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mohammed urooj khan khan

Others

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mohammed urooj khan khan

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मेरे अंगने में

मेरे अंगने में

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दरवाज़े पर जैसे ही किसी की दस्तक हुई रसोई में काम कर रही सोनिया दौड़ती हुई दरवाज़े पर पहुंची और जैसे ही उसने दरवाज़ा खोला तो सामने एक झोला हाथ में लिए एक आदमी खड़ा दिखाई दिया


"जी कहिये, किससे मिलना है " सोनिया ने पूछा


"जी मुझे यहां एक नाम प्लेट लगाने के लिए भेजा गया है, डॉक्टर विवेक का घर यही है क्या " सामने खड़े उस आदमी ने कहा


सोनिया कुछ जवाब दे पाती तब तक उसका पति डॉक्टर विवेक वहाँ आन पहुंचा वो पूछता कि वहाँ क्या हो रहा है तब तक सामने खड़े उस आदमी को देख उसने खुद पूछ लिया " आप यहां नाम प्लेट लगाने आये हो "


"जी, जी डॉक्टर विवेक आप ही है " उस आदमी ने कहा


"जी मैं ही हूँ, आप अपना काम कर सकते है पहले वाली हटा कर ये वाली लगा दीजिये, हो जाएगा न " विवेक ने कहा


"जी बिलकुल मैं अभी लगा देता हूँ " उस आदमी ने कहा और वहाँ से जाने लगा लेकिन तब ही सोनिया ने उसे रोकते हुए कहा " रुकिए भैया "


"क्या हुआ सोनिया ? उन्हें क्यू रोक रही हो?" विवेक ने कहा


"बाहर आपके नाम कि नाम प्लेट लगी तो है, अभी ज़ब हमारा मकान बना था तब ही तो लगवाई थी आपने तो भला इतनी जल्दी क्यू बदलवा रहे है? " सोनिया ने कहा



"तुम्हारी दुविधा समझ सकता हूँ, माफ करना मैं तुम्हें नाम प्लेट तो दिखाना भूल ही गया, भैया जरा वो नाम प्लेट तो दिखाना जो आप अपने साथ लाये है " विवेक ने कहा



उस आदमी ने अपने झोले से वो नाम प्लेट निकाली और विवेक के हाथ में देते हुए कहा " ये लीजिये साहब, देख लीजिये सही तो बनी है न आप देखिए मैं ज़ब तक बाहर वाली को हटा कर आता हूँ "



उस आदमी ने कहा और वहाँ से चला गया, विवेक ने वो नाम प्लेट पास खड़ी सोनिया को दी और कहा " देखो कैसी लगी, मेरे नाम के साथ साथ तुम्हारा नाम भी अच्छा लग रहा है न इस नाम प्लेट पर "



सोनिया ने उस नाम प्लेट को देखा जिस पर डॉक्टर विवेक के साथ सोनिया का भी नाम लिखा हुआ था ये देख उसने उस पर बड़े प्यार से अपना फेराया और सवालिया नजरों से सामने खड़े विवेक की तरफ देखने लगी


उसे इस तरह देख विवेक ने पूछ लिया " क्या हुआ? नाम प्लेट अच्छी नहीं लगी क्या? "


"नहीं , नहीं ,, बहुत प्यारी है मेरा नाम भी बहुत अच्छा लिखा है, पर इसकी क्या जरूरत थी आपका नाम लिखा तो था डॉक्टर विवेक अस्थाना " सोनिया ने कहा उसकी तरफ देखते हुए



जरूरत थी सोनिया, इसलिए ही तो अपने साथ तुम्हारा नाम भी लिखवाया है ताकि किसी को हमारा घर ढूंढ़ने में परेशानी न हो पता नहीं मेरा ध्यान पहले क्यू नहीं गया इस और जिसकी वजह से मेरे घर में रौनक है, जिसने इस चार दीवारी के मकान को घर में तब्दील कर दिया जो मेरे अंगने में खिले दो फूलों को इतनी अच्छी परवरिश दे रही है बिना मेरी ज्यादा मौजूदगी के मेरे घर को अपने प्यार और स्नेह से घर बना रही है


