mohammed urooj khan khan

Abstract

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mohammed urooj khan khan

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फर्श से अर्श तक

फर्श से अर्श तक

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बाजार से समान खरीद रहे अहमद साहब की नजर दूर चाय की दुकान पर बैठे एक जाने पहचाने शख्स पर पड़ी तो वो उसकी और चल पड़े वो जैसे ही वहाँ पहुचे तो सामने बैठे अपने भतीजे को देख चौकते हुए बोले " आमिर बेटा तुम, तुम कब आये मुंबई से "

"अरे ताया अब्बू आप , अस्सलामुअलैकुम " आमिर ने वहाँ से उठते हुए कहा उन्हें देखकर

"तुम तो काफ़ी बदल गए हो, लगता है मुंबई तुम्हे अच्छी तरह रास आ गया है और कब आये " अहमद साहब ने कहा उसके कांधे पर हाथ रख कर सलाम का जवाब देते हुए 

"बस दो दिन पहले ही ताया अब्बू वो अम्मी को कुछ काम था और बहनों से भी मिलना था दूर की वजह से ज्यादा आना जाना नहीं हो पाता है न उनका और न ही हमारा " आमिर ने कहा

"अच्छा, दो दिन हो गए तुम्हे आये हुए घर भी नहीं आये तुम्हारी ताई अम्मा कह तो रही थी कि तुम लोग आने वाले हो चलो अच्छा है, तो घर कब आ रहे हो सब लोग तुमसे मिलना चाहते है, तुम्हारी ताई अम्मी और तुम्हारी दोनों बहनें ज़ब से तुम इस तरह फेमस हुए हो गाने बजाने में और उनके स्कूल में पता चला है कि आमिर उनका भाई है तब से तो पूरे स्कूल में बस तुम्हारे ही चर्चे होते रहते है तुम्हारी बहनें बता रही थी मुझे

खेर ये तो मैं भी जानता था कि तुम्हारी मेहनत बर्बाद नहीं होगी, एक दिन तुम अपने इस फन में कामयाब जरूर होगे, आज मेरा भाई जिन्दा होता तो तुम पर नाज करता कि किस तरह तुमने खुद को फर्श से अर्श पर पंहुचा दिया है " अहमद साहब ने कहा

"ये सब आपकी दुआओं का ही नतीजा है ताया अब्बू, जो मैं आज इस मक़ाम पर पहुंच पाया, आप आइये घर पर अभी दो तीन दिन यही है हम लोग " आमिर ने कहा

"दो तीन दिन, क्या ज्यादा नहीं रुकोगे " अहमद साहब ने कहा

"नहीं ताया अब्बू, एक दो जगह गाने की रिकॉर्डिंग है, अभी भी बहुत मुश्किल से वक़्त निकाल कर यहां आया हूँ, बहनें भी बुला रही थी और दोस्त लोगो से भी मिलना था " आमिर ने कहा

"ठीक है, ठीक है चले जाना लेकिन घर आना मत भूलना, हम सब इंतज़ार करेंगे वो क्या होता है ऑटोग्राफ तुम्हारी बहनों को लेना है तुम्हारा उसकी दोस्तों ने कहा है और हमें भी दे देना एक दो ऑटोग्राफ " अहमद साहब ने कहा

"अरे नहीं ताया अब्बू मैं कौन होता हूँ, मैं तो बस एक मामूली सा गायक हूँ आप लोगो की दुआ का तलबगार हूँ " आमिर ने कहा

"ये तो तुम्हारा बड़प्पन है, चलो अच्छा मैं भी चलता हूँ तुम्हे भी दोस्तों के साथ वक़्त गुजारना है अच्छी बात है, मुझे भी नमाज को जाना है वक़्त हो रहा है, पर घर आना मत भूलना और अम्मी और बहनों को भी साथ लेकर आना वो भी नहीं आयी है इतने सालो से पता नहीं नाराज़ है क्या हम लोगो से " अहमद साहब ने कहा

"नहीं ताया अब्बू ऐसी कोई बात नहीं है, मैं जरूर आऊंगा " आमिर ने कहा

थोड़ी देर बाद अहमद साहब वहाँ से चले गए अब बस चाय की टपरी पर वो और उसके दो दोस्त मौजूद थे जिनमे से एक दोस्त उसे देख कहता है " तुम लोग अब भी इन लोगो से बोलचाल रखते हो "

