लॉक डाउन की बातचीत -10
लॉक डाउन की बातचीत -10
"हेलो", मैंने फ़ोन उठाते हुए कहा।
"कैसे हैं भैया", सुषमा ने पूछा?
"हम ठीक हैं, तुम बताओ।"
"हाँ, मेरा भी ठीक है भैया। उधर का क्या हाल है", उसने पूछा?
"इधर तो ठीक है। अभी तक तो मरीज नहीं आया इधर, लेकिन हम तैयार हैं। उधर रायपुर का क्या हाल है", मैंने उससे पूछा?
"यहाँ पर ठीक है। एम्स में तो 7 केस आये हैं। पता है, आयुष बिल्डिंग को पूरा कोरोना वार्ड बना दिया है। सभी मरीज वहीं जा रहे हैं", उसका जवाब था।
"अच्छा! फिर वहाँ ड्यूटी कैसे लग रही है स्टाफ की", मैंने उससे जानने की कोशिश की?
"12 घंटे की ड्यूटी लगती है, लगातार तीन दिनों के लिए, फिर 7 दिनों के लिए क्वारंटाइन। सभी को रोटेशन में दे रहा है", उसने बताया। कुछ देर रुकने के बाद फिर बोली – "यहाँ तो केस मिले हैं तो सभी हाई अलर्ट पर हैं। जो स्टाफ सिंगल हैं उन्हें तो उतनी परेशानी नहीं है, पर फैमिली वालों को ड्य
ूटी में बहुत मुश्किल हो रही है…"
मैंने बीच में ही पूछ लिया –" कैसे?"
सुषमा –" एक तो 12 घंटे की ड्यूटी, ऊपर से कोरोना मरीज को देखना… कपड़ों से लेकर खाने तक में एहतियात बरतना पड़ता है ना… जिनके छोटे-छोटे बच्चे हैं उनकी तो हालत और भी खराब है.."
"ओह! हाँ… सच में बहुत मुश्किल है तब तो। जितना जल्दी हो इसपर काबू पाना ही होगा, नहीं तो बहुत मुश्किल हो जाएगा…"
सुषमा –" हाँ। हर तरह से और हर स्तर से कोशिश तो हो ही रही है… लेकिन जब तक पब्लिक का सपोर्ट नहीं मिलता, कोइ फायदा नहीं।"
"हाँ ,सही है… चलो ठीक है, अपना ख्याल रखना, अभी रखते हैं, मेरे फ़ोन पर लगातार नए नंबर से कॉल आ रहा था", तो मैंने बात खत्म करने के लिहाज से कहा।
"हाँ भैया, ठीक है, बाय।"
मैंने भी बाय कहते हुए फ़ोन रख दिया।