चाँद की सैर
चाँद की सैर
रसोई में रात का खाना बना रही, आरती जी की अचानक पीछे से आकर किसी ने अपने दोनों हाथों से आंखें बंद कर दी, आरती जी घबरा जाती है, लेकिन तब ही एक गहरी सास लेते हुए, अपने दोनों हाथों से अपनी आँखों पर रखे हाथों को स्पर्श करते हुए कहती है " किशन! तू भी ना तेरी ये आदत गयी नहीं अभी तक "
"क्या माँ? कभी तो डर जाया करो, हर बार पहचान जाती हो, आखिर तुम्हें पता कैसे चल जाता है कि ये मैं ही हूँ, कही तुम्हारी पीछे भी आँखें तो नहीं है " किशन ने सामने आते हुए अपनी माँ से थोड़ा चिढ़ते हुए कहा
"हट, पागल कहीं का, क्या भला पीछे भी कोई आँखें होती है " आरती जी ने कहा उसको झिड़कते हुए
"तो फिर तुम्हें कैसे पता चल जाता है, कि ये मैं ही हूँ, कोई और नहीं जिसने तुम्हारी आँखें बंद की है पीछे से आकर " किशन ने कहा
आरती जी मुस्कुराई और उसका हाथ अपने हाथ में लेते हुए बोली " अपनी औलाद को पहचानने के लिए उसे छूना या महसूस करना जरूरी नही, एक माँ अपनी औलाद को उसकी खुशबू से ही पहचान लेती है, और रही बात तुझे छू कर पहचानने की तो भला इन हाथों को नहीं पहचानूँगी तो फिर किसके हाथों को पहचानूँगी इन्हें मैंने खुद बढ़ते हुए देखा है, कब ये नन्ही नन्ही उंगलियां जो कभी खिलौना नहीं संभाल पाती थी आज पूरे घर की जिम्मेदारी अपने इन्हीं हाथों पर उठाये हुए है "
"ओह,, माँ तुम भी ना,, तुम तो कुछ ज्यादा ही फ़िल्मी हो गयी, लगता है आज कल कुछ ज्यादा फिल्में देख रही हो " किशन ने कहा
"हट पागल कही का कुछ भी कहता है, ये कोई उम्र है फ़िल्म देखने की मेरी लेकिन हाँ ज़ब तू बहु ले आएगा तब उसके साथ बैठ कर देखा करुँगी, अब बता कब ला रहा है मेरी बहु या हर काम की तरह ये काम भी तेरा मुझे ही करना पड़ेगा " आरती जी ने कहा
"वो भी आ जाएगी, फिर दोनों साथ में बैठ कर फ़िल्म देखना नहीं तो सास बहु के ड्रामे देखती रहना दिन भर, लेकिन अभी जो मैं बताने जा रहा हूँ उसे ध्यान से सुनना और हाँ मुझे डाटना बिलकुल भी मत " किशन ने कहा
"क्या हुआ? क्या बात है? इस तरह क्यूँ बोल रहा है,, और हाँ एक बात तो पूछना भूल ही गयी कि आज तू इतनी जल्दी घर कैसे आ गया दफ्तर से, अभी तो सिर्फ चार बजे है, सब ठीक तो है,, तेरी तबीयत तो ठीक है,, बातों बातों में भूल ही गयी " आरती जी ने अपना हाथ किशन के चेहरे पर फिराते उसका बुखार चेक करते हुए कहा
"नहीं माँ,, मुझे कुछ नहीं हुआ है,, सब ठीक है,, और तुम घबराओ नहीं ऐसा वैसा कुछ नहीं हुआ है,, जैसा तुम सोचने लग जाती हो " किशन ने कहा
"तो फिर इस तरह क्यूँ पूछ रहा था और इतनी जल्दी कैसे आ गया दफ्तर से तेरी छुट्टी तो सात बजे होती है और तुझे घर आते आते 8 बज जाते है " आरती जी ने कहा
"माँ,, तुम मेरी बात सुनो,, आज मैंने दफ्तर से जल्दी छुट्टी ले ली थी,, कल रविवार है और तुम जानती हो कल क्या है? " किशन ने कहा
"क्या है कल? कल तो बस रविवार है तेरी छुट्टी रहेगी नहीं तो फोन आ गया तो तू फिर चला जाएगा दफ्तर बस इससे ज्यादा क्या होगा कल " आरती जी ने कहा
"लेकिन कल मैं कही नहीं जाऊंगा, और ना ही कोई फ़ोन आएगा मेरे पास क्यूंकि कल हम दोनों इस शहर में होंगे ही नही,, कही और ही होंगे " किशन ने कहा
"क्या मतलब इस बात से कि हम कल यहां नहीं होंगे, यहां नहीं होंगे तो फिर कहा होंगे,," आरती जी ने पूछा
