mohammed urooj khan khan

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सर्दी की एक रात

सर्दी की एक रात

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अंशुमन बेटा जल्दी करो तुम्हारे पापा को काम के लिए देर हो रही है। वो देखो कब से बाहर ठंड में स्कूटर लिए तुम्हारा इतंजार कर रहे है। लक्ष्मी जो की अंशुमन की मां है।


मम्मी पापा से कहो मुझे इस खटारा पर स्कूल ना छोड़ने जाया करे । मेरी बस लगवा दे। मुझे अपने दोस्तो के साथ मौज मस्ती करते हुए जाना अच्छा लगता हैं। ये रास्ते मै कई बार बंद हो जाता है ठंड की वजह से । और वैसे भी मैं स्कूल से पहले ही उतर जाता हू अगर मेरे दोस्तों ने देख लिया तो मुझ पर हँसेंगे ।


कि अंशुमन बाबा आदम के जमाने के स्कूटर पर बैठ कर आता है। अंशुमन मुंह बिगाड़ कर कहता है।


बेटा बहुत महंगाई हो गई है बस वाला बहुत ज्यादा पैसे लेता है । तुम्हारे सब दोस्तों के पिता बिजनेस मैन है और तुम्हारे पिता एक सेल्समैन । शुक्र करो की हम लोग अपना तन पेट काट कर तुम्हारे पिता की जिद्द पर उस महंगे स्कूल मैं तुमको पढ़ा पा रहे है।


तुम जानते हो ना कोरोना की वजह से सब का बुरा हाल हो गया है। लक्ष्मी उसे समझाती हुई कहती है।


मुझे नहीं सुनना ये सब कुछ क्लास एक से सुनता आ रहा हूं ये सब अब मैं क्लास नौ में आ गया हूँ महंगाई तो कभी कोरोना आ गया ।


स्कूटर का हॉर्न बजता है ।


अंशुमन बेटा अब आ भी जाओ देखो बाहर कितनी ठंड है और बेटा अपनी मां से कहना कि तुम्हें कुछ पहना दे गर्म । सुभाष जो की अंशुमन का पिता है कहता है।


आ गए बेटा । सुभाष कहता है।


रुको एक मिनट स्कूटर की डिग्गी से एक कपड़ा निकाल कर गद्दी साफ करते हुए सुभाष कहता है। अब बैठो अब तुम्हारे कपड़े गंदे नहीं होंगे ।


ये कह कर वो दोनों स्कूल के लिए निकल पढ़ते है। तभी रास्ते में स्कूल से कुछ दूरी पर स्कूटर बंद हो जाता है।


क्या पापा आप ने फिर इसको मैकेनिक को नहीं दिखाया मुझे देर हो रही हैं स्कूल के लिए। इसे बेच क्यू नहीं देते खटारा को पापा। मैं जा रहा हूँ पैदल ही वैसे भी मैं स्कूल से पहले ही उतर जाता हूँ ।


बेटा मेरी बात सुनो रिक्शा कर लो थक जाओगे ये लो पैसे सुभाष कहता है । लेकिन अंशुमन गुस्से में वहाँ से चला जाता है।


आज फिर इस स्कूटर ने मुझे अपने बेटे के सामने एक नाकाम बाप साबित कर वा दिया। ओह लक्ष्मी जी अगर कल आपका फ़ोन नहीं आता कि अंशुमन की फीस जमा करने की कल आखिरी तारीख थी । तो मैं मैकेनिक्स के यहां कल इसको सही करवा लेता मैंने कुछ पैसे इसी को ठीक कराने के लिए रखे थे । आज फिर मुझे इसको खीच कर ले जाना पढ़ेगा । सुभाष चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान लिए हुए मन ही मन ये सब कहता है।


स्कूल में बच्चों दो दिन बाद हमारा स्कूल एक पिकनिक पर जायेगा सब को घर से एक हजार रुपए लाना है ।


