mohammed urooj khan khan

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चाय और तुम

चाय और तुम

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आज बेहद ठण्ड थी। ठंडी हवाएं मानो सीने को छलनी कर रही थी। आकाश में चारों और घने बादल छाए हुए थे सूरज तो जैसे धरती की और अपना रुख करना ही भूल गया था। इन्हीं सब के बीच मुँह लटकाये घर के बरामदे में रखे PNT को टुकुर टुकुर देख रही एक 4 साल की बच्ची सौम्या ने पास बैठी अपनी माँ से पूछा "माँ ये फ़ोन बज क्यू नहीं रहा है, पापा का फ़ोन क्यू नहीं आ रहा आज तो पांच दिन गुज़र गए उनसे बात करे "


अपनी बच्ची से इस तरह सुन उसकी माँ सुरभि अपनी चिंता को झूठी मुस्कान के पीछे छिपाते हुए बोली " बेटा तुम्हारे पापा सरहद पर खड़े है और वहाँ दुश्मनों से हम सब की रक्षा कर रहे है।


ऐसे में अगर वो फ़ोन नहीं कर पा रहे है तो हमें परेशान होने की ज़रुरत नहीं हमें बस प्रभु से प्रार्थना करना चाहिए ताकि तुम्हारे पापा जल्दी से सही सलामत अपने घर आ सके "


सुरभि ने अपनी बेटी सौम्या को तो दिलासा दे दिया किन्तु वो खुद बहुत चिंतित थी कि आखिर पांच दिन हो गए लेकिन कोई खबर नहीं आयी उसके पति सुमित के पास से। वो ये सब सोच ही रही थी कि अचानक दरवाज़े पर दस्तक होती और एक आवाज़ आती "डाक लेलो मैडम आपकी डाक आई है "


"डाक किसने भेजी "सुरभि ने अपने आप से कहा और दरवाज़ा खोला


"लगता है किसी और कि डाक यहाँ दे रहे हो डाकिया भैया एक बार ध्यान से देख लो "सुरभि ने कहा


"सुरभि आप ही का नाम है ना और मेजर सुमित आप ही के पति है ना" डाकिये ने पूछा


"जी, जी ये मेरे पति का ही नाम है, क्या हुआ मुझे बताओ वो ठीक तो है उन्हें कुछ हुआ तो नहीं ये खत क्यू लिखा उन्होंने वो तो फोन करते है "सुरभि ने घबरा कर पूछा


"आप घबराइए मत, इस खत में क्या लिखा है मुझे नहीं पता मेरा काम इसे आप तक पहुँचाना था जो पहुंचा दिया। बाकी आपकी मर्जी पढ़िए या फेंक दीजिये मैं तो चला "ये कह कर वो वहाँ से चला गया


सुरभि ने काँपते हाथों से उस ख़त को खोला। मम्मी ये क्या है सौम्या ने पूछा


बेटा तुम्हारे पापा ने खत भेजा है मैं अभी पढ़ कर बताती हूँ कि इसमें क्या लिखा है ईश्वर ने चाहा तो सब कुछ कुशल मंगल होगा वहाँ। ये कह कर उसने खत पढ़ना शुरू किया जिसमे लिखा था।


" मेरी धर्मपत्नि सुरभि को मेरा नमस्कार और मेरी प्यारी बेटी सौम्या को मेरी तरफ से ढेर सारा प्यार। उम्मीद करता हूँ सब कुशल मंगल होगा वहाँ। मैं जानता हूँ तुम लोग काफी दिनों से मेरे फ़ोन का इंतज़ार कर रहे होगे और आज जब तुम्हें ये चिट्ठी मिली होगी तो तुम घबरा गयी होगी।



सुरभि घबराने की कोई बात नहीं है दरअसल मेरी पोस्टिंग अचानक रातों रात सियाचिन बॉर्डर पर हो गयी कुछ चीनी लोग सरहद पर कुछ हलचल करते नज़र आ रहे थे जिस वजह से रातो रात हमारा तबादला इधर हो गया।


