Sandeep Kumar Keshari

Others

4.7  

Sandeep Kumar Keshari

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युद्ध

युद्ध

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197


चेन्नई, 


सौ से अधिक बच्चे को फूड पॉयजनिंग की शिकायत, सभी अस्पताल में भर्ती।


दूसरा दिन

मरीजों की संख्या हुई 159 से ज्यादा, 2 की मौत।


तीसरा दिन

सभी छोटे बड़े हॉस्पिटल मरीजों से भरे। 120 नए मरीज सहित कुल 380 से ज्यादा हुई, 10 की मौत।



चौथा दिन

पूरे राज्य में मेडिकल एमरजेंसी लागू। मुख्यमंत्री ने आपात बैठक बुलाई। जाँच समिति का गठन। केंद्र ने राज्य की स्थिति पर रिपोर्ट माँगी। बीमारी का दायरा केरल, कर्नाटक एवं आंध्र प्रदेश तक फैला। मरीज बढ़कर हुए 875, जिसमें 76 की मौत।



पाँचवाँ दिन

मरीज की संख्या बढ़ने की दर बढ़ी। अभी तक सभी दवाइयाँ बेअसर!


छठा दिन

नई दिल्ली

प्रधानमंत्री का आवास

उच्चस्तरीय बैठक में प्रधानमंत्री के अलावा केंद्रीय गृह मंत्री, स्वास्थ्य मंत्री के साथ संबंधित मंत्रालय के सचिव एवं एम्स, दिल्ली के माइक्रोबायोलॉजी, न्यूट्रिशन के विभागाध्यक्ष एवं आई सी एम आर के चीफ शामिल।

प्रधानमंत्री – आप सभी को पता है कि पिछले कुछ दिनों से तमिलनाडु और उसके पड़ोसी राज्यों में फ़ूड पॉइज़निंग के बहुत मरीज मिले जिसमें कई की मौत हो चुकी है। राज्यों में मेडिकल इमरजेंसी लागू किया गया है। सारी दवाइयाँ बेअसर हो रही हैं। आगे की रणनीति हेतु आप सभी को यहाँ आमंत्रित किया गया है। डॉ प्रो रंगनाथन, कृपया आप इस बीमारी के बारे में बताएँ।

प्रो. – सर, दक्षिण के राज्यों में मरीज के खून एवं मल के साथ फ़ूड सैंपल की जाँच से पता चला है कि इस फ़ूड पॉइज़निंग का वजह एक बैक्टीरिया है, क्लोस्ट्रीडियम बोटुलिन। सर, यह एक छड़ के आकार का ग्राम पॉजिटिव बैक्टीरिया है जिसे ऑक्सीजन की जरूरत नहीं होती, इसलिए इसे अनैरोबिक कहते हैं। ऑक्सीजन इनके लिए काल है, लेकिन थोड़ा बहुत ऑक्सीजन ये सह लेते हैं जिसका कारण एक एंजाइम सुपेरोक्सिडेज डिसम्युटेज है। सर, इस बैक्टीरिया के कुल 8 स्ट्रेन हैं जिन्हें क्रमशः ए से लेकर एच तक जाना जाता है। इन सभी स्ट्रेन में से अभी तक एच स्ट्रेन के बारे में सबसे कम तथ्य ज्ञात हैं। …और अभी तक जितने भी सैंपल मिले हैं, उनमें H स्ट्रेन के बैक्टीरिया ही मिले हैं।

प्रधानमंत्री ( टोकते हुए) – इसका इलाज क्या है?

आई सी एम आर चीफ डॉ पाटिल – सर, अभी तक कोई इलाज नहीं है। सर, अभी तक के अध्ययन से हमें पता चला है कि इस बैक्टीरिया के जीन को उत्परिवर्तित यानी जीन म्युटेशन किया गया है जिसके कारण इस बैक्टेरिया पर कोई भी एंटीबायोटिक काम नहीं कर सकता। दूसरी ओर इसी जीन म्युटेशन की वजह से यह बैक्टीरिया एंजाइम सुपेरॉक्सीडेज दिसमुटेज अधिक मात्रा में बना सकता है जिससे यह अधिक ऑक्सीजन भी बर्दाश्त कर सकता है।

प्रधानमंत्री – दूसरा कोई उपाय?

डॉ पाटिल – सॉरी, सर फिलहाल नहीं है।

स्वास्थ्य मंत्री – कोई वैक्सीन या एन्टी टोक्सिन?