ठीक है मैडम । अंशुमन तू चल रहा है ना हमारे साथ देख बहुत मजा आने वाला है उसका दोस्त आशु कहता है। हाँ भाई मैं भी चलूंगा तुम लोगों के साथ । अंशुमन कहता है।


रात को खाने के समय। मम्मी दो दिन बाद हमारा स्कूल पिकनिक पर जा रहा है। टीचर ने सब से हजार रुपए मंगाए है।


कोई जरूरत नहीं है कहीं जाने की ठंड हो रही है घर में बैठो । स्कूल का क्या है वो तो बस बच्चों से पिकनिक के नाम पर पैसे कमाते हैं। हजार रुपए पता है कितने होते है । आठ दिन का राशन आ सकता है इतने पैसों में । लक्ष्मी कहती है।


अंशुमन खाने से उठ जाता है और कहता है मैंने अपना नाम लिखवा दिया है और मैं जाऊंगा। ये कहते हुए वो वहाँ से चला जाता है।


क्या लक्ष्मी जी? बच्चा है उसे क्या पता हमारे घर के हालातों का सुभाष कहता है।


पता होना चाहिए की कैसे हम उसे अपनी औकात से बाहर वाले स्कूल में पढ़ा रहे है। जिसकी फीस इतनी की महीने भर का राशन आ जाए वो तो शुक्र है भगवान का ऊपर का कमरा भाड़े पर दे रखा है जिससे घर का खर्च निकल जाता है। वरना तो ये स्कूल वाले पढ़ाई के नाम पर हम माध्यम वर्गी परिवार वालो के कपड़े उतार दे और फिर उपर से इनके चोचले कभी पिकनिक तो कभी सफारी । लक्ष्मी गुस्से में कहती है।


कोई बात नहीं भाग्यवान में कल देखूंगा की शायद कोई दुकान वाला कुछ एडवांस में पैसे दे दे। बच्चे की खुशी से बढ़कर कुछ नहीं है हमारे लिए ।


अगली सुबह अंशुमन बेटा तैयार हो स्कूल के लिए स्कूल नहीं जाना । मुझे नहीं जाना मम्मी बच्चे हँसेंगे मुझ पर जब कहूंगा पिकनिक नहीं जा रहा हूँ । बेटा तुम्हारे पापा कुछ बंदोबस्त कर लेंगे शाम तक अब तुम स्कूल जाओ ।


ये सुन अंशुमन खुश होता है ओर स्कूल चला जाता है।


सुभाष दुकानों वाले से उसका समान ख़रीद कर कुछ पैसे एडवांस लेना चाहता लेकिन सब यहीं कहते । भाई साहब कोरोना की वजह से हालत खराब है और नहीं पता की कब दोबारा लॉकडाउन लग जाए इसलिए हम ज्यादा समान एडवांस पैसे देकर नहीं ख़रीद सकते । हाँ अपना समान रख जाओ बिक जायेगा तो पैसे दे देंगे।


सभी जगह उसको यही सुनने को मिला। कुछ पैसे होते भी है तो बिजली का बिल जमा करवाना होता है नहीं तो बिजली कट जाती ।


शाम को जब अंशुमन को पता चलता है की उसके पिता के पास पैसे नहीं है तब वो बिना खाना खाए पलंग पर जाकर सो जाता है रोते हुए


मै बडा ही लाचार बाप हू जो अपने बच्चे की छोटी छोटी खुशियां भी पूरे नहीं कर सकता । सुभाष कहता है।


ऐसा नहीं है आप एक बहुत अच्छे पिता है जो अपनी ख्वाहिशो को मार अपनी औकात से ज्यादा बड़े स्कूल मै अपने बच्चे को पढ़ा रहे है। रहने को अच्छा घर है पानी है बिजली है तीन वक्त की रोटी दे पा रहे है हम सब को और क्या चाहिए एक बच्चे को।


मैं समझाऊंगी उसको वो मान जायेगा ।


अगली सुबह अंशुमन बेटा नाराज हो देखो आज तो छुट्टी है स्कूल की मैंने तुम्हारे लिए क्या बनाया हैं तुम्हारा पसंदीदा आलू का परांठा लक्ष्मी कहती।