यहाँ के हालात वैसे तो सही है लेकिन मौसम के हालात कुछ ज़्यादा ही ख़राब है। पिछले पांच दिनों से बर्फ गिर रही है जिसकी वजह से यहाँ की सारी सड़कें और बिजली के खम्बे बर्फ से ढक चुके है और यही वजह है की मोबाइल सिग्नल नहीं मिल पा रहे है।


इसलिए मैंने तुम्हें खत लिखना बेहतर समझा और खत में हम सारी बाते आसानी से लिख भी देते है जो कभी कभी फ़ोन पर कहने से हिचकिचाते है ।


सुरभि तुम और सौम्या अपना ख्याल रखना वहाँ भी ठण्ड ज्यादा हो रही है। सुरभि इस कड़ कड़ाती ठण्ड में मुझे तुम्हारे हाथ की बनी अदरक वाली चाय की बहुत याद आती है।


कहने को यहाँ हर थोड़ी देर बाद हम लोग कैंप में जाकर चाय बना कर पीते है और सब लोग बैठ कर बाते करते है लेकिन तुम्हारे साथ चाय पीने का अपना ही मज़ा है।


तुम्हारे साथ चाय का मज़ा और दोबारा हो जाता है। तुम्हारे साथ चाय पीते पीते ज़िन्दगी के अहम मसलो पर बात करना , अपने भविष्य के बारे में सोचना । मुझे आज भी वो दिन याद है जब हम दोनों छिप छिप कर कॉलेज के बाद मिला करते थे कॉफ़ी शॉप में और तुम मेरी वजह से कॉफ़ी ना पी कर चाय पीती थी मेरे साथ ।


उस कैफे में मैं तुम और मेज पर रखी चाय होती थी जिसे पी कर हम दोनों अपनी ज़िन्दगी के बारे में सोचा करते थे और हसीन ख्वाब बुना करते थे। और फिर कुछ दिन बाद हमारी शादी हो गयी।


सरहद पर सब से ज्यादा मुझे तुम्हारे हाथ की चाय बहुत याद आती है। वो सर्दी की सुबह जब तुम मेरा हाथ गर्म चाय के कप में डाल देती और में घबरा कर उठ जाता था और तुम हस्ती हुयी वहाँ से भाग जाती मैंने तुम्हें कभी बताया नहीं मैं जान बूझ कर नहीं उठता था ताकि तुम मुझे ऐसे ही उठाओ जब मैं छुट्टी पर आता था।


सुरभि तुम सोच रही होगी की मैं तुमको ये सब क्यू बता रहा हूँ, दरअसल सुरभि हो सकता है कि ये मेरा आखिरी ख़त हो मेने तुम्हें पहले नहीं बताया ताकि तुम परेशान ना हो जाओ।


सरहद के हालात अच्छे नहीं है और ऊपर से मौसम भी बहुत ख़राब है शायद मैं वापस ना लोट सकूँ इसलिए तुम अपना और सौम्या का ख्याल रखना और हाँ मैं अगर वापस ना आ सकूँ तो उदास मत होना बस रसोई जाकर अपने हाथों से चाय बनाना और मेरे साथ गुज़ारी सर्दी कि शामों को याद करना जब तुम मेरे लिए अपने हाथ से चाय बना कर घर के बरामदे में लाती और वहा मैं तुम और चाय के अलावा कोई तीसरा नहीं होता हमारे बीच और हम दोनों उस सर्द शामों को चाय कि गर्म चुस्की के साथ ज़िन्दगी के हसीन लम्हों को जीते ।



सुरभि मेरा मकसद तुम्हें परेशान करना बिलकुल भी नहीं था इस खत के माध्यम से मैं तो बस अपने दिल की बाते अपने लफ्जों के जरिये कलम और कागज के माध्यम से तुम तक पहुँचाना चाहता था । तुम एक बहादुर लड़की हो मैं जानता हूँ मेरे जाने के बाद तुम मेरी बेटी को माँ और बाप दोनों का प्यार दोगी और अगर अकेले सारी जिम्मेदारियां ना निभा सको तो किसी और के साथ अपनी दुनिया बसा लेना मुझे बिलकुल बुरा नहीं लगेगा ।


