Anita Sharma

Tragedy Action Inspirational

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Anita Sharma

Tragedy Action Inspirational

लड़का लड़की में भेद

लड़का लड़की में भेद

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"बधाई हो भैया हमारी बिटिया अंजली ने तो पूरे देश में आपका नाम रौशन कर दिया।लीजिए आप लड्डू खाइये शुद्ध देशी घी के बनाकर लाई हूं।"

ऊषा जी ने अपने भैया किशोर जी के मुंह में लड्डू खिलाते हुऐ कहा तो एक बार को तो किशोर जी को यकीन ही नहीं हुआ कि ये उनकी वही बहन है जो कुछ साल पहले उससे गुस्सा होकर कभी मायके ना आने को बोल चलीं गईं थी।वैसे तो दोनों बहन भाई का बहुत अच्छा रिश्ता था पर जिस तरह आज वो उनकी बेटी अंजली के लिऐ खुश हो रहीं थी वैसे ही उसदिन अंजली को लेकर गुस्सा थीं.

"भैया आप कुछ ज्यादा ही नहीं बदल गये हो ?जो शख्स मुझे यानि अपनी बहन को दरवाजे के बाहर कदम नहीं रखने देता था।जिसने मुझे किसी रिश्तेदारी में भी बमुश्किल जाने दिया।जिसने मेरे आगे पढ़ने के सपने को अधूरा छोड़कर मेरी शादी करवा दी। आज वो अपनी बेटी को अपना सपना पूरा करने के लिऐ पहाड़ों की खाक छानने भेज रहा है? मैं कहती हूं जरूरत ही क्या है इसे वहां भेजने की?

माना की शादी के पंद्रह साल बाद आपको इकलौती बेटी के रूप में संतान प्राप्त हुई है और उसके लिऐ आप कुछ भी कर सकते हैं।ये मॉर्डन कपड़े और मोटर साइकिल चलाने तक तो फिर भी ठीक था पर ऐसे भी क्या सपने हैं आपकी लाडो के कि जिनके लिऐ

आप ये भी भूल जायें कि वो एक लड़की है और यूं अकेले पहाड़ों पर जाना उसके लिऐ सही नहीं है।,,

अपनी बहन की ऐसी बातें सुनकर किशोर जी को बहुत दुःख हुआ था।किशोर और ऊषा जी के पापा का स्वर्गवास जब हुआ था किशोर महज छः बरस का और ऊषा तो पैदा ही हुई थी ।उस समय उनके पापा का दो चाचा ताऊ को मिलाकर संयुक्त परिवार था और सबके मिलकर कुछ खेत खलिहान थे तो उनके पालन पोषण में उनकी मां को कोई आर्थिक परेशानी तो नहीं हुई थी पर किशोर के थोड़े बड़े होते ही बाहर की सारी जिम्मेदारी मां के कांधों को हल्का कर अपने कंधे पर ले ली थी और ऊषा तो उनसे पूरे छः बरस छोटी बिन बाप की बच्ची थी।तो किशोर तो उसे अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करते थे।उन्होंने उसके लिऐ उस समय वो सब कुछ किया जो वो कर सकते थे। उस समय लड़कियों को ज्यादा पढ़ाया लिखाया नहीं जाता था फिर भी उन्होंने अपने पूरे परिवार के खिलाफ जाकर ऊषा को दसवीं पास कराया था।पर उस समय बड़ी होती लड़की के लिऐ समाज कैसी कैसी बातें बनाता था उनकी बहन पर कोई उंगली न उठा सके बस इसलिये एक बड़े भाई होने के नाते उस समय और माहौल को देखकर उन्हे जो सही लगा उन्होंने ऊषा के लिऐ निर्णय किये थे। पर आज उनकी वहीं लाड़ली बहन उनके फैसलों पर उंगली उठा रहीं थी।किशोर जी को इसबात को लेकर बहुत दुःख और थोड़ा गुस्सा भी आ रहा था पर फिर भी उन्होंने संयमित तरीके से अपनी बहन को समझाने की कोशिश की थी....