"क्या मतलब इस बात से तुम्हारा मेरे भाई?" आमिर ने कहा

"अरे यही कि कल तक ये लोग तुम लोगो से कोई रिश्ता नहीं रखना चाहते थे, हम लोग तो गवाह है इस बात के तो फिर अब तुम लोग क्यू इनसे मिलझुल रहे हो?मैं होता इस जगह तो कभी भी नहीं मिलता किस तरह इन लोगो ने तुम्हारे घर वालो से मुँह फेर लिया था ज़ब तेरे पापा का अचानक एक्सीडेंट हो गया था और आज जिस गाने बजाने की ये इतनी तारीफ कर रहे थे कल तक यही तेरे पीछे पड़े थे कि इन सब में क्या रखा है हमारे खानदान का नाम बदनाम करेगा बाप तो मर गया हमें ही बातें सुनाएंगे लोग और तू इतने अच्छे से उनसे बातें कर रहा था मानो उन्होंने तेरा बहुत साथ दिया हो तेरे इस संघर्ष में " आमिर के दोस्त ने कहा

नहीं यार ऐसा कुछ नहीं है, मेरे दिल में उनके लिए ऐसी वैसी कोई बात नहीं है भले ही आज हमारे हालात अच्छे हो गए मेरे हुनर को दुनिया ने देख लिया मेरा सपना साकार हुआ लेकिन इन सब बातों का ये मतलब तो नहीं निकलता है जिसने जैसा किया उसके साथ वैसा ही किया जाए, आज भले ही मेरे खुदा ने मेरा मकाम फर्श से उठा कर अर्श पर पंहुचा दिया है लेकिन मैं अपनी औकात तो नहीं भूल सकता न मैं तो इसी मोहल्ले में पला बड़ा हूँ, अब चंद सालो से दूसरी जगह शिफ्ट हो गया हूँ और वो हमारे रिश्तेदार ही तो है भले ही उन्होंने जैसा रावय्या अपनाया तो क्या मैं भी वैसा ही बन जाऊ

उनकी उन डांट और तानो का ही शायद नतीजा है जो मेरे संघर्षो को मंजिल मिल गयी उनका भी एक बहुत बड़ा हाथ है मेरी सफलता में अगर वो मुझे निकम्मा, आवारा और भी न जाने किन किन नामों से नहीं पुकारते तो शायद मुझमे कुछ कर दिखाने का हौसला भी नहीं रहता उनके ताने मेरे लिए बहुत कारगर साबित हुए और उनका परिणाम ये निकला की मैं फर्श से अर्श पर आन पंहुचा लेकिन इन सब बातों का मेरे रावइये पर कोई फर्क नहीं पड़ता मैं जैसा पहले था वैसा ही रहूँगा क्यूंकि जिसने मुझे फर्श से अर्श पर पहुंचाया है वो मुझे वापस फर्श पर भी ला सकता है क्या पता मेरी कोई बात उसे बुरी लग जाए इसलिए मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं और मैं मुंबई जाने से पहले ताया अब्बू से मिलकर जरूर जाऊंगा आखिर वो मेरे पापा के बड़े भाई है मेरे पापा समान है, चलो अच्छा अब मैं भी घर चलता हूँ अम्मी राह देख रही होंगी तुम लोग भी मिलते रहना ज़ब तक मैं हूँ, आमिर ने कहा और वहाँ से अपने दोस्तों से विदा लेकर चला गया

"ये बिलकुल नहीं बदला, जैसा आज से पहले था आज भी वैसा ही है अपने हालात बदलने के बावज़ूद भी इसकी जगह कोई और होता तो सीधे मुँह बात भी नहीं करता अपने उन रिश्तेदारों से जिन्होंने इसे कदम कदम पर चोट के सिवा कुछ नहीं दिया, खास कर अपने उन ताया से जिन्होंने इसकी माँ को इसके बाप के ही घर से निकाल दिया था और वो अपने मायके में रहने को मजबूर हो गयी थी दो बेटियां और इसे लेकर नमाज पांच वक़्त की पढ़ते है भाई का हक़ दिया नहीं गया था उसके मरने के बाद क्या ही क़ुबूल होती होंगी इनकी नमाजे भी,खेर वक़्त सबका एक जैसा कहा रहता है आज वो अर्श पर पहुंच गया और बाकि सब देखते रह गए कितने अच्छे से पेश आ रहे थे आज, मानो भतीजे के साथ दिली मोहब्बत हो इतना प्यार अगर उसे पहले दिखाया होता तो उसे इतनी तकलीफे नहीं सेहनी पडती उसकी पढ़ाई भी अधूरी नहीं छूठती वो तो उसकी लग्न ही थी जो उसे आज यहां तक ले आयी वरना कौन इतनी तकलीफे और वक़्त की मार सहकर अपने होसलो को टूटने से बचाये रखता " आमिर के दोस्त ने कहा दुसरे दोस्त से और फिर उसके बाद वो दोनों भी वहाँ से चले गए।

समाप्त....


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