किताब
किताब
मजदूर मोहन की जिन्दगी बदलने की शुरूआत तब हुई जब भारत सरकार ने शिक्षा निति के तहत इस गीत को आंदोलन का माध्यम बनाया ’’ पढ़ना लिखन सीखो ओ मेहनत करने वालों, औजार नहीं शब्दों के हथियार बना कर लड़ना सीखो। ’’
निशुल्क किताबें और निशुल्क पाठशाला के कारण मोहन जैसे कई मजदूर पढाई की तरफ अग्रसर हुए। जो लोग मोहन को मजदूर कहकर बूलाते थे, अब वही लोग मोहन बाबू कहकर बूलाने लगे। दसवीं में सबसे अधिक अंक लाकर वो सबका चहेता बन गया।
एक दिन काॅलेज परिसर में एकान्त में बैठ कर मोहन पढ़ाई में व्यस्त था तभी वहाँ पर मेनिका आ गई और उसने पुछा ’’ किताबें बहूत सी पढ़ी होंगी तुमने, मगर कोई चेहरा भी तुमने पढ़ा है ? ’’
मोहन बिना जवाब दिए उस ओर मूँह करके बैठ गया। मेनिका ने उसकी किबात दुसरी तरफ फेंक कर कहा ’’ ए बी सी डी छोड़ों, नयनों से नयना जोड़ो, आई रूत सुहानी, राजा जानी। ’’
मोहन के दिल में भी गुदगुदी हुई और उसने मेनिका को अपना लिया।
डीग्री हासिल करने के बाद पैसे की सबसे बड़ी दिवार को उसने सामने पाया, और निराशावादी प्रवृति उसके मन में घर कर गई।
शराब के नशे में मोहन ने कहा ’’ सोचा था पढ़ लिख कर आदमी बनूंगा, क्या खबर थी सड़कों पे आवारा फिरंुगा। ’’
मोहन के होश आने पर मेनिका ने कहा ’’ जीत जाएंगे हम, तू अगर संग है, जिन्दगी हर कदम एक नई जंग है। ’’
मोहन की नौकरी लगी और मेनिका के साथ हंसी-खुशी जिन्दगी गुजारने लगा।

