लास्ट गुड बाय
लास्ट गुड बाय
कभी कभी हम लोग न चाहते हुए भी इस तरह की गलतियां कर बैठते है जिसका अफ़सोस हमें उम्र भर रहता है और उस तरह की गलतियों को करने में सबसे ज्यादा अहम किरदार हमारी खुद की अना होती है जो हमसे इस तरह की गलतियां करवा बैठती है.
बात है कुछ साल पहले की जब मैं और मेरा सबसे अच्छा दोस्त कॉलेज में पढ़ते थे। सब लोग हमारी दोस्ती की मिसाल दिया करते थे हम लोग एक दूसरे से कुछ भी नहीं छिपाया करते थे हर एक चीज साझा किया करते थे खाने से लेकर कॉपी किताब तक,
लेकिन फिर एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि हमारी दोस्ती तकरार में बदल गयी उसकी वजह थी उसका एक लड़की से प्यार करना और उस बारे में मुझे नहीं बताना शायद वो किसी अच्छे मौके का इंतज़ार कर रहा था या फिर वो अपने प्यार को सब से छिपा कर ही रखना चाहता था जो कि उसका हक़ था भले ही हम दोस्त थे लेकिन उसकी अपनी भी तो निजी( पर्सनल )जिंदगी थी जरूरी तो नहीं था कि वो अपनी हर बात ही साँझा ( शेयर )करे मुझसे,
लेकिन उस समय ये बात मेरे समझ में नहीं आयी मुझे लगा कि उसने ये बात छिपा कर कोई गुनाह किया है, जब उसने कॉलेज के आखिरी दिन सबके सामने अपने प्यार को सामने लाया तब मुझे बहुत ही बुरा लगा भले ही मैं सामने से खुश था लेकिन अंदर ही अंदर बहुत ज्यादा गुस्सा था और उसी गुस्से के चलते उस दिन के बाद से हमारी दोस्ती के बीच दरार सी आ गयी थी उसे मैंने नहीं बताया कि मैं उससे नाराज़ हूँ बस दूरी बना ली थी जिसका पता उसे भी चल गया था इसलिए ही तो वो मेरे दफ्तर आया था मुझसे मिलने शायद वो शहर छोड़ कर जा रहा था शायद मुझसे आखिरी बार मिलने आया था मुझे गुड बाय कहना चाहता था लेकिन मेरे गुस्से और मेरी अना ने मुझे रोक लिया और मैं चाह कर भी उससे नहीं मिला सेक्रेटरी से कह कर उसे दफ्तर से जाने का कह दिया
लेकिन नहीं जानता था कि उसे उस दिन आखिरी बार देख रहा हूँ उस दिन के बाद से वो दूर बहुत दूर चला जाएगा जहाँ कोई भी शख्स जीते जी उसके पास नहीं जा सकता।
सही समझें आप लोग उस दिन दफ्तर से जाने के बाद एक ट्रक ने उसकी गाड़ी को कुचल दिया जिसमें उसकी अचानक मौत हो गयी जब तक दोस्तों से इस बात का पता मुझे चला जब तक बहुत देर हो चुकी थी उसे आखिरी बार देखने का उसकी अर्थी पर रोने का मौका भी नहीं मिला क्यूंकि जब तक मुझे पता चला था तब तक उसकी चिता को आगी दे दी गयी थी और मैं बस पीछे खड़ा पछता रहा था और सोच रहा था कि काश एक बार उससे मिल लिया होता वो खुद मेरे पास आया था मुझसे मिलने लेकिन मैंने उससे बात करना तो दूर मिलना भी अच्छा नहीं समझा।
आज भी मैं इसी पछतावे के साथ जी रहा हूँ कि उसे आख़री बार गुड बाय भी नहीं कह सका जिंदगी इतनी छोटी है कि कब किससे, कहा कौन सी मुलाक़ात आख़री हो इस बात का अंदाजा लगाना भी मुश्किल है ना जाने कब तक मैं यूं ही पछतावे की आग में जलता रहूँगा शायद जब तक जब तक की यमराज आकर मेरे प्राण न निकाल ले जाए शायद तब तक ये कहकर अविनाश ने अपनी डायरी में लिखना बंद कर दिया और उसी पर सर रख लेट गया।
समाप्त