तो उसका कुछ तो हक़ होना ही चाहिए इसलिए आज से खाली मेरे नाम की नाम प्लेट हट कर तुम्हारे नाम के साथ जुडी वाली नाम प्लेट लगेगी क्यूंकि इस घर को चलाने में जितना हाथ मेरा है उससे कही ज्यादा तुम्हारा भी तो है फिर ये घर खाली मेरे नाम से ही क्यू जाना जाये


इस घर की हर चीज पर तुम्हारा भी उतना ही हक़ है जितना की मेरा अब आगे से तुम्हे घर का पता डालने के लिए खाली मेरा नाम डालने की जरूरत नहीं है अब अगर तुम अपना नाम डाल कर भी कुछ माँगाओगी तो वो यहां आराम से पहुंच जाएगा


कल की तरह तुम्हारा पारसल जाते जाते वापस नहीं आएगा, तुम्हे पता है तुम्हारा कल एक पारसल आया था ज़ब तुम बाहर गयी हुई थी, शायद तुमने गलती से अपना नाम डाल दिया था और पता हमारे इस नए घर का लिख दिया था



वो बेचारा डिलीवरी वाला तुम्हारा नाम का घर ढूंढ रहा था किसी से पूछने पर भी उसे कुछ मालूम नहीं चला क्यूंकि हम नए ही तो शिफ्ट हुए है यहां अभी यहां हमें कौन जानता है, पुराना मोहल्ला होता तो शायद कोई बता देता की डॉक्टर साहब की पत्नि का नाम सोनिया है


पर यहां तो ये सुविधा भी नहीं थी आखिर कार उसने हमारे घर की घंटी बजायी तो उस समय घर पर मैं मौजूद था उसने बताया की घर का पता तो यही है पर नाम सिर्फ सोनिया लिखा हुआ है


ज़ब उसे बताया कि सोनिया मेरी पत्नि का नाम है तब उसने वो पारसल मेरे हवाले किया खेर वो तो चला गया लेकिन मुझे सोचने पर मजबूर कर गया कि अगर मैं घर पर न होता तो तुम्हारा पारसल वापस चला जाता क्यूंकि वो तो किसी सोनिया का घर ढूंढ रहा था जो की ढूंढना मुश्किल था


इसलिए अब से मेरे नाम के साथ साथ तुम्हारा नाम भी बाहर नाम प्लेट पर लिखा जाएगा ठीक उसी तरह जैसे मेरे दिल पर लिखा है तुम्हारा नाम



विवेक के मुंह से इस तरह के अल्फाज़ सुन मानो सोनिया कही खो सी गयी, आज से पहले उसने इस तरह की बात नहीं कही थी दोनों के बीच प्यार तो था दोनों की शादी भी अरेंज हुई थी लेकिन सोनिया थोड़ी कम पढ़ी लिखी थी वो घर के कामों में बहुत निपुण थी वो कभी कभी खुद को विवेक के काबिल नहीं समझती थी क्यूंकि विवेक एक जाना माना डॉक्टर है और वो सिर्फ B. A पास उसकी माँ को वो बहुत भा गयी थी इसलिए उसने उसे अपने बेटे के लिए चुना


वैसे तो कभी भी विवेक ने खुद भी उससे ऐसा वैसा कुछ नहीं कहा था लेकिन फिर भी उसे कही न कही शादी के इतने साल बाद भी उसका साथ अधूरा सा लगता था वो बस एक पतिवर्ता पत्नि होने का धर्म निभाते हुए उसका और उसके बच्चों का और उसके घर का ख्याल रखती थी लेकिन आज विवेक ने उसे इतना सम्मान देकर उसके दिल में एक अलग ही जगह बना ली है


आज पहली बार उसे लगा की ये घर उसका अपना है उसका आँगन वहाँ लगे पौधे सब उसके है उसके अंगने में मानो बहार आयी हो उसके पास ज्यादा अल्फाज़ तो नहीं थे बस उसने नम आँखों से पास खड़े विवेक का शुक्रिया कहकर उसके सीने से लग गयी


विवेक भी उसे अपनी बांहों में भर कर बहुत खुश था और हाथ में पकड़ी नाम प्लेट पर लिखें अपने नामों को बड़े प्यार से सहला रहा था उसे भी बहुत ख़ुशी सी मिल रही थी अंदर ही अंदर



समाप्त....



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