परिवार
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दो हथौड़ा चलाने के बाद विशेषर को एहसास हुआ कि अपनी मस्तक पीड़ा को बहूत देर से नज़रअदाज कर रहा है, सो थोड़ी देर के लिए वो पेड़ के नीचे पसर गए। पत्थर और हथौड़े की टन-टन हो रही आवाज के बावजूद भी पसरना उनको अच्छा लग रहा था। ठेकेदार ने आश्वासन देते हुए विशेषर से कहा '' जाइए घर जाकर आराम कीजिए, हरिया से हमको पता चला है, आपकी दीहाड़ी भी नहीं काटूंगा। ठेकेदार की इसी बात के साथ विशेषर उठे और हथौड़ा चलाना शुरू कर दिया। उनको याद हो आया कि तीन दिन की देहाड़ी तो पहले ही काट चुका है, जब बेटे के बीमारी के कारण अनुपस्थित रहा था। एक दिन के बदले तीन दिन। ठेकेदार प्रताप ने विशेषर के हाथ से हथौड़ा छिन, उनको घर भेज दिया।
दरवाजा खोलते ही उनकी पत्नी कुनमुनाई और कहा '' क्यों जी चले क्यों आए, इधर नन्दु बिमार और आप थोड़ा सा बर्दाश्त नही ंकर सकते हैं ? '' सिर दर्द के मारे विशेषर खुद को गैर महसूस करने लगे तो बेटी वंदना हाथ पकड़ कर चारपायी पर लिटाते हुए, माँ से बोली '' इतना तो हमलोगों के लिए खटते हैं, थोड़ी सी तबीयता खराब हो गई तो आप पापा को बोलने लगीं। '' चारपायी पर लेटे-लेटे विशेषर को लगने लगा कि सिर दर्द और भी बढ़ गया है, सोने का भी मन कर रहा है और आँखों से नींद भी गायबहै। मन में रह-रह कर बुरे विचार आने लगे, कुछ भी अच्छा सुझने नहीं लगा। पूरी दुनिया खत्म हुई सी प्रतीत होने लगी। बेटी की नरम-मुलायम उंगलियाँ अब भी उनकी ललाट पर हल्का दबाव बना पा रही थी। नींेद से जागने के बाद थोड़ा हल्का तो महसूस हो रहा था मगर उनकी आँखें लगातार अपनी पत्नी को ढूंढ रही थी, इससे पहले कि वो बेटी से कुछ पुछ पाते, दरवाजे पर दस्तक हुई और उनकी पत्नी अन्दर आई। दबी-लड़खड़ाती आवाज में विशेषर जी ने पुछा '' कहाँ चली गई थी कम्मू ? '' उनकी पत्नी ने दवा और कुछ फल दिखाकर जवाब दिया '' गई थी सिर दर्द की दवा लाने, बिजेन्दर के घर से सौ रूपए का जुगाड़ हो गया। '' विशेषर जी का माथा ठनका और मन में कुछ बूरा कौंध गया, उनको याद हो आया कि बिजेन्दर किसी को काम करवा कर पैसा नहीं देता है तो मुफ़्त में ?
'' बताओ क्या कर-करवा कर आई हो ? '' उनके प्रशन पुछने में तुनकमिजाजी प्रतीत हो रही थी। कम्मू ने ललाट पर जम आई पसीने की बुंदों को पल्लू से पोछते हुए कहा '' करवाना क्या था, उसका लैट्रीन रूम बहूत गंदा पड़ा था और उसकी बेटी के गंदे किए हुए कुछ कपड़े थे, सो झट से साफ कर आई। '' विशेषर जी का सिर दर्द तो ठीक हो चुका था, बुखार आने की आशंका जाती रही, विशेषर ने अपनी पत्नी से पुछा '' नन्दू कहीं नज़र नहीं आ रहा है ? ''
''बाहर खेल रहा होगा दोस्तों के साथ। '' कम्मू ने रोटी पकाते हुए जवाब दिया।
''तुम्हीं बिगाड़ के रखी है उसको, अभी तबीयत ठीक भी नहीं हुआ है, फिर विस्तर पकड़ लेगा तो तुम्ही झेलना। '' इस बात को विशेषर ने क्रोधित होकर कहा था। नन्दू को आस-पड़ोस में ढूंढने के बाद, कम्मू म नही मन ब्याकूल थी, लेकिन पति को ब्याकूल नहीं करना चाह रही थी, मगर कब तक ? शाम होने को आई।
नन्दू घर आते ही बोला '' माँ। '' उसका शरीर थका हुआ और कपड़े भी गंदे लग रहे थे, मगर चेहरे पर खुशी की लकीरंे स्पष्ट उभर आई थी। सौ रूपए के तीन करारे नोट माँ को देकर नन्दू बोला '' पापा के ठेकेदार ने दिया है। '' भौचक्के हो कर विशेषर जी चारपायी पर उठ बैठे, आश्चर्यचकित हो उन्होनें पुछा '' जो पूरी दीहाड़ी भी नहीं देता है, वो मुफ़्त में देगा ? सच बता कहाँ से आए रूपये, नहीं तो अभी मार कर टांगें तोड़ दूंगा। '' नन्दू ने सहमकर कहा '' पापा जी, हरिया काका का बेटा का जहाँ काम चल रहा है न, वहीं ठेकेदार ने कोयला तोड़वाया। उनका बेटा तो दस ही पत्थर तोड़ पाया और मैने तो बीस पत्थर तोड़ दिया, सबको बोरे में बंद कर गोदाम तक पहूँचाया तो ठेकेदार जी ने कहा '' आज का काम इतना ही, बाँकी कल। '' नन्दू की मुस्कराहट देखकर विशेषर जी को गुस्सा आ रहा था, मगर गुस्सा पी गए लेकिन उनका गुस्सा सातवें आसमान पर चला गया जब उनको पता चला कि उनकी फूलकुमारी बेटी, बिजेन्दर के घर खाना बनाने गई है। विशेषर जी का मन अब बैठने लगा, उससे भी दोगुना-तीगुना, सिर दर्द, साँस लेने का क्रम थोड़ा सा बाधित रहा। ललाट पर उभर आई पसीने की बुंदें सबको भयभीत करने लगी। अब तक वंदना भी घर लौट आई थी। उस रात विशेषर जी बिना कुद खाए ही चारपायी पर लेट गए। उनको पहली बार ठेकेदार के द्वार कहीं गई बात सच लगने लगी। उनका कथन '' अपनी बीमारी, अपनी परेशानी परिवार को तभी बताना, जब बहूत ज्यादा जरूरी हो। '' दिल पर नश्तर चलाने लगी। विशेषर जी को संघर्ष के किस्से सुनने-कहने में बहूत आनन्द आता था। उनका मानना था कि पेट के लिए तो संघर्ष करना ही पड़ता है उससे ज्यादा जरूरी है सामाजिक-आर्थि स्थिति विकसीत करने का संघर्ष। नींद तो नहीं आ रही थी, यही सब विचार उनको आते रहे, करवटें बदलते, आधी रात ढल जाने के बाद नींद आई और सुबह सात बजे ही तैयार होकर बोले '' मेरी थोड़ी सी तबीयत खराब क्या हुई, तुम उस लफंगे लुच्चे के घर का गंदा साफ कर आई, और तो और अपनी बेटी को भी उसके धर भेज दिया। जिसको आज तक एक बाल्टी पानी भी नहीं उठाने दिया, आज कोयले का पहाड़ तोड़कर आया है। मेरे मरने के बाद करते रहना अपनी मनमानी लेकिन जब तक जीन्दा हूँ, मेरे परिवार को काम करने की कोई जरूरत नहीं है। दोनों पढ़ाई में ध्यान लगाओ और तुम बच्चों में। '' ये बातें विशेषर जी बहूत गुस्से में बोल रहे थे और आँखें लाल के साथ-साथ नम भी थीं।