डॉ पाटिल – मैम! अभी तक एच स्ट्रेन का कोई भी एन्टी टोक्सिन नहीं है क्योंकि इसके बारे में बहुत कम अध्ययन हुआ है। जहाँ तक वैक्सीन का सवाल है, हमें वैक्सीन या एन्टी टोक्सिन बनाने में कम से कम एक साल लग जाएंगे क्योंकि इसके ट्रायल में बहुत लंबा समय लगता है। यही हाल एंटीबायोटिक का भी है, मैम।

बैठक में उपस्थित सभी के चेहरे उतर गए। कुछ देर की चुप्पी के बाद गृह मंत्री ने पूछा – कोई तो उपाय होगा जिससे हम इसपर काबू पा लें?

न्यूट्रीशन की विभागाध्यक्ष डॉ नलिनी गर्ग – सर, फौरी तौर पर एक ही उपाय है। अगर हम गौर करें तो दो बातें सामने आती हैं। पहली, यह संक्रमण दक्षिण के तटीय क्षेत्रों से शुरू हुई और तटीय राज्यों तक ही पसरी हैं। दूसरी ओर, जितने भी फ़ूड सैंपल आये हैं, सभी के सभी चावल या बेकरी या उससे बने उत्पाद के सैम्पल थे, क्योंकि वहाँ के लोग चावल ही खाते हैं।

गृह मंत्री - ….तो?

डॉ गर्ग – सर, इसका सोर्स चावल और बेकरी है। इसके लिए हमें इन राज्यों के चावल मिल और बेकरी फैक्टरी को सील करना होगा। दूसरा, हमें इसका मुख्य स्त्रोत का पता लगाना होगा।

गृह मंत्री – सभी चावल मिलों को कैसे बंद कर सकते हैं? उसके साथ बेकरी इंडस्ट्री पूरी तरह बर्बाद हो जाएगी। वहाँ भुखमरी हो जाएगी। वहाँ के लोग तो गेहूँ या उसके उत्पाद भी नहीं खाते…

तभी प्रधानमंत्री ने टोकते हुए कहा – “हमारे पास फिलहाल और कोई विकल्प नहीं है। हम FCI और अन्य राज्यों से संक्रमित राज्यों को चावल भेज सकते हैं। हमें पता है, यह बहुत नुकसानदेह है, लेकिन हम अपनी जनता को ऐसे मरते नहीं देख सकते। … आप सभी तैयार रहिये, एकयुद्ध के लिए। इस बार युद्ध गोलों और बम से नहीं दवाइयों से लड़ी जाएगी। और हाँ, आप तीनों विशेषज्ञों से अपील है कि आप लोग अपने रिसर्च जारी रखें एवं इसका इलाज खोजें, धन्यवाद।

                

कुछ देर में प्रधानमंत्री कार्यालय से विज्ञप्ति जारी कर सभी तटीय राज्यों के सभी चावल मिलों एवं बेकरी फैक्ट्री को सील कर दिया गया। फ़ूड इंडस्ट्री में हाहाकार मच गया। फ़ूड इंडस्ट्री के शेयर धड़ाम हो गए। दक्षिण के राज्यों को उत्तर भारत के राज्यों से चावल युद्ध स्तर से भेजा जाने लगा। इधर मरीजों की संख्या बढ़ती ही जा रही थी। उधर विशेषज्ञों की टीम इलाज खोजने में जुट गई, पर ये सब इतना आसान नहीं था। इसी दौरान भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान ने यह खबर दी कि निकोबार द्वीप समूह के प्रतिबंधित जंगलों में पिछले कुछ दिनों से इंसानी गतिविधियां बढ़ी हैं। सैटेलाइट कैमरों से खींची तस्वीरों से पता चल रहा था कि उस क्षेत्र में रहने वाली आदिवासियों की एक प्जारवा जिनकी अनुमानित जनसंख्या मात्र 400 के करीब है, कई मारे गए हैं। इस सूचना से खुफिया एजेंसियों के कान खड़े हो गए। जब उन्होंने पता लगाने की कोशिश की तब उन्हें एक बड़े षड्यंत्र का पता चला। उस जंगल में तीन चीनी और दो पाकिस्तानी रह रहे थे। उन्होंने उस जंगल में एक आधुनिक लैब बना रखा था जिसमें लाइट जान बूझकर नहीं लगाई गई थी। अंधेरे में लाइट नहीं होने के कारण रात में उनकी गतिविधियों को पकड़ना बेहद कठिन था। वे सारा काम दिन में करते थे। जब उन्होंने पहली बार प्रतिबंधित जंगल में प्रवेश करने की कोशिश की, तो उनका सामना जारवा जनजाति से ही हुआ। जनजातियों ने उन पर तीरों और भालों से वार कर दिया, लेकिन इन्हें पता था कि इनके तीर और भालों में फॉर्मिक एसिड नामक रसायन अत्यधिक मात्रा में होता है, जिससे इंसान मर भी सकता है। इसलिए इन्होंने उस रसायन का एन्टी डॉट पहले से रखा हुआ था, जिससे जारवा के वार का इन पर कुछ असर नहीं हुआ। उल्टा, इन्होंने अपने साथ लाये खिलौने वाले बंदूक में उसी बैक्टीरिया के जहर यानी बोटुलिनम टोक्सिन (अभी तक ज्ञात विश्व का सबसे खतरनाक जहर) ढेर सारी मात्रा में रखा था, जिसे उन्होंने उस जनजाति के खिलाफ किया। बंदूक से निकले गोली में इतना जहर होता था कि वह 10 लोगों को मारने के लिए काफी था। इसी वजह से वहाँ की जनजाति की संख्या में कमी आने लगी। अपने लोगों को मरते देख कुछ जनजाति वहाँ से भाग गए थे। वहाँ से जनजातियों के भागने के बाद उन विदेशियों ने अपना लैब बनाया और उसमें वही क्लोस्ट्रीडियम बोटुलिनम एच के जीन म्युटेशन के बाद उनका कल्चर किया और पोर्ट ब्लेयर के रास्ते चेन्नई पहुँचाया। चेन्नई में सभी बड़े चावल मिलों और बेकरी फैक्टरियों के उत्पाद पर उन बैक्टेरिया को मिला दिया गया। वहाँ से बैक्टेरिया ने अपनी संख्या खूब बढ़ा ली जो पूरे शहर और राज्य को संक्रमित करने के लिए काफी थी। जब खुफिया एजेंसियों ने जाँच आगे बढ़ाई तो कोलकाता पुलिस की ओर से जानकारी मिली कि पिछले महीने तीन चीनियों के गायब होने की रिपोर्ट दर्ज की गई थी, जबकि पाकिस्तानी निकोबार द्वीप समूह में उन्हीं गायब चीनियों (जिनके बारे में पुलिस को धोखे में रखने के लिए झूठी रिपोर्ट दायर की गयी थी और निकोबार के जंगल में छुप गए थे) के मदद से अवैध रूप से घुसे थे।

इधर, इन विशेषज्ञों को बहुत ज्यादा सफलता नहीं मिल पा रही थी। उसी वक़्त किसी ने प्रो रविशेखर वर्मा का नाम सुझाया। प्रो वर्मा देश के सबसे पहले माईक्रोबियोलॉजिस्ट थे, जिन्होंने एक जीन के पेटेंट के लिए सरकार से अनुमति मांगी थी, किन्तु सरकार ने उसकी अनुमति नहीं दी। कुछ साल के बाद उसी जीन को अमेरिका ने अपने नाम से पेटेंट करवा लिया था। सरकार के इस रवैये से क्षुब्ध प्रो वर्मा ने सरकार से अपने सारे नाते खत्म कर दिए और हिमालय की गोद में साधु वेश में अपनी रिसर्च पर किताब लिखने लगे। जब उन्हें खोजा गया तो वे गंगोत्री के पास कुटिया में अपना काम कर रहे थे। जब विशेषज्ञों की टीम वहाँ पहुँची तो उन्होंने सभी को घड़े का ठंडा गंगाजल दिया। जब सभी ने पिया तब प्रो वर्मा ने पूछा – कैसा लगा, गंगाजल? …ठंडा है?

डॉ पाटिल – हम्म! मीठा भी है।

प्रो वर्मा – (मुस्कराते हुए) हाँ, इसमें आर ओ नहीं है। इसका टी डी एस 100 के आसपास है जो बिल्कुल शुद्ध है और सारे इलेक्ट्रोलाइट और पर्याप्त खनिज भी हैं।

फिर उनके बाद असल मुद्दों पर विस्तारपूर्वक एवं गंभीर बातें हुई। फिर प्रो वर्मा ने उनसे पूछा – क्या आप बता सकते हैं, गंगा का जल इतना शुद्ध क्यों होता है?