कहना तो बहुत कुछ है तुमसे लेकिन क्या करूँ वक़्त का तकाजा हो चुका है। और शायद अपने अल्फाज़ो को समेटने का वक़्त आ गया है। सुरभि अगर मैं लोट आऊँ तो ये मेरी खुशनसीबी होगी कि मुझे एक बार फिर तुम्हारे हाथ कि चाय पीना नसीब होगी नहीं तो शहादत का जाम पी कर तिरंगे में लिपटा तुम्हारे पास आ जाऊंगा


तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा सुमित


सुरभि की आँखें लाल हो चुकी थी। उसकी बेटी उससे उसके रोने की वजह पूछ रही थी। तब ही उसने जल्दी से टीवी खोला और न्यूज़ चैनल लगाया जिसमें बताया गया की सरहद के हालात खराब हो चुके है काफी जवान शहीद हो गए है और कुछ अभी भी फंसे लड़ रहे है


सुरभि रोने लगी तब ही सौम्या बोली" पापा ज़रूर लोट कर


आएंगे मुझे पूरा भरोसा है उन्हें कुछ नहीं होगा "



हाँ बेटा तुम्हारे पापा जरूर लोट कर आएंगे और देखना फिर हम सब बैठ कर गरमा गर्म चाय पीएंगे बस तुम ऐसे ही उम्मीद का दामन पकड़े रहो और ईश्वर से प्रार्थना करो ईश्वर बच्चों की ज़रूर सुनते है।


काफी दिन गुज़र गए । सुरभि पागलों की तरह हेड क्वार्टर के चककर लगाती लेकिन कोई जवाब नहीं मिलता लेकिन उसकी उम्मीद नहीं टूटती । दरअसल जो लोग शहीद हो गए थे उनमें सुमित नहीं था बस यही उसकी उम्मीद जगाने के लिए काफी था


जब सब नार्मल हो गया तो एक दिन खबर आयी की कुछ सैनिक बर्फ की चट्टानों में फसे मिले है जिनमें से एक सुमित भी था उसकी सांसे चल रही थी। मानो उसे किसी चीज़ की तलब हो और वो उसे हासिल करना चाहता हो।


काफी दिनों इलाज चला तब जाकर उसे होश आया लेकिन उसकी एक टांग बर्फ की चट्टान के नीचे दबने से बेकार हो गयी थी जिसे काटना पड़ा। लेकिन फिर भी वो बहादुरों की तरह लड़ता रहा।


जब उसे होश आया उस दिन सुरभि के लिए वो दिन किसी दीवाली से कम नहीं था उसका पति मौत से लड़ कर उसके पास आया था।


जब वो बोलने लगा तब उसने बताया की उसे ज़िंदा रहने की चाह इसलिए भी थी की आखिरी बार वो सुरभि के हाथों उसकी बनी चाय पी सके । और प्यार भरी बाते कर सके जहाँ सिर्फ वो, सुरभि और चाय हो और कोई ना हो।


सुमित अब घर आ चुका था अब वो दोनों घर के बरामदे में बैठ कर चाय का आनंद लेते है जहाँ सिर्फ वो दोनों और चाय होती और कभी कभी उनकी बेटी सौम्या भी उनके साथ होती और वो ख़ुशी खुशी रहते और अपनी हसीन ज़िन्दगी के ख्वाब बुनते।


भले ही अब सुमित चल नहीं सकता था लेकिन फिर भी सुरभि की उसके प्रति मोहब्बत कम नहीं हुयी अब वो उसका सहारा बन गयी और दोनों ने घर पर ही एक छोटा सा चाय का कैफेटेरिया खोल लिया और हर आने जाने वाला उस चाय का आनंद लेता और पैसे देकर चला जाता.



समाप्त.....



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