परवरिश बराबरी वाली
परवरिश बराबरी वाली
राधिका की मां की अचानक बहुत तबियत खराब हो गई थी तो उसे अचानक ही मायके जाना पड़ा और इतने जल्दी सभी की तैयारी नहीं हो पाती इसलिये वो अपने पति और दोनों बच्चों को घर पर छोड़ अकेले ही चली गई थी आज पूरे पांच दिन बाद जब वो लौटकर आई तो उसकी बारह साल की बेटी तृषा उससे लिपटते हुऐ बोली तो राधिका उसे खुद से और जोर से लिपटाते हुऐ बोली.....
" हां मेरी बच्ची मैं आ गई कैसी हो तुम भाई ने तुम्हे परेशान तो नहीं किया?लड़ाई तो नहीं हुई तुम दोनों की?,,
इससे पहले की तृषा कुछ बोलती अन्दर से आकर तृषा की चोटी खींचता हुआ सत्रह साल का राधिका का बेटा शोर्य बोला...
"हां.. हां बहुत लड़ाई हुई हमारी मम्मी! मम्मी आप इस रोंदू मोटी को छोड़कर मत जाया करो सारा टाइम रोती रहती है।,,
"अभी मम्मी के न होने पर आपने मेरी हेल्प की है बस इसीलिये अभी इस चोटी खींचने के लिऐ माफ कर रही हूं वरना आपके बाल बिगाड़ कर अभी बदला ले लेती।,,
तृषा शोर्य की तरफ मुंह बनाते हुऐ बोली।तो शोर्य "अच्छा - अच्छा कर तृषा की चोटी खींच और परेशान करने लगा।
राधिका थोड़ा गुस्सा होते हुऐ "बस-बस तुम दोनों फिर शुरू हो गये" बोली और दोनों का बीच बचाव किया फिर तृषा से पूंछा....
" वैसे तो तुम लोग हमेशा चूहे बिल्ली की तरह झगड़ते रहते हो।तो मेरे पीछे एसी क्या मदद कर दी भाई ने तुम्हारी कि तुम आज उससे लड़ नहीं रही हो?,,
मम्मी का सवाल सुनकर शोर्य तो निकल गया पर तृषा जाते हुऐ शोर्य को देखते हुये बोली....
"मम्मी जिसदिन आप गईं उसके दूसरे दिन ही मुझे फस्ट पीरियड आ गया।मुझे पता था कि ये होता है,आपने और स्कूल की मैम ने समझाया था मुझे फिर भी मैं बहुत डर गई थी।तब भाई ने मुझे संभाला मेरे लिऐ सिनेट्रीपैड लाकर दिया ,गरम पानी की बॉटल गरम दूध भी दिया और तो और उन्होंने मुझे कोई काम भी नहीं करने दिया।बहुत ख्याल रखा मेरा।,,
तृषा की बात सुनकर राधिका को अपनी परवरिश पर बहुत गर्व हुआ उसे याद आया कि पहले कैसे उसकी मां तक उससे पीरियड के बारे में खुलकर बात नहीं करतीं थीं।पापा और भाइयों को इसबारे में बताने के बारे में छोड़ो सामने तक आने में घबराहट होती थी।
एकबार जब मां कहीं गईं थी तब राधिका की महावारी के समय बहुत तबियत खराब हो गई।उसे इतनी ब्लीडिंग हो रही थी की वो खड़ी भी नहीं हो पा रही थी।घर में दो भाइयों और पापा के बीच बिचारी अकेली राधिका किसी से कुछ बोल भी नहीं पा रही थी।और ऊपर से संस्कार ये कि रसोई में लड़के कदम भी नहीं रखते थे।तब जैसे तैसे राधिका ने घर का सारा काम किया।पर जब मां आईं तो सहानुभूति की जगह डांट ही मिली..."सारी रसोई गंदी कर दी,कितना काम बढ़ा दिया"
क्योंकि मां के घर में महावारी के समय रसोई में जाना भी वर्जित था फिर मैने तो पूरे पांच दिन खाना बनाया था।
उस समय तो राधिका बहुत रोई थी पर जब शादी के बाद उसके दोनों बच्चे हुऐ तब उसने खुदसे वादा किया कि वो अपने दोनों बच्चों की परवरिश में कोई अंतर नहीं रखेगी।दोनों को एक दूसरे का पूरक बनायेगी।आज उसकी परवरिश और कोशिशें रंग लाईं थी।तभी तो उसकी बेटी अपनी परेशानी भाई को बताने में घबराई नहीं थी।और भाई ने भी बिना शर्मिंदा हुऐ घर के काम कर अपनी बहन की मदद की थी।
सच में अगर हम अपने बच्चों को सही परवरिश दें तो हमारी परेशानी समाज का अंतर किसी हद तक कम हो जाता है। और हम एक अच्छे बराबर वाले समाज की संरचना में अपनी भागीदारी निभाते है।