Laxmi Dixit

Others

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परिवर्तन

परिवर्तन

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परिवर्तन संसार का नियम है ।पहले भी दुनिया को बदलते देखा था। जब 1990 के दशक में पत्राचार की जगह टेलीफोन ने ले ली। बचपन का दौर आज फिर स्मृति पटल पर सजीव हो गया है ।

नया-नया टेलिफोन लगा था, घर में। हम सब बच्चे टेलीफोन को घेरे खड़े थे और कौतूहल वश उसे निहारे जा रहे थे। पापा ने कहा था कि उन्होंने अपने एक मित्र को बताया है कि हमारे यहां टेलिफोन लग गया है और उसने कहा है कि कुछ देर में वह फोन करेगा ।तभी यकायक घंटी बजी। दरवाजे की नहीं टेलीफोन की ,तो मां भी किचन का काम छोड़कर टेलीफोन सुनने आ गईं थीं। कितना रोमांच हो आया था, उस समय।

स्कूल में, एक पीरियड में, विषय के रूप में पढ़ा जाने वाला कंप्यूटर कब अपने दायरे लांघकर जीवन में प्रवेश कर गया, पता भी नहीं चला । 21वीं सदी की शुरुआत हुई तो लंबे- लंबे तार से जुड़ा टेलिफोन हमारी हथेली में समाने लगा। जी हां, टेलीफोन की जगह अब मोबाइल ने ले ली थी।

मुझे याद है, जब मोबाइल का जमाना आया था, तो शुरुआत में इसका चलन दैनिक जीवन में कम ही होता था। लोग अपने ऑफिस का काम और व्यापार के लिए ही इसका उपयोग करना पसंद करते थे । कारण था, कॉल की दरों का अधिक होना। इनकमिंग कॉल फ्री नहीं थे और एसटीडी का शुल्क भी अधिक था।

लेकिन 2000 के आखिरी पड़ाव के आतेे-आते कॉल की दरें घट गईं और इनकमिंग फ्री हो गई ।इसके साथ ही मोबाइल हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा बन गया। लेकिन तब भी लोग इसका इस्तेमाल कॉल करने के लिए ही करते थे।

21वी सदी जीवन में एक और परिवर्तन लेकर आयी थी, वह था इंटरनेट। जैसे-जैसे  इंटरनेट का उपयोग कंप्यूटर के साथ-साथ मोबाइल में भी होने लगा ।मोबाइल प्लास्टिक का एक आयत न रह गया था, स्मार्ट बन गया था , हमारे - आपकी तरह।

2010 के दशक को मोबाइल क्रांति का दशक कहेें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी ।जिओ के टेलीकॉम क्षेत्र में आने के बाद डाटा की कीमतें घटीं। तब तो जीवन में डाटा का महत्व आटे से भी अधिक हो गया। डाटा सस्ता और आता महंगा हो गया।

आज लोग आटे के बिना तो एक दिन गुजार सकते हैं ,पर डाटा के बिना नहीं।

परिवर्तन जीवन में कभी इतना अख़रा नहीं जैसा कि आज 2020 के दशक की शुरुआत में । लॉकडाउन के कारण वर्क फ्रॉम होम का कल्चर चल रहा है। ज्यादातर काम ऑनलाइन ऐप के माध्यम से हो रहे हैैं । लेकिन जीवन ठहर सा गया है। वैश्विक महामारी कोरोना ने हम सब के जीवन पर गहरा असर डाला है।

परिवर्तन हमेशा हवा में घुली गुलाब की सुगंध की तरह आया, जिसकी खुशबू हम सब ने महसूस की और आनंदित हुए ।लेकिन आज यह हवा में घुले जहरीले धुएं की तरह कंठ को अवरोध कर रहा है। जिसमें सांस लेना भी मुश्किल हो रहा है । हवाओं में कांटो की चुभन आज क्यों महसूस हो रही है।

शायद परिवर्तन तभी तक आनंदित करता है ,जब तक हमारे जीवन को गतिशील रखता है। किंतु जब जीवन की गति पर विराम लगा देता है ,तो यही परिवर्तन शूूल की भांति चुभने लगता है।

मनुष्य का शरीर तो चलने के लिए ही बना है ,लेकिन यातायात के साधनों ने हमें यह विस्मरण करा दिया था। निजी वाहनों का सुख लेने में हम इतने व्यस्त हो गए थे , कि पैदल चलना ही छोड़ दिया था। लेकिन अब जब सुबह की सैर पर भी पाबंदी लग गई है तो हमें पैरों की उपयोगिता समझ में आने लगी है।

नदी के बहते हुए निर्मल जल और पोखर के रुके हुए जल में अंतर समझ में आने लगा है। आज परिवर्तन की आंधी के साथ-साथ चलते हुए ,हमारा जीवन ,कितनी आगे तक निकल आया था, पता ही नही चला। लेकिन आज इस आंधी को घर की बालकनी और खिड़कियों से देख रही हूं, तो ये कितनी सिरहन दे रही है।


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