सभी ने एक सुर में बक्टे का नाम लिया, तो प्रो वर्मा ने उनसे कहा कि ये आधा सच है। गंगा में बक्टेरियोफेज के अलावा बक्टेरिओवोर भी होता है जो इसमें उपस्थित बैक्टीरिया को मारता है। डेलोभिब्रियो बैक्टीरियोवोर एक ग्राम पॉजिटिव एरोबिक बैक्टीरिया है जो मुख्यतः ग्राम नेगेटिव बैक्टीरिया का शिकार करता है और उसे खा जाता है। हमारे पास फिलहाल ये दो हथियार हैं जिनसे हम इस महामारी से लड़ सकते हैं।

…लेकिन प्रो वर्मा! डेलोभिब्रियो तो ग्राम पॉजिटिव है और यह ग्राम नेगेटिव को मारता है, लेकिन यहाँ जिस बैक्टीरिया क्लोस्ट्रीडियम बोटुलिनम ने तबाही मचाई है, वह तो ग्राम पॉजिटिव है! फिर ये डेलोभिब्रियो इसे कैसे खत्म करेगा, डॉ रंगनाथन ने आशंकित होते हुए पूछा?

प्रो वर्मा ( मुस्कुराते हुए) – “डॉ रंगनाथन, मैं जिस जीन के पेटेंट के लिए सरकार से भिड़ गया, वह यही जीन था। मैंने डेलोभिब्रियो के उस जीन को डीकोड कर लिया था जो इसे ग्राम पॉजिटिव बनाता है। फिर मैंने इस बैक्टीरिया से ग्राम पॉजिटिव का जीन निकाल दिया जिससे इसमें ग्राम नेगेटिव के गुण आ गए। अब हमारे पास इस बैक्टरिया के दोनों प्रकार मौजूद हैं – ग्राम पॉजिटिव जो ग्राम नेगेटिव को मारता है, और दूसरा, ग्राम नेगेटिव जो ग्राम पॉजिटिव को मारता है। इस वजह से यह बैक्टीरिया काफी शक्तिशाली हो गया और अब यह दोनों तरह के बैक्टीरिया का शिकार कर उसे खत्म कर सकता है। याद रखिये,यह डेलोभिब्रियो आने वाले समय का एंटीबायोटिक है।

वहाँ से विशेषज्ञों ने सैंपल लिए और उससे डेलोभिब्रियो को अलग कर उसे देश भर के लैब में भेजा गया जिसे युद्धस्तर पर कल्चर किया गया और उसे टैबलेट एवं इंजेक्शन के रूप में सभी संक्रमित राज्यों के अस्पतालों में भेजा गया। इधर गंगोत्री वाले गंगाजल (जिसमें बैक्टेरियोफेज थे) को बिना कोई ट्रीटमेंट किए उसे आई.वी. फ्लूइड में इस्तेमाल किया गया, चाहे वह नॉर्मल सेलाइन हो, या डी. एन. एस , या फिर आर. एल. । इलाज के दौरान मरीज़ों को मुंह से कुछ भी नहीं दिया जा रहा था। उन्हें लगातार सात दिनों तक केवल गंगाजल वाला आई वी फ्लूइड और डेलोभिब्रियो का इंजेक्शन या टेबलेट दिया गया। दो – तीन दिनों में मरीजों की हालत सुधरने लगी। इधर, चेन्नई के अलावा सभी बंदरगाह को नौसेना के हवाले कर दिया गया जिससे वहाँ आने वाली हर समान की जाँच होने लगी। उधर निकोबार द्वीप समूह में उन चीनियों एवं पाकिस्तानियों से लोहा लेने के लिए भारतीय आर्मी को एक गुप्त मिशन पर उतारा गया। यह एक सर्जिकल स्ट्राइक था, बायो वॉर के खिलाफ। उन आतंकियों ने जवानों को बोटुलिनम टोक्सिन से मारने का असफल प्रयास किया। जब आतंकियों ने सरेंडर नहीं किया तब उस लैब को भारतीय जवानों ने मिसाइल दागकर उड़ा दिया। किसी मीडिया, या राजनेताओं को इसकी भनक तक नहीं लगी और युद्ध शुरुआत में ही जीत लिया गया। राज्यों में मरीज कम होने लगे, फ़ूड इंडस्ट्री फिर से शुरू होने लगी। मृतकों की संख्या 186 तक सिमटकर रह गई। कोलकाता पुलिस के रिकॉर्ड में तीन चीनी अभी तक गायब है।


( संदर्भ एवं स्त्रोत:-

1. www.Wikipedia.org

2. www.sciencedirect.com

3. www.microbewiki.kenyon.edu

4. www.topper.com

5. www.study.com

6. www.ncbi.nlm.gov.in

7. Lippincott's llustrated Reviews of Microbiology

8. Microbiology demystified

9. Sci - fi movies, eg.- Contagions, Dashawatarm and Chennai vs china etc.)


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