहा।

"तो फिर किस लिए आयी हो, मुझे जिन्दा देख कर अच्छा नहीं लगा शायद तुम्हे तुम तो खुश हो जाती अगर उस दिन खिड़की से गिर कर मेरे हाथ या पैर नहीं टूटे होते और मैं मर जाता " अंशुमन ने कहा थोड़ा गुस्सा करते हुए।

नहीं अंशुमन इस तरह मत कहो, मैं पहले ही बहुत शर्मिंदा हूँ अब मुझे और शर्मिंदा मत करो, मैं तो यहां अपनी गलती की माफ़ी मांगने आयी थी क्यूंकि उस दिन के बाद से मुझे एक दिन भी सुकून से नींद नहीं आयी है, मुझे तुम माफ कर दो और चाहो तो कॉलेज डीन को सब कुछ सच सच बता दो उस दिन जो कुछ भी मैंने और मेरे दोस्तों ने तुम्हारे साथ करने की कोशिश की थी ताकि हमें सजा मिल सके कॉलेज से निकाल दिया जाए हम लोग इसी के लायक है

मुझे लगता था कि तुमने ही प्रोफेसर को बताया है हमारे एग्जाम पेपर चुराने के बारे में इसलिए ही तो उन्होंने एग्जाम पेपर बदल दिए थे ताकि हम सब बच्चें फ़ैल हो जाए क्यूंकि ज़ब से तुम कॉलेज में आये थे तब से ही सारे प्रोफेसर तुम्हारे ही गुण गान गा रहे थे हर सब्जेक्ट में तुम ही हीरो बने हुए थे।

मुझे लगा की तुम्हे मजा चखाना चाहिए इसलिए अपने दोस्तों के साथ मिलकर मैंने वो प्लान बनाया था ताकि तुम्हारी कुछ ऐसी तस्वीरे खींच ली जाए उन लड़कियों के साथ जिससे तुम हमारी मुट्ठी में आ सको बाहर जाने के सारे रास्ते बंध थे और तुम कमरे में उन लड़कियों के साथ अकेले थे तुम चाहते तो भावनाओं के साथ बह सकते थे ताकि हमारा प्लान सक्सेसफुल हो जाता लेकिन तुमने खुद को बचाने के लिए दो मंजिला ईमारत से कूदना सही समझा मुझे नहीं मालूम था कि तुम इतना बड़ा कदम उठा लोगे एक बार भी बिना सोचे समझें खिड़की से कूद जाओगे वो भी दो मंजिला ईमारत की खिड़की से अवनी कुछ और कहती तब ही अंशुमन बोल पड़ा

उस समय मेरे पास कोई और रास्ता नहीं था भले ही वो लड़कियां तुम्हारे प्लान के हिसाब से मुझे अपनी और आकर्षित करने का हर सम्भव प्रयास कर रही थी लेकिन मेरे संस्कार और मर्यादा इस बात की इजाजत नहीं दे रहे थे मेरे लिए खिड़की से कूदना कही उचित था कॉलेज में बदनाम होकर अपने माता पिता का सर झुका कर जीने से अच्छा कही मेरे लिए खिड़की से कूद कर अपनी जान देना कही ज्यादा सही लगा जो मैंने किया भी पर शायद ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था जो एक बार फिर तुम्हारे सामने बैठा हूँ तो इस बार कौन सा प्लान बनाओगी मुझे बदनाम करने के लिए बोलो अवनी रायजादा

"कोई सा नहीं, मुझे तुम्हारी माफ़ी मिल जाए वही बहुत है उस दिन के बाद से तो मैं खुद से भी नजरें नहीं मिला पा रही हूँ, कि मैं किस हद तक गिर गयी थी मुझे खुद यकीन नहीं हो रहा है ऐसा घिनोना काम करने जा रही थी छी सोच कर ही घिन्न आती है " अवनी ने कहा नजरें नीचे झुका कर

उसे इस तरह देख अंशुमन को लगने लगा था कि शायद अवनी सच में शर्मिंदा है इसलिए उसने उसकी तरफ देखा और कहा " अगर तुम सच में शर्मिंदा हो, मानती हो तुमने जो किया गलत किया और आईन्दा किसी के साथ इस तरह नहीं करोगी तो मैं भी तुम्हे माफ करता हूँ क्यूंकि ये भी मेरे संस्कारो और मर्यादा के खिलाफ है कि कोई अपनी गलती माने और फिर भी मैं उसे माफ नहीं करू इतना बड़ा तो मैं भी नहीं हूँ ठीक है तुम्हे मैंने माफ किया और हाँ परेशान मत हो उस दिन क्या हुआ किसी को नहीं पता लगेगा खास कर डीन को तो बिलकुल भी नहीं वरना मेरा एक कम्पटीटर जो कम हो जाएगा और अगर कम्पटीटर ही नहीं रहेगा तो खेल का मजा ही कुछ नहीं रहेगा "

उसे इस तरह कहते देख अवनी के चहरे पर एक मुस्कान उभर आयी और वो अपना हाथ आगे बड़ाते हुए बोली " कम्पटीटर नहीं फ्रेंड्स, मुझसे दोस्ती करोगे "

अंशुमन कुछ कह पाता तब ही राधा जी हाथ में चाय की ट्रे लिए आन पहुंची जिसके बाद उन दोनों ने चाय पी और फिर अवनी कुछ नोट्स लायी थी अंशुमन के लिए क्यूंकि उसकी ही वजह से वो इतने दिनों कॉलेज नहीं आ सका था तो अब उसका फर्ज़ था कि उसके लिए भी नोट्स बनाये।


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