Anita Sharma

Inspirational Others

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Anita Sharma

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ईश्वर करे आपको भाभी अच्छी मिले

ईश्वर करे आपको भाभी अच्छी मिले

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"दीदी आप अपने कपड़े अपने बैग में रख लीजिए मुझे लगता है एक दिन में ही आपके और शौर्य के (कृतिका का पांच साल का छोटा बेटा)सारे कपड़े बाहर आ गये है। देखिए न कमरे में कपड़े ही कपड़े दिख रहें हैं।कहीं ऐसा न हो कि आपके जानें के समय कुछ कपड़े यहीं पड़े रह जायें ।और प्लीज बालकनी में रखे गमलों और वहां के सामान को इधर उधर मत कीजियेगा और कमरे के सामान को भी वरना बेटू ( कृतिका के भाई भाभी का बारह साल का बेटा) बिना वजह गुस्सा हो जायेगा।आप बिना बुलाए बिना बताए ही चलीं आईं अगर बताकर आतीं तो आपका रहने का इंतजाम नीचे किसी कमरे में करवा देती।,,

कितने ही सालों बाद कुछ दिनों के लिऐ मायके आई कृतिका की भाभी ने उसे उसके बैग के ऊपर तह बनाकर रखे दो चार कपड़े और कमरा दिखाते हुऐ कहा तो कृतिका बुझे मन से अपने कपड़े बैग में लगाने लगी ।क्या करती वो वैसे भाभी ने कुछ गलत तो नहीं कहा था । बैग में कपड़े रखने से कोई कपड़ा छूट जाता तो फिर वापिस मायके सालों तक उसके न आने या यहां से कोई उसके पास न जाने की वजह से वो कपड़ा बेकार ही हो जाता।


पर अपनी भाभी के इस लहजे और कही हुई बातों से कृतिका का मन उदास हो गया था वो इस उदासी में कब गुजरे जमाने में पहुंच गई उसे पता ही नहीं चला जहां मां थे पापा थे भाई थे और जान से प्यारा ये घर...

"लाडो देखो जरा रसोई की स्लेव इतनी ऊंची ठीक है या और नीचे करवाऊं।"

कृतिका को बाबा की आवाज सुनाई दी तो लिविंग एरिया का मुयायना करती कृतिका भाग कर रसोई घर में पहुंच गई.....

"हां बाबा मेरी और मां की लंबाई के हिसाब से इतनी ऊंची ठीक है।पर बाबा मेरे कमरे में मुझे दीवार में ज्यादा अलमारी नहीं चाहिये आप तो मेरे कमरे में लकड़ी का फर्नीचर लगवा देना बस।,,

"ठीक है बिटिया जैसा तुम चाहो।,,

बाबा के नया घर बनवाते समय कृतिका ने कितने प्यार और मेहनत से एक एक चीज देख परखकर बनवाया था। बाबा तो सारा दिन ऑफिस में रहते और भाई छोटा और उसका लाड़ला था तो उसे भी वो परेशान न करती ।मां कभी खत्म न होने वाले घर के कामों और बूढ़ी सास की सेवा में उलझी रहतीं तो किराये के घर से कॉलेज और फिर वहां से सीधे बन रहें नये घर में ज्यादातर वही जाती थी मिस्त्री और मजदूरों पर नजर रखने। जहां कभी-कभी उसे पापा मिल जाते थे और कभी-कभी वही सारा दिन खड़े होकर काम करवाती। वो थक भी जाती थी पर अपना नया घर बनने की उसे इतनी खुशी थी कि वो थकान भी उसके चेहरे पर गुस्सा नहीं मुस्कराहट ही लाती थी।


एकबार तो मां पापा शहर से बाहर गये थे उन्हे लगा कि वो शाम को लौट आएंगे पर किसी कारणबस वो वापिस नहीं आ पाऐ तब कृतिका ने बिना किसी परेशानी के अपनी गुल्लक तोड़ मजदूरों को उनकी दिहाड़ी दे दी थी क्योंकि इतने दिनों में वो ये जान चुकी थी कि मजदूर लोग जो रोज पैसे मिलते हैं उसी से रोज अपने घर राशन ले जाते हैं तभी उनके घर चूल्हा जलता है।इस बात पर पापा ने वापिस आकर कितने गर्व से उसकी पीठ थपथपाई थी।

