Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Laxmi Dixit

Abstract

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Laxmi Dixit

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प्रिय डायरी बचपन लॉकडाउन

प्रिय डायरी बचपन लॉकडाउन

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वर्तमान में कोरोना काल में लगभग पूरी दुनिया लॉक डाउन है। हर कोई ज्ञान बांचता है, घर में रहो, सुरक्षित रहो। डॉक्टर, नर्स, हेल्थ कर्मियों की हर कोई तारीफ कर रहा है। कोरोना वॉरियर्स कहकर सम्मानित किया जा रहा है। हां, करना भी चाहिए। लेकिन कोई भी हमारे कल का भविष्य, हमारे देश के बच्चों की सराहना नहीं कर रहा।

 सोशल मीडिया, हमारी सरकारें सब चुप हैं। संकट के समय बच्चों के सहयोग की अनदेखी की कोई बात नहीं करता। जबकि बच्चों के योगदान के बिना लॉकडाउन को प्रभावी बनाना नामुमकिन है। बड़े तो समझदार हैं ,जानते हैं, महामारी क्या होती है, वायरस क्या होता है, कैसे फैलता है, हमें अपना बचाव कैसे करना है।लेकिन हमारे बच्चे वह तो नहीं जानते यह सब।हमारे बच्चे तो सिर्फ हमारे कहने पर घरों में कैद होने को तैयार हो गए।

 इन मासूमों के योगदान की कोई चर्चा नहीं करता। जिन बच्चों के कदम घर पर नहीं ठहरते थे ,आज वो चौबीसों घंटे खुशी-खुशी घर में कैद हो गए हैं।दोस्तों के साथ चहल- कदमी करना, पार्क में खेलना उनके लिए एक सपना बन गया है। हम बुजुर्गों की बातें करते हैं कि वह बाहर टहलने नहीं जा पा रहे। जो युवा जिम जाते थे, वह परेशान हो रहे हैं। लेकिन हमारे नन्हे मासूम बच्चे, जो कल्पना की उड़ान में पूरी दुनिया घूम लेते थे, आज यथार्थ के धरातल पर छोटे-छोटे कमरों में सिमट कर रह गए हैं।

लॉकडाउन के कारण घरेलू हिंसा की घटनाओं में काफी इजाफ़ा हुआ है।इसका खामियाजा भी बच्चों को भुगतना पड़ रहा है।कोमल बाल मन माता-पिता को लड़ते देखता है तो उसके अवचेतन में यह घटनाएं घर कर जाती हैं और यादों की कड़वाहट तउम्र उसका पीछा नहीं छोड़ती। इस कारण बच्चों के व्यक्तित्व पर गहरा असर पड़ता है ,या तो वे अवसाद ग्रस्त हो जाते हैं या फिर उनमेें उग्र प्रवतती जाग उठती है।

 जो बच्चे पिज़्ज़ा, बर्गर, चाऊमीन, मोमोज़ आदि खाए बिना एक दिन भी मुशकिल से गुजार पाते थे ,आज देश की खातिर ,हमारे कहने पर इन सब पकवानों को भूल चुके हैं। वह अब हमसे जिद नहीं करते इन सब चीजों को खाने के लिए।

 कोरोना महामारी के कारण स्कूल बंद हैैं। बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है।कुछ लोग कहते हैं, अप्रैल में पढ़ाई होती भी कितनी है और स्कूल ऑनलाइन एप के माध्यम से पढ़ाई करवा तो रहे हैं। लेकिन शिक्षा के ऑनलाइन माध्यम तक कितने बच्चों की पहुंच है ? क्या इस पर कोई चर्चा हुई है ?

कितने माता-पिता के पास स्मार्टफोन है। सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के माता-पिता, जो बच्चों की पढ़ाई में खर्च नहीं कर सकते, क्या ऑनलाइन माध्यम से बच्चों को पढ़ा पा रहे हैं? इन सब के बावजूद बच्चे जिद नहीं करते।

जब 'समझदार' बड़े लोग भी कोरोना वॉरियर्स के साथ हिंसात्मक व्यवहार कर रहे हैं, हमारे बच्चे देश हित में एक जिम्मे़दार नागरिक का कर्तव्य निभा रहे हैं। वाकई हमारे देश का भविष्य इन जिम्मे़दार नागरिकों के हाथों में सुरक्षित है। और हां, एक सेल्यूट तो इन नन्हें फरिश्तों को भी बनता है।


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