Laxmi Dixit

Others

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'क'... कन्फ्यूजन

'क'... कन्फ्यूजन

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कलयुग और कोरोना - दो शब्द , दोनों की शुरुआत 'क' व्यंजन से होती है। क्या इसके अतिरिक्त भी कोई समानता है इनमें। जी हां, कन्फ्यूजन।


 महाभारत में एक प्रसंग आता है, श्री कृष्ण और पांडवों के मृत्यु लोक से प्रस्थान करने के बाद धरती पर कलयुग का आगमन होना था। एक दिन जब अर्जुन के पौत्र और अभिमन्यु के पुत्र राजा परीक्षित शिकार करने के लिए वन जा रहे थे। तभी राजा परीक्षित ने देखा, एक आदमी एक पैर वाले बैल और एक गाय को बड़ी निर्ममता से पीट रहा है। राजा परीक्षित समझ गए कि यह कोई साधारण घटना नहीं है।


दरअसल एक पैर वाला बैल धर्म था और गाय धरती। राजा परीक्षित ने उस व्यक्ति से उसके इस कृत्य का कारण पूछा तो उसने कहा कि राजन मैं कलयुग हूं और मैैं प्रजापिता ब्रह्मा की आज्ञा से यहां आया हूं ।आप मुझे मेरे रहने के लिए निवास स्थान दीजिए । पहले तो राजा परीक्षित के कहा , 'तुम मेरे राज्य में नहीं रह सकते कहीं और स्थान मांगो'। लेकिन कलयुग बड़ा कुटिल था उसने कहा राजन इस समय समूची पृथ्वी पर आपका ही शासन है इसलिए आपको मुझे स्थान देना ही होगा, यही ब्रह्मा का आदेश है। तो राजा परीक्षित ने कलयुग को चार स्थान दे दिए- मदिरा ,जुआ ,परस्त्रीगमन और हिंसा ।इस पर कलयुग बोला ,'चार कम हैं, एक और दीजिए और यह चारों तो बुरे स्थान हैैं मुझे एक अच्छा स्थान भी चाहिए।' इस पर राजा परीक्षित ने बिना सोचे- समझे पांचवां स्थान दे दिया स्वर्ण में। फिर क्या था, राजा परीक्षित ने सोने का मुुुकुट पहन रखा था। कलयुग उसमें प्रवेश कर गया और राजा की बुद्धि खराब हो गई।


 आज कोरोना ने कलयुग की भांति हमारे दिमाग पर भी असर डालना शुरू कर दिया है।आज मंदिर ,मस्जिद ,गुरुद्वारे, गिरजाघर बंद हैैं लेकिन म़दिरालय खोल दिए गए हैं ।बेरोज़गारी के इस दौर में आजीविका के साधन के विषय में चिंतन करने के बजाय राजस्व की प्राप्ति के लिए शराब की दुकानें खोल दी गई हैैं। जिस सोशल डिस्टेसिंग का पालन करवाने के लिए लोगों को कितना जागरूक किया गया, आज उसी की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।


लोगों को निर्देशित किया गया कि शराब की दुकानों के बाहर एक मीटर की दूरी पर खड़े रहना होगा, लेकिन यह नहीं सोचा गया कि क्या मदिरा का नशा जब दिमाग को जकड़ लेगा तो क्या दिमाग एक मीटर की दूरी नापने लायक रहेगा। सार्वजनिक स्थानों पर थूकने पर प्रतिबंध लगा दिया गया और पान -गुटखे की बिक्री स्वीकृत कर दी गई ।यह नहीं सोचा गया कि पान -गुटखा खाने के बाद लोग थूकने कहां जाएंगे ।


कलियुुग ने हमारी सोचने -समझने की क्षमता को भ्रमित कर दिया है। आज ऐसेे- ऐसे तर्क दिए जा रहे हैं की मदिरा के सेवन से हमारा शरीर सैनिटाइज हो जाएगा, ब्लीच के इंजेक्शन से कोरोना मर जाएगा । क्या वाकई आज बुद्धिजीवी भी कोरोना या कलयुग के मायाजाल से  दिग्भ्रमित होकर कुतर्क करने लगे हैं ।अगर यही स्थिति रही तो भविष्य का पथ अंधकारमय ही है। कलयुग में मनुष्य का नैतिक पतन हुआ और कोरोना उसका मानसिक पतन कर रहा है । शराब के सिकंदर कोरोना के भय को भूल गए हैं।


आधुनिक युग में स्त्री और पुरुष दोनों को समान माना जाता है।स्त्री पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है। ये समानता शराब की दुकानों के बाहर लगी लाइनों में भी देखी जा सकती है ।शराब ने स्त्री-पुरुष के अंतर को मिटा दिया है । आज जब देश की अर्थव्यवस्था का पहिया थम गया है तो शराब को ईंधन के रूप में देखा जा रहा है जो अर्थव्यवस्था की रुकी हुई गाड़ी को फिर से चला देेेगी। कोरोना को धोने के लिए गंगाजल नहीं अपितु अल्कोहल चाहिए।


 बहरहाल यह देखने लायक होगा कि स्थिति के सामान्य होने के बाद क्या लोग धर्म स्थलों के बाहर भी इतनी लंबी लाइनें लगाने में तत्परता दिखाएंगे ।वैसे नशा चाहे शराब का हो या अफी़म का नुकसानदायक ही होता है। तेल की उपयोगिता भी तभी तक है जब तक उसके खरीदार हैं।


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