"किशन ने उनकी तरफ देखा और अपनी जेब से कुछ निकालते हुए अपनी माँ को दिखाया
"ये क्या है?" आरती जी ने पूछा
"माँ, हवाई जहाज के टिकट, कल मदर डे है, इसलिए कल मैं और तुम हवाई सफर करेंगे हम लोग एक साथ दिल्ली से कश्मीर जाएंगे " किशन ने कहा
"क्या,, हवाई सफऱ,,, पागल हो गया है क्या? " आरती जी ने कहा
"माँ इसमें पागल होने वाली बात क्या है?" किशन ने कहा
"यही की मैं और हवाई जहाज की यात्रा,,, ना बाबा ना " आरती जी ने कहा
क्यूँ माँ, क्यूँ तुम हवाई जहाज की यात्रा क्यूँ नहीं कर सकती,, मुझे आज भी याद है ज़ब तुम कभी हवाई जहाज को देखती तो उसे घंटों देखती रहती मानो तुम भी हवाई सफर करना चाहती हो, तुम भी अपनी जिंदगी जीना चाहती हो
लेकिन गरीबी ने तुम्हें अपने पँख फैलाने ही नहीं दिए, दूसरों के घरों की नौकरानी बना कर रख दिया, बीमार पति और एक बेटे की परवरिश को तुम्हारा मुक़ददर बना दिया, दूसरों के घरों के बर्तन माँझ माँझ कर तुमने अपनी हाथ की लकीरें तक मिटा दी, क्या अब ज़ब मैं इस काबिल हुआ हूँ कि तुम्हारी उस ख्वाहिश को पूरा कर सकूँ तो क्या तुम मुझे ऐसा करने से रोकोगी माँ, देखो कल मदर डे है,, वैसे तो माँ के बिना एक दिन भी गुज़ारना सदियों जैसा है लेकिन अगर एक दिन माँ के लिए उसके साथ गुज़ारने के लिए बनाया ही गया है तो क्यूँ ना उस दिन का आनंद लिया जाए
वैसे तो मैं तुम्हे चाँद कि सेर कराना चाहता था, लेकिन वो मेरे बस में नहीं इसलिए जो मैं कर सकता हूँ वो करने की कोशिश कर रहा हूँ, माँ चलोगी ना मेरे साथ
देखो ये मत कहना, कि पैसे खर्च होंगे बेवजह में, अगर पैसों का हिसाब लगाने बैठूं तो मैं ही कर्ज दार निकलूंगा तुम्हारा और शायद वो कर्ज मैं जिंदगी भर उतार भी ना पाऊँ इसलिए प्लीज मना मत करना वरना मैं नाराज हो जाऊंगा और तुम जानती हो ज़ब मैं नाराज़ होता हूँ तो क्या करता हूँ
"कई दिन तक अन्न का दाना भी मूंह में नहीं डालता है, यही है ना तेरी नाराज़गी जताने का तरीका,, मैं जानती हूँ,," आरती जी ने किशन की बात पूरी होने से पहले ही कह दिया
"हाँ माँ तो अब तुम ही बताओ मेरी नाराजगी झेलोगी या फिर मेरे साथ हवाई सफऱ पर चलोगी और उसका भर पूर आनंद लोगी, जो सवाल तुम कभी हवाई जहाज को नीचे से देख कर खुद से किया करती थी, उनका अनुभव स्वयं लेना चाहोगी " किशन ने कहा
अपने बेटे की बाते सुन आरती जी का मन भर आया, उनके पास अल्फाज़ नहीं थे कुछ भी कहने के लिए उन्होंने अपने बेटे को गले लगा लिया, उनका इस तरह गले लगाना एक इशारा था कि वो उसके साथ चलने को तैयार थी,
उसके बाद किशन और आरती जी ने थोड़ी बहुत पैकिंग की और सवेरे होते ही निकल गए एयरपोर्ट की और पहले जाते समय तो उन्हें बहुत डर लग रहा था लेकिन ज़ब वो कश्मीर से वापस आ रही थी पूरा दिन अपने बेटे के साथ हँसीं ख़ुशी बिता कर तब रात हो चुकी थी और हवाई जहाज की खिड़की से चाँद साफ नजर आ रहा था उन्हें ऐसा लग रहा था कि वो चाँद का सफर कर रही है, उस चाँद का जिसे वो अबतक धरती से देख रही थी आज वो हवाई जहाज कि खिड़की के इतना नजदीक लग रहा था मानो वो उसे छू भी सकती है, आज उन्हें अपने बेटे और अपनी परवरिश पर गर्व हो रहा था उनके मन से अपने बेटे के लिए दुआ ही निकल रही थी कि वो जीवन में खूब तरक्की करे और उसका उनके प्रति प्यार ऐसा ही बना रहे, ये प्यार सिर्फ एक दिन का मोहताज न हो ताउम्र ऐसा ही बरकरार रहे
समाप्त....