"देखो ऊषा जब तुम बड़ी हुई थी तो हमारे इस छोटे से कस्बे का माहौल कैसा था। उस समय कोई लड़की घर से बाहर नहीं निकलती थी फिर भी मैने तुम्हे अपनी जिम्मेवदारी पर स्कूल भेजा था ।तुम्ही बताओ तुम्हारी कौन सी सहेली उतना भी पढ़ी है जितना तुम पढ़ी हो।तो जब मैने तुम्हारे लिऐ इतना कुछ किया था तो अब तो जमाना कितना बदल गया है तो मैं अपनी बेटी को क्यों उसके सपने पूरे ना करने दूं?"

"हूं,,,,भेजो मुझे क्या एक दिन तुम्हारी नाक ना कटवा दे ये लड़की तो कहना ।देखना एक दिन तुम खुद अपनी गलती मानोगे पर तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। मैं तो तुम्हारा भला ही चाह रही थी इसलिये समझा रही थी कि जमाना बदल गया है तो बेटी को डॉक्टर बना दो, मास्टर बना दो ज्यादा है तो इंजीनियर बना दो पर यूं लड़को की तरह पहाड़ पर चढ़ने तो मत भेजो पर जब तुम्हे मेरी बात सुननी ही नहीं है तो मैं क्या कर सकती हूं और अबसे यहां आकर भी क्या करूंगी तुम सब करो अपने मन की ।,,

कहते हुऐ ऊषा अपना सामान समेटने लगीं थीं उन्हें उम्मीद थी कि उनके जाने के नाम से किशोर की पत्नी और किशोर अपना फैसला बदल कर उसे जरूर रोक लेंगे।पर किशोर जी ने उन्हे नहीं रोका था क्योंकि बात अगर उनकी होती तो शायद वो अपने सपनों से समझौता कर भी लेते पर अपनी बेटी के सपने को वो अधूरा नहीं छोड़ सकते थे।अपने पापा के लिऐ अंजली ने भी बहुत मेहनत की थी।उसे डर था कि कहीं उसकी नाकामयाबी उसकी बुआ के साथ और लोगों को भी उसके पापा का मजाक बनाने का मौका न दे दे और आज उसकी वहीं मेहनत रंग लाई थी उसने सबसे कम समय में एवरेस्ट की चोटी पर तिरंगा फहराने का रिकॉर्ड बनाया था। देश की हर न्यूज चैनल हर अखवार में सिर्फ उसके ही चर्चे हो रहे थे जिसकी वजह से किशोर जी को बधाई देने वाले लोगों का तांता लगा था पर किशोर जी की आंखों को ऊषा जी बधाई ने नम कर दिया था।उनकी आंखों की नमी देखकर ऊषा जी माफी मांगते हुऐ बोलीं.......

मुझे माफ कर दीजिए भैया न जाने क्यों मैं अपने अधूरे सपनों के लिऐ ये भूलकर कि आपने उस जमाने में जो मुझे दिया उसका आधा भी किसी और को नहीं मिला आपको दोषी मान बैठी।मुझे लगने लगा था मैं भी तो इस घर की बेटी थी जब मेरे सपने पूरे नहीं हुऐ तो अंजली के भी क्यों हो। पर आज जब अंजली ने आपका नाम रौशन किया तो एहसास हुआ कि कितनी गलत थी मैं।अब जमाना कहां से कहां पहुंच गया और मैं आज भी अपने पुराने जमाने में उलझी थी पर अब मैं आज से बल्कि अभी से ये कसम लेती हूं कि अब मेरी बेटियां भी जो करना चाहेंगी मैं उन्हें वहीं करने दूंगी कोई लड़का लड़की का भेदभाव नहीं करूंगी।,,

"इसी बात पर शुद्ध देसी घी का लड्डू एक और खिलाओ ऊषा आखिर बेटी के साथ-साथ मेरी बहन ने भी तो अपने विचारों को बदलने की लड़ाई जीती है।,,

"हां हां लो भैया सारे आपके लिऐ ही तो है।,,

कहते हुऐ ऊषा जी किशोर के गले लग गईं और किशोर जी ने अपनी प्यारी बहन के माथे को प्यार से चूम लिया।


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