लॉक डाउन की बातचीत -02
लॉक डाउन की बातचीत -02


"हेलो", अर्चना ने मोबाइल रिसीव करते हुए कहा।
"हेलो! कैसी है? क्या हो रहा है", मैंने उससे पूछा?
"कुछ नहीं, घर पर बैठी हूँ," उसने जवाब दिया।
"अच्छा! और सब बढ़िया? बेटा कैसा है? और हस्बैंड…, मैंने उसके सामने सवालों की झड़ी लगा दी?"
"हाँ, सब बढ़िया है, तू बता। तेरा क्या चल रहा है?"
"क्या चलेगा रे… हम भी घर पर बैठे हैं, 10 दिनों से। घर से निकलना तो है नहीं। काम उतना था नहीं तो सोचे कि थोड़ा हाल चाल पूछ लेते हैं तेरा…"
"सही किया। ऐसे तो याद करते नहीं हो… चलो कम से कम इसी बहाने बात तो हो जा रही है", अर्चना ने तंज कसते हुए कहा।
"अच्छा! हम याद नहीं करते? चलो ठीक है… लेकिन तुम कौन सा याद करती हो", मैंने पलटकर जवाब दिया।
"अच्छाsss! वो तो हक़ है मेरा। तेरे से झगड़ा करने का, बहन हूँ न तेरी (हा…हा…हा…)", उसने हँसते हुए कहा।
"हाँ, चलो ठीक है। और बताओ, दिल्ली का क्या हाल है? दिल्ली तो सुनसान हो गयी होगी", मैंने बात बदलते हुए पूछा?
"अरे, पता है? सब घर में घुस गए हैं… कोरोना के डर से…। अब तो मुझे भी डर लगने लगा है", उसने गंभीर होते हुए कहा।
"हम्म! संभलकर रहना। बेटा को बिल्कुल बाहर मत निकलने देना, मैंने समझाते हुए कहा।
हाँ, हमलोग सभी घर में कैद हो गए हैं। जब तक लॉक डाउन पूरा नहीं होता, मैं तो किसी को निकलने नहीं दूंगी", अर्चना ने जवाब दिया।
"सही सोची है तुम। अच्छा! एक बात बताओ। लॉक डाउन से दिल्ली में क्या बदलाव आया है," मैंने उससे पूछा?
"दिल्ली में…? ( कुछ सोचते हुए) उम्म… सबसे पहला तो गाड़ी एकदम से कम हो गई है रोड पर। पता है, आजकल हमलोग सुबह गाड़ी की आवाज से नहीं, चिड़िया के चहचहाहट से उठते हैं। इधर आसपास रोज चिड़िया सुबह शाम कलरव करती है", उसने जवाब दिया।
"वाह दिल्ली जैसे शहर में चिड़िया…? अब उनका ही समय है…"
"हाँ, उसने मेरी बात काटते हुए कहा, और कहना जारी रखा – "गाड़ी कम होने से आसमान एकदम साफ दिखता है। रुको, तुम्हें सुबह का फोटो भेजती हूँ (उसने व्हाट्सएप पर एक फ़ोटो भेजी)। देखो, मोबाइल में …आज का लिया है, मेरा बेटा लिया था।"
"वाह! ये दिल्ली का फ़ोटो है? सही है… चलो, अच्छा है। कम से कम इसी बहाने दिल्ली की हवा साफ तो हुई", मैंने उससे कहा।
"हाँ, सही है। लॉक डाउन के बाद यहाँ की एयर क्वालिटी इंडेक्स में काफी सुधार है। पॉल्युशन 50% तक कम हो गई है। ये केवल दिल्ली का नहीं, लगभग हर शहरों की कहानी है। कल मेरी फ्रेंड मुझे एक फोटो भेजी थी… पता है, मुंबई की सड़कों और गलियों में मोर दिख रहे थे। मुम्बई में मोर… बहुत रेयर है। आज एक न्यूज़पेपर में मैं पढ़ी कि गंगा भी साफ हो गयी ।"
"हैं…सच में?" मैंने उसकी बात काटते हुए बोला।
"अरे हाँ! फैक्ट्री से निकलने वाला केमिकल एकदम से कम हो गया तो गंगा भी साफ हो गयी", अर्चना ने जवाब दिया।
"सही है यार! नेचर खुद को रिवाइव कर रही है। मौसम, हवा, पानी सब साफ हो रहा है इस कोरोना की वजह से", मैंने उससे कहा।
"अरे, कल मैंने फेसबुक में एक पोस्ट देखा था कि जालंधर से धौलाधार की पहाड़ियाँ साफ दिखाई दे रही हैं, हवा इतनी साफ हो गयी हैं। जबकि, दोनों की दूरी लगभग 200 किमी है", उसने अपनी बात पूरी की।
"हम्म! बढ़िया है। जब आदमी कुछ नहीं कर सकता, नेचर खुद कर लेती है। "(कुछ देर रुकने के बाद) "अरे, अर्चना, सुनो न… एक अर्जेंट फ़ोन आ रहा है…तुमको बाद में कॉल करते हैं, मैंने कहा।
ओके, ठीक है। तुम बात कर लो और ध्यान रखना अपना और फैमिली का।
हाँ, तू भी! चलो रखते हैं, बाय!"
"ओके, बाय, कहते हुए अर्चना ने फ़ोन रख दिया।"
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