अंशुमन उस पराठे को गुस्से मै जमीन पर फेंक देता और कहता नहीं चाहिए मुझे आप दोनो का ये झूठा प्यार मुझे इस घर मै भी नहीं रहना जहां सिर्फ एक कमरा है आप लोगों के पास अपने बच्चे के लिए एक हजार रुपए नहीं है।


लक्ष्मी उसके थप्पड़ मारती और कहती ये जो एक कमरे का घर है ये हम सब को जाड़ा गर्मी बरसात सब से बचा ता है। और जिन दोस्तों की तुम बात कर रहे हो वो तुम्हें एक वक्त का भी खाना नहीं खिला सकते । और तुम यहां बिना कुछ करे तीन वक्त का खाना खाते हो ।


ओर उसका हाथ पकड़ कर घर के बाहर निकालते हुए कहती अब तुम इस घर में जब दाखिल होना जब तुमको इसकी अहमियत का अंदाजा हो जाए की कैसे तुम्हारी उम्र के बच्चे इस ठंड में बिना छत के रहते है


अरे लक्ष्मी ये क्या कर रही हो सुभाष कहता है। मेरी नाकामियों की सजा उसे क्यों दे रही हो बाहर बहुत ठंड है। कुछ नहीं होता इन बच्चों को भी तो पता चलें आखिर परिवार की मां बाप की पैसे की अहमियत क्या होती है । और कोई भी पिता नाकाम नहीं होता वो अपने बच्चों को दुनिया की हर शे दिलाने के लिए भरपूर मेहनत करता है।


अंशुमन ठंड में ठिठुरता हुआ अपने दोस्त के घर जाता है। और वही रुकता है लेकिन धीरे धीरे शाम होने लगाती है। अंशुमन तू घर नहीं जाएगा क्या । आशु पूछता है।


नहीं भाई मैंने घर छोड़ दिया। क्या कह रहा है ये कहा रहेगा अब तू आशु पूछता है।


भाई तेरे घर पर अंशुमन कहता है।


नहीं भाई तू मेरे घर कैसे रह सकता है तेरी स्कूल की फीस, तेरा खाना तेरी किताबें कोपिया ये सब कौन करेगा मेरे पिता जी थोड़ी ये सब कर सकते है। ये सब तो एक पिता ही कर सकता है। भाई तू अपना समान उठा और जा यहां से मैं तो समझा तू खेलने आया है ।


भाई तू तो कहता था कि मैं तेरे घर रह सकता हूँ कि तेरा घर इतना बड़ा है। अंशुमन कहता है।


भाई ये मेरा घर है वो तो मैं तुझसे मजाक मे कहता था । मां बाप का घर ही इन्सान का अपना घर होता है चाहे वो छोटा हो या बड़ा और तू अब जा यहां से मेरी मॉम आती होंगी।


लेकिन भाई में इतनी ठंड मैं कहा जाउंगा अंशुमन कहता है।


मुझे नहीं पता देख बाहर कुछ लोग सीवर लाइन मैं सो रहे होंगे तू भी वही सो जा आग भी जल रही होगी वहाँ।


अंशुमन बेचारा उस जाड़े की रात सड़कों पर इधर उधर छत की तलाश में भटक रहा था कांपते बदन के साथ तभी उसने देखा कुछ लोग खुले आसमान के नीचे लेटे है। वो भी वहाँ जाकर लेट जाता लेकिन वहाँ इतनी बदबू की वो वहाँ से भाग खड़ा हुआ । भूख लग रहीं थी पास पैसा नहीं था। उसने लोगों से पैसे मांगे किसी ने भी एक फूटी कोड़ी नहीं दी उसको बिना छत के बैठा रोता और सोचता की मां सही थी उस एक कमरे के घर ने हमें हर मौसम से बचा रखा था । और एक पिता ही होता है जो बिना किसी लालच के अपने बच्चों को तीन टाईम का खाना मुहैया कराने के लिए जी तोड़ मेहनत करता है कहीं उसके बच्चों को किसी के आगे हाथ ना फैलाना पड़ जाए ।


और मां ने सच कहा था पैसे कमाना बहुत मुश्किल का काम है और उन्हें खर्च करना बहुत आसान शायद इसी लिए मां मुझको वो एक हजार रुपए नहीं देना चाह रही थी पिकनिक के लिए क्योंकि वो जानती है की इन हजार रुपयों को कमाने के लिए पिताजी ने ना जाने कितने ही लोगों की गलत सलत बाते बर्दाश्त की होंगी ।


वो बेचारा रोते रोते ना जाने उस कड़कड़ाती ठंड मै कब सो गया और जब आंख खुली तो अपने बिस्तर पर लेटा होता है और उसके माता पिता उसके सिरहाने खड़े होते है।


मैं घर कैसे आया मैं तो वही सो गया था बिना छत के। अंशुमन कहता है।


बेटा तुम्हारे पिता जी के होते हुए आखिर तुम कैसे वहाँ बिना छत के बिना अपने बिस्तर के कैसे सो सकते हो । तुम्हें पता है जब से मैंने तुमको घर से निकाला था तुम्हारे पिता जी साए की तरह तुम्हारे आगे पीछे थे । जब तुम खाना खाने के लिए लोगों से पैसे मांग रहे थे तब भी तुम्हारे पिता जी वही थे। लक्ष्मी कहती है


सॉरी पापा मुझे माफ़ कर दे मुझे कल उस जाड़े की एक रात ने सब कुछ समझा दिया इस एक कमरे के छत की अहमियत, पैसे की अहमियत और आप दोनों की अहमियत मुझे माफ़ कर दे अब मैं आपसे कभी भी कोई शिकायत नहीं करूंगा क्योंकि मैं एक बहुत अच्छी ज़िंदगी जी रहा हूं। उस रात मैंने बहुत से बच्चों को जो मेरी उम्र के थे ठंड में अंडे और चाय बेच रहे थे । और कुछ उस सीवर पाइप मै सो रहे थे फटे कंबल ओढ़ कर । सुभाष और लक्ष्मी अंशुमन को गले लगाते हैं। बेटा मैं तुमको बस यहीं समझाना चाहती थी मुझे भी माफ़ कर देना अपने जिगर के टुकड़े को यूं ठंड में बाहर निकाल दिया


पापा आज मुझे स्कूल के गेट तक छोड़ कर आना ताकि मैं अपने दोस्तों को बता सकू की मेरे पापा मेरे सुपरहीरो है। और उनकी कमर को कसके पकड़ कर स्कूटर पर बैठ कर आना मेरे लिए गर्व की बात है की मेरे पापा मुझे रोज़ स्कूल छोड़ने आते है।


रास्ते में फिर स्कूटर खराब हो जाता है। लेकिन अब अंशुमन गुस्सा नहीं करता और दोनों धक्का लगा कर स्कूल चलें जाते है।


स्कूल में, अंशुमन तुम्हारे पैसे नहीं आए क्या तुम्हारा नाम काट दूँ टीचर कहती ।


जी टीचर मुझे नहीं जाना अपने पापा की मेहनत से कमाए हुए पैसों से एंजॉय करने मैं उस दिन मम्मी पापा के साथ एंजॉय करूंगा


मां का संघर्ष अपने बच्चे को पालने के लिए हर कोई देख लेता है । लेकिन एक बाप के संघर्ष को दुनिया ये कह कर टाल देती है की उसे तो ईश्वर ने आदमी बनाया है उसे तो ये सब करना ही पड़ेगा। लेकिन कोई नहीं जानता की वो इन्सान कैसे कैसे दो कोड़ी के लोगों की बाते बर्दाश्त कर्ता है ताकि शाम को उसके हाथ कुछ पैसा लग सके और वो घर ले जा सकें ।


समाप्त....



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