गृहप्रवेश के बाद घर का हर कोना उसने कितनी लगन और प्यार से सजाया था।आज जिस कमरे को भाभी अपने बेटे का बता उसे किसी चीज को हाथ न लगाने को बोलकर गईं हैं कभी वो कमरा उसका था ।कितना पसंद थी उसे अपने कमरे की बालकनी। अपनी किताबों या फिर सिलाई, कढ़ाई ,पेंटिंग जैसी किसी क्रिएटिविटी को करते हुऐ वो हमेशा यहीं तो पाई जाती थी।


फिर एक दिन वो शादी होकर इस घर से विदा हो गई और उसका अपना इतने प्यार से बनाया और सजाया हुआ घर थोड़ा सा पराया हो गया ।पर बाबा और मां और भाई तो उसके तब भी अपने थे।फिर कुछ सालों के अंतर में भाई की शादी और मां बाबा के स्वर्गवास के बाद जैसे ये घर पूरा का पूरा पराया हो गया था।


उस घर में अब एक कमरा तो छोड़ो एक कौना भी उसका नहीं था ।भाभी ने वर्षो तक सहेजे उसकी पसंद के सामान को हटाकर अपने बेटे के हिसाब से उसके कमरे को तैयार करवा दिया था।वो तो चाहती ही नहीं थी कि वो कभी उस घर को मुड़कर भी देखे इसीलिये तो वो उसे कभी बुलाती ही नहीं थी।ना कभी किसी तीज त्योहार पर फोन करतीं।रक्षाबंधन ,भाईदूज जैसे तयोहरों पर कृतिका ही जब अपने भाई को फोन करती तो वो भी बस ओपचारिक बातें ही करता।कभी गलती से भी वो अपनी बहन से घर आने को ना कहता और जब कृतिका उसे अपनी ससुराल आने को कहती तो ...


"हां आऊंगा कभी "बोल बात को टाल देता।हद तो तब हो गई थी जब कृतिका दूसरी बार मां बनी और उसने अपने बेटे के नामकरण पर अपने भाई भाभी को बुलाया तो दोनों पहुंचे ही नहीं थे। पहले तो कृतिका को लगता था कि शादी के पंद्रह साल तक कोई बच्चा ना होने की वजह से उसकी भाभी ने उसे बांझ समझ उससे दूरी बनाकर रखती है। पर अब तो उसके लंबे इलाज और भगवान से की प्रार्थनाओं के फलस्वरूप दो दो बच्चे थे तो अब उसकी भाभी के पास उससे नफरत करने की क्या वजह थी ये कृतिका कभी समझ ही नहीं पाई थी।


उसका छोटा प्यारा सा भाई भी उससे कोई मतलब नहीं रखता ये बात उसको अंदर तक कचोटती थी।पर "शायद उसने अपने घर की शांति के लिऐ उससे दूरी बना ली है "ये सोच कृतिका हमेशा अपने मन को समझा लेती थी।पर अभी कुछ दिनों से उसकी तबियत थोड़ी सी खराब लग रही थी उसे अपनी बढ़ती उम्र के साथ एक अनजाना सा ये डर सताने लगा था कि "ना जाने कौन सा दिन उसका आखरी दिन हो जाये जिंदगी का क्या भरोसा पर अगर वो मर गई तो अपने मायके को देखे बिना तो उसकी आत्मा को तक शांति नहीं मिलेगी"


बस यही सोचकर कृतिका खुद से ही आ गई थी क्योंकि वर्षों तक अपनी जड़ों से दूर रहने से उसकी हरी भरी गृहस्थी और मन का बगीचा मुरझाने सा लगा था।कोई लड़की आखिर कब तक अपनी जड़ों को सींचे बिना खुश होने का दिखावा कर सकती थी सो इसबार वो बिना किसी बुलावे के चली आई थी उसे लगा था कि भले ही भाभी उसे पसंद न करतीं हो पर भाई तो उसका अपना है वो तो उसे देखकर खुश हो ही जायेगा तो वो उसकी उसी खुशी के सहारे अपने घर अपने शहर की गलियों को एकबार फिर से महसूस कर आयेगी जिसके सहारे वो अपनी आगे की जिंदगी की सांसे खुलकर ले पायेगी।


पर कल मायके आकर उसे महसूस हो रहा था कि उसने यहां आकर बहुत बड़ी गलती कर दी यहां आकर उसके भाई के चेहरे पर मुस्कान तो नहीं पर बीबी और बहन के बीच पिसने की परेशानी जरूर बढ़ी हुई देखी थी। उसके भतीजे को तो कभी बुआ के बारे में बताया ही नहीं गया था ।दो साल का था वो जब उसने उसे देखा था जब तो वो बुआ बुआ करता उसके आगे पीछे घूमा करता था पर अब तो उसने अपनी बुआ को तो छोड़ो उसने उसके बेटे से भी सीधे मुंह बात नहीं की थी।

आखिर क्यों होता है ऐसा कि एक लड़की का उसका अपना घर उसका अपना परिवार इतना पराया हो जाता है?आखिर क्यों उसके अपने माता पिता के घर में लड़की का सारा सामान एक बैग तक सिमट जाता है? आखिर क्यों उसे अपने ही खून के रिश्तों द्वारा इतना अपमानित किया जाता है? आखिर क्यों उस लड़की को बिना किसी गुनाह के अपनी जड़ों अपने बचपन की यादों से दूर रहने की सजा सुना दी जाती हैं?


कृतिका के मन में लाखों सवाल थे पर जवाब एक भी नहीं। इसलिए उसने अपना बैग समेटते हुए यहां की हवा को भी महसूस किए बिना आज ही वापिस जाने का फैसला कर लिया था। क्योंकि वो नहीं चाहती थी कि उसके बेटे के सामने उसकी ओर बेज्जती हो और वो उसके सामने अपनी नजरें भी न उठा सके। तभी बाहर से उसके भाई भाभी की किसी से बात करते हुए बड़ी ही चहकती हुई आवाज सुनाई दी। कृतिका ने बाहर निकल कर देखा तो उसका भाई खुश होकर भाभी के मायके बात कर रहा था। शायद भाभी के मायके में उनके भाई की शादी थी इसलिये उनके मम्मी पापा उन्हें फोन पर निमंत्रण दे रहे थे और कृतिका की भाभी बड़ी ही खुश होकर कुछ दिन पहले आने को बोल रहीं थीं।


कैसा होता है ना जो बहू अपनी ससुराल की बेटी के साथ परायों सा व्यवहार करती हैं वही बेटी अपने मायके जाकर खुद अपनापन और अपना हक चाहती है। सोचते हुए कृतिका अपना बैग उठा बाहर आ गई और अपने भाई से बोली....

"अच्छा छोटे मैं चलती हूं अपना ख्याल रखना"

"पर दीदी इतनी जल.. अपनी बीबी से नजर मिलते ही उसके आधे शब्द उसके मुंह में ही रह गए और उसने नजरें झुका लीं

तो कृतिका मुस्कराते हुए बोली......

"बहुत मन था तुम्हें देखने का तुम्हारे साथ कुछ बचपन की अपने मां बाबा की यादें याद करने का बस इसीलिए चली आई थी बिना तुम्हारे बुलाए इस घर को अपना घर समझ ।पर यहां आकर पता चला कि यहां तो कुछ भी अपना नहीं हैं ना तुम ना इस घर का कोई कोना । छोटे तुम मुझे अपना मानो या ना मानो पर तुम मेरे लिए वही मेरे छोटे भाई हो जिसको कोई तकलीफ ना हो इस बात का मैं हमेशा ख्याल रखती थी। तो आज भी वही ख्याल रखते हुए मैं यहां से जा रहीं हूं कभी न वापिस आने के लिए अगर तुम्हारा कभी मन करे तो बिना झिझकें चले आना मुझसे मिलने मैं तुम्हें वैसी ही मिलूंगी जैसी बचपन में थी।,,


ये बोलते बोलते कृतिका की आंखों से आंसू निकल उसके गालों को भिगोने लगे थे जिन्हें पोंछते हुए वो अपनी भाभी की तरफ रुख करते हुए बोली......

"भाभी जिस तरह मुझे छोटा प्यारा है वैसी ही आप भी प्यारे हो ईश्वर करें आपको आपकी आने वाली भाभी बहुत अच्छी रिश्तों को समझने वाली और उन्हें अपना बना कर रखने वाली मिले। मैं तो ऐसी अच्छी ननद नहीं बन पाई जिसे उसकी भाभी प्यार तो छोड़ो दूर का कोई रिश्तेदार समझ ही उसकी इज्जत कर लेती पर मैं भगवान से प्रार्थना करती हूं कि आप एक अच्छी ननद जरूर बन पाऐं।


इतना बोलते बोलते कृतिका की हिचकी बंध गई थी जिन्हें वो अपने अंदर जज़्ब करने की नाकाम कोशिश करती हुई अपने भतीजे के माथे को प्यार से चूमते हुए अपने बेटे का हाथ पकड़े पूरे घर को अपनी सूनी आंखों में समाते हुए अपनी सूखी जड़ों मुरझाये पत्तों का भार लिए मायके की देहरी पार कर गई थी कभी न वापिस